बालाकोट हमलाः जहां अभिनंदन पाकिस्तान में पकड़े गए थे
बात 27 फ़रवरी 2019 की है, जब हुड़ां के रहने वाले मोहम्मद रज़्ज़ाक़ चौधरी, फ़ोन पर अपने एक रिश्तेदार से बात कर रहे थे. वो अपने घर की बैठक में चारपाई पर बैठ कर बातें कर रहे थे. रज़्ज़ाक़, पाकिस्तान के क़ब्ज़े वाले कश्मीर के समहनी ज़िले के रहने वाले हैं. उनका घर ज़िले की छोटी-सी पंचायत हुड़ां में एक छोटी सी पहाड़ी पर है, जो नियंत्रण रेखा से बस चार किलोमीटर दूर है.
बात 27 फ़रवरी 2019 की है, जब हुड़ां के रहने वाले मोहम्मद रज़्ज़ाक़ चौधरी, फ़ोन पर अपने एक रिश्तेदार से बात कर रहे थे.
वो अपने घर की बैठक में चारपाई पर बैठ कर बातें कर रहे थे. रज़्ज़ाक़, पाकिस्तान के क़ब्ज़े वाले कश्मीर के समहनी ज़िले के रहने वाले हैं.
उनका घर ज़िले की छोटी-सी पंचायत हुड़ां में एक छोटी सी पहाड़ी पर है, जो नियंत्रण रेखा से बस चार किलोमीटर दूर है.
2019 के उस दिन को याद करते हुए रज़्ज़ाक़ बताते हैं, "उस दिन तनाव बहुत ज़्यादा था. मैंने सुबह से ही कई जहाज़ों के उड़ने की आवाज़ सुनी थी."
इसके एक दिन पहले ही भारतीय वायुसेना के जहाज़ों ने पाकिस्तान की वायुसीमा में घुस कर, बालाकोट में बम बरसाए थे.
नारंगी रंग की लपटें
बालाकोट क़स्बा, भारत और पाकिस्तान के बीच विवादित कश्मीर क्षेत्र की वास्तविक नियंत्रण रेखा से महज़ तीस मील दूर है.
रज़्ज़ाक़ कहते हैं, "आसमान में विमानों का ये शोर मचने की उम्मीद तो पहले से थी. लेकिन, सुबह क़रीब दस बजे, जब में फ़ोन पर बात कर रहा था, तो मैंने एक के बाद एक, दो बड़े धमाकों की आवाज़ सुनी."
रज़्ज़ाक़ आगे बताते हैं, "मैं फ़ोन पर बात करते हुए ये देखने के लिए थोड़ी देर रुका कि हुआ क्या है. फिर मैंने सोचा होगा कुछ, और फ़ोन पर दोबारा बातें करने लगा."
रज़्ज़ाक़ ने बताया कि कुछ ही लम्हों के बाद उन्होंने आसमान पर धुएं का एक छोटा-सा ग़ुबार देखा, जो बड़ी तेज़ी से नीचे की तरफ़ आ रहा था.
जब ये गोला और क़रीब आया, तो रज़्ज़ाक़ को साफ़ दिखाई पड़ा कि धुएं के उस ग़ुबार में से नारंगी रंग की लपटें निकल रही थीं.
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जलता हुआ विमान
जब ये ग़ुबार और पास आया, तो रज़्ज़ाक़ को अंदाज़ा हो गया था कि ये एक विमान का मलबा था, जिसे मार गिराया गया था.
ये जलता हुआ विमान एक छोटी-सी घाटी में जा गिरा. ये जगह रज़्ज़ाक़ के घर से क़रीब एक किलोमीटर दूर है.
हालांकि, रज़्ज़ाक़ बताते हैं कि, उस वक़्त उन्हें ये नहीं पता था कि ये जहाज़ पाकिस्तान का है या हिंदुस्तान का.
रज़्ज़ाक़ ने अभी जो मंज़र देखा था, वो उसी को समझने की कोशिश कर रहे थे. तभी, कुछ देर बाद जब उन्होंने दूसरी दिशा में देखा, तो उन्होंने पाया कि एक पैराशूट एक और पहाड़ी की तरफ़ आ रहा था.
ये जगह उनके घर से बस चंद सौ मीटर की दूरी पर थी. तब रज़्ज़ाक़ ने फ़ौरन अपने पड़ोसी अब्दुल रहमान को आवाज़ दी.
अब्दुल रहमान, रज़्ज़ाक़ के घर के पास ही रहते हैं. रज़्ज़ाक़ ने रहमान को कहा कि चल कर देखते हैं कि क्या माजरा है.
भारत या पाकिस्तान?
अब्दुल रहमान बताते हैं कि उन्होंने रज़्ज़ाक़ के आवाज़ देने से पहले ही पैराशूट देख लिया था और उन्हें शक था कि ये कोई पाकिस्तानी फ़ौजी हो सकता था. रहमान ने एक जग भर कर पानी लिया और उस तरफ़ भागा, जिधर पैराशूट नीचे आता दिखा था.
अब्दुल रहमान ने अपने घर की दूसरी तरफ़ की पहाड़ी के एक पेड़ की तरफ़ इशारा करते हुए कहा, "पहले तो मुझे लगा कि पैराशूट उस पेड़ पर अटक जाएगा. लेकिन, जो शख़्स पैराशूट चला रहा था, उसने बड़ी चालाकी से ख़ुद को उससे बचाया और फिर वो पहाड़ी की एक समतल जगह पर सुरक्षित उतर गया."
अब्दुल रहमान ने बताया, "जब पैराशूट ज़मीन पर उतरा, तो मैंने देखा कि उसमें हिंदुस्तान के परचम की तस्वीर थी. मैं फ़ौरन उसके पास गया."
"अभिनंदन ने मुझे देखा. पैराशूट अभी उसके बदन से जुड़ा हुआ था. लेकिन, उसने अपनी जेब में हाथ डाला और एक पिस्तौल निकाल ली."
अब्दुल रहमान ने मुस्कुराते हुए बताया, "उसने मेरी तरफ़ पिस्तौल तान दी और पूछा कि ये हिंदुस्तान है या पाकिस्तान? मैंने कहा पाकिस्तान, तो उसने पूछा कि पाकिस्तान में कौन-सी जगह, तो मैंने यूं ही कह दिया क़िला है."
ज़ख़्मी अभिनंदन
रहमान ने अभिनंदन के बैठने के तरीक़े की नक़ल करते हुए आगे बताया, "वो ज़मीन पर ऐसे बैठ गया. उसके बाद उसने अपनी पिस्तौल नेफ़े में खोंस ली और नारा लगाया-जय हिंद. और फिर उसने अपने हाथ उठा कर कहा-काली माता की जय."
अब्दुल रहमान ने बताया, "इसके बाद उसने मुझसे कहा कि पीने के लिए थोड़ा सा पानी दे दो. उसने ये भी बताया कि उसकी पीठ बहुत ज़ख़्मी हो गई है."
इसी दौरान, वहां पर दूसरे गांववाले भी जमा होने लगे थे. उनमें से कई नारे लगाने लगे, "पाकिस्तान का मतलब क्या? ला इलाहा इलल्लाह और पाक फ़ौज ज़िंदाबाद."
अभिनंदन चौकन्ने हो गए. वो उठे और एक हाथ में अपनी पिस्तोल लेकर, दूसरे हाथ से अपनी पतलून की एक जेब खंगालने लगे. अभिनंदन ने जेब से एक काग़ज़ निकाला और उसे मरोड़ कर ऐसे निगल लिया, जैसे कोई गोली हो.
उस मंज़र को याद करते हुए अब्दुल रहमान ने बताया, "इसके बाद, अभिनंदन ने एक और काग़ज़ निकाला. ये टुकड़ा बड़ा सा था. वो उसे निगल नहीं पाए. तो अभिनंदन ने उसे बहुत छोटे-छोटे टुकड़ों में फाड़ कर फेंकना शुरू कर दिया. इसके बाद वो पहाड़ी से नीचे की तरफ़ भागने लगे."
रहमान ने कहा, "मैं उनको पकड़ना चाहता था. लेकिन उनके पास पिस्तौल थी. तो मैं उनके पीछे भागने लगा. मेरे साथ गांव के कुछ और लोग भी उनके पीछे भागे."
और भाग-दौड़ ख़त्म हुई...
अब्दुल रहमान ने बताया कि पहले तो अभिनंदन, धूल भरे रास्ते की ओर भागे. लेकिन, बाद में उन्होंने अपनी दिशा बदली और, जिधर से धुआं आ रहा था, उधर की तरफ़ भागने लगे. जहाज़ के मलबे से धुआं निकल रहा था.
रहमान ने बताया, "कुछ गांववालों ने अभिनंदन पर पत्थर फेंकने शुरू कर दिए. लेकिन, वो भागते रहे और जब वो एक नाले के पास पहुंचे, तो उसमें छलांग लगा दी. बरसाती नाले पानी बहुत कम था. वो ठहर कर पानी पीने लगे."
अब्दुल रहमान ने बताया, "तब मैंने एक और पड़ोसी मोहम्मद रफ़ीक़ को आवाज़ दी और उसे बंदूक लाने को कहा."
मोहम्मद रफ़ीक़ ने बताया कि उस वक़्त वो पास के ही अपने खेत में काम कर रहा था; रहमान की आवाज़ सुन कर वो अपने घर की तरफ़ भागा, वहां से बंदूक ली और फिर बरसाती नाले की तरफ़ दौड़ने लगा.
रफ़ीक़ ने बताया, "जब मैं पहाड़ी से नीचे आ रहा था, तो गांव के ही एक लड़के ने बंदूक मुझसे छीन ली. तब मैंने उससे कहा कि वो अभिनंदन को गोली न मारे. हम उन्हें ज़िंदा पकड़ना चाहते थे. उन्हें नुक़सान पहुंचाने का कोई इरादा नहीं था. तो उस लड़के ने हवा में कुछ गोलियां दाग़ीं."
मोहम्मद रफ़ीक़ ने आगे बताया, "जब तक हम मौक़े पर पहुंचे, तब तक फ़ौज आ चुकी थी. एक फ़ौजी ने भी हवा में गोलियां चलाई और पानी में कूद गया. फिर उसने नारा लगाया-नारा-ए-हैदरी: या अली. और अभिनंदन को पकड़ लिया."
उस दिन को याद करते हुए रफ़ीक़ ने बताया, "अभिनंदन ने अपनी पिस्तौल फेंक दी. अपना हाथ उठाया और ख़ुद को उस फ़ौजी के हवाले कर दिया. वहां आए फ़ौजियों ने उसे कार में बैठाया और वहां से चले गए."
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जहां गिरा था विमान का मलबा
जिस जगह पर अभिनंदन को पाकिस्तान की फ़ौज ने पकड़ा था, वहां से कमोबेश एक किलोमीटर दूर, मोहम्मद इस्माइल एक स्कूल चलाते हैं. इस जगह का नाम है- कोटला और ये नियंत्रण रेखा के बिल्कुल क़रीब है. यही वो जगह है, जहां अभिनंदन के विमान का मलबा गिरा था.
मोहम्मद इस्माइल बताते हैं कि उस दिन वो स्कूल में ही थे, जब उन्होंने विमान को हवा में गुलाटियां मारते देखा था.
इस्माइल ने बताया, "ऐसा लगा कि वो इमारतों के ऊपर ही आ गिरेगा. पर ख़ुदा का शुक्र कि आख़िर तय्यारे का मलबा खुली जगह पर गिरा और इससे कोई ज़ख़्मी न हुआ."
इस्माइल ने कहा कि पहले उन्होंने ये सुनिश्चित किया कि बच्चे महफ़ूज़ हैं. उसके बाद वो हादसे के ठिकाने की तरफ़ भागा.
मुहम्मद इस्माइल बताते हैं, "जब मैं वहां पहुंचा, तब भी विमान में आग लगी हुई थी और छोटे-छोटे धमाके हो रहे थे. मैंने देखा कि विमान पर हिंदुस्तान का झंडा बना हुआ था. विमान का मलबा कई घंटों तक जलता रहा था."
अभिनंदन के विमान का मलबा कई हफ़्तों तक वहीं पड़ा रहा था. उसके बाद फ़ौज के लोग आए और उसे उठा ले गए. जहां वो जहाज़ गिरा था, वहां आज भी बड़ा-सा गड्ढा बना हुआ है. कुछ मलबा भी अभी वहां पड़ा दिखता है.
मोहम्मद इस्माइल बताते हैं कि कई हफ़्तों तक आस-पास की बस्तियों के लोग वहां आते-जाते रहे थे.