Babri verdict:कल्याण सिंह ने बचाव में क्या किया, जो आडवाणी-जोशी कोई नहीं कर सके
नई दिल्ली- अयोध्या के बाबरी विध्वंस मामले में सुनवाई पूरी करने से पहले सभी अभियुक्तों को अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए गवाहों या सबूत पेश करने का आखिरी मौका दिया गया था। कुछ अभियुक्तों ने इसके लिए अदालत से बाकायदा वक्त भी मांगा था और जो उन्हें दिया भी गया। लेकिन, यूपी के पूर्व सीएम कल्याण सिंह को छोड़कर आडवाणी-जोशी समेत किसी भी अभियुक्त ने इस मौके का उपयोग नहीं किया। बाबरी ढांचा गिरने के वक्त कल्याण सिंह अयोध्या में नहीं थे। लेकिन, मुख्यमंत्री के तौर पर उस ढांचे की सुरक्षा उनकी जिम्मेदारी थी। उन्होंने तमाम दस्तावेजों के आधार पर अदालत में यह साबित कर दिया कि उन्होंने सीआरपीएफ को पहुंचने के आदेश दिए थे, लेकिन हालात ही ऐसे हो गए थे कि वह वक्त पर नहीं पहुंच सके। आखिर इसी आधार पर अदालत ने उन्हें बेगुनाह मानते हुए बाइज्जत बरी कर दिया है।
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अदालत से अभियुक्तों को मिला था सबूत देने का मौका
किसी भी मामले में अभियुक्तों के पास यह कानूनी हक होता है कि वह खुद की बेगुनाही साबित करने के लिए अदालत में सबूत और गवाह पेश कर सकता है। जब लखनऊ की विशेष सीबीआई अदालत में बाबरी विध्वंस मामले की सुनवाई पूरी होने वाली थी तो अभियुक्तों ने अदालत से कहा था कि वह अपनी बेगुनाही के सबूत देंगे। यह तब हुआ जब फैसला सुरक्षित रखने से पहले अदालत सीआरपीसी के सेक्शन-313 के तहत आरोपियों से सवाल पूछ रहा थी। लेकिन, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के अलावा किसी दूसरे अभियुक्त ने अदालत में कोई नए दस्तावेज या गवाह पेश नहीं किए। जबकि, कुछ ने तो औपचारिक आवेदन देकर अपनी डिफेंस में दस्तावेजी सबूत पेश करने के लिए कोर्ट से 15 दिन का वक्त भी मांगा था। अदालत ने 7 दिनों का वक्त देते हुए 4 अगस्त को अगली सुनवाई की तारीख मुकर्रर की थी। उस समय कुछ अभियुक्तों ने अभियोजन पक्ष से कुछ दस्तावेजों की प्रमाणित कॉपियां भी मांगी थी, जिसकी काट में वह साक्ष्य जुटा सकें। स्पेशल कोर्ट ने अभियुक्तों की ओर से सबूत जमा करने का इंतजार करने के बाद पिछले 1 सितंबर को 28 साल पुराने इस केस में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
सिर्फ कल्याण सिंह ने नए दस्तावेज पेश किए
जानकारी के मुताबिक अभियोजन पक्ष को लग रहा था कि अगर अभियुक्तों की ओर से नए गवाह और सबूत पेश होंगे तो ट्रायल और लंबा खिंच सकता है। नए गवाहों से भी जिरह करनी पड़ सकती है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट की निर्धारित समयसीमा में ट्रायल पूरी होने में दिक्कत हो सकती है। लेकिन, लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी समेत किसी अभियुक्त ने कोई नए गवाह या सबूत पेश नहीं किए। सिर्फ पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने अपनी बेगुनाही के सबूत के तौर पर कुछ नए दस्तावेज दाखिल किए। फैसले पर सवाल उठाने वाले कानून के कुछ जानकारों का कहना है कि जब अभियुक्तों को लगता है कि अभियोजन पक्ष उनके खिलाफ ठोस सबूत नहीं जुटा पाया है तो वह अपनी बेगुनाही साबित करने वाले अधिकार का उपयोग नहीं करना चाहते। दूसरा नजरिया यह भी हो सकता है कि जब अभियुक्त निश्चिंत हों कि उन्होंने कुछ किया ही नहीं है और वो सिर्फ हालात के शिकार बन गए हैं तब भी इसकी जरूरत नहीं समझ सकते।
सड़क जाम होने की वजह से नहीं पहुंच सकी सीआरपीएफ
जहां तक कल्याण सिंह के बाइज्जत बरी होने का सवाल है तो वह 6,दिसंबर 1992 को अयोध्या में मौजूद थे ही नहीं। उनपर आरोप था कि उन्होंने मुख्यमंत्री रहते हुए केंद्र से मिले अर्थसैनिक बलों को समय पर तैनात नहीं किया। लेकिन, सीबीआई उनके खिलाफ साजिश का कोई सबूत नहीं जुटा सकी। पूर्व सीएम अदालत में साक्ष्यों के आधार पर यह साबित करने में कामयाब रहे कि जब विवादित स्थल पर कुछ अराजक तत्वों ने उपद्रव करना शुरू कर दिया तो सीआरपीएफ को घटनास्थल पर पहुंचने के आदेश दिए गए। लेकिन, फैजाबाद से अयोध्या जाने वाली सड़क जाम होने के चलते वह नहीं पहुंच सकी। महिला कारसेवक सड़कों पर लेट गई थीं, जिसके चलते उनका आगे बढ़ पाना मुश्किल था।
भड़काऊ भाषण वाली थ्योरी की भी अदालत में हवा निकली
जबकि, एलके आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती जैसे नेताओं के खिलाफ भड़काऊ भाषण देने जैसे कोई सबूत नहीं पेश हो सके। कोई भी रिकॉर्डिंग उपलब्ध नहीं किया जा सका, जिसमें आरोपी दूसरे समुदाय को आहत करने वाले नारे लगा रहे हों। अदालत में दिए अपने बयान में भाजपा नेता आडवाणी ने बाबरी मस्जिद गिराने की घटना में शामिल होने से साफ इनकार किया था। आडवाणी ने कहा था कि उन्हें राजनीतिक वजहों से फंसाने की कोशिश की गई है। जोशी ने भी ढांचा गिराने में शामिल होने से साफ इनकार किया था।
मस्जिद गिरने के पीछे साजिश नहीं- अदालत
बुधवार को लखनऊ की विशेष सीबीआई अदालत ने 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में विवादित बाबरी मस्जिद ढांचा गिराने के मामले में सभी 32 आरोपियों को बरी कर दिया था। स्पेशल सीबीआई जज सुरेंद्र कुमार यादव ने अपने फैसले में साफ कहा है कि उस दिन की घटना पूर्वनियोजित नहीं थी और वह अचानक पैदा हुए हालातों की वजह से ढहा दी गई। अदालत ने माना कि उस घटना के पीछे कोई आपराधिक साजिश नहीं थी। उल्टे अदालत ने सवाल उठाया कि 6 दिसंबर, 1992 के एक-दो दिन पहले जो पाकिस्तानी 'आतंकियों' की अयोध्या में मौजूदगी की खुफिया सूचना थी, उस दिशा में जांच क्यों नहीं की गई।