बाबरी मस्जिद विध्वंसः एक दिन की जेल ही दे देता कोर्ट, एक रुपये का ज़ुर्माना ही लगा देता- अयोध्या के लोग
बाबरी मस्जिद विध्वंस पर फ़ैसला सुनाया तो गया लखनऊ स्थित सीबीआई की स्पेशल कोर्ट में लेकिन उसका केंद्र अयोध्या में था. जानिए इस फ़ैसले पर क्या कहते हैं अयोध्यावासी.
बुधवार को देश और दुनिया की निग़ाहें जिस अहम फ़ैसले पर लगी थीं, उसे सुनाया तो लखनऊ में सीबीआई की स्पेशल कोर्ट में जाना था लेकिन उसका केंद्र अयोध्या में था.
मंगलवार रात तक अयोध्या में लोगों को इसके बारे में कुछ ख़ास जानकारी नहीं थी लेकिन बुधवार सुबह अचानक बढ़ी सुरक्षा व्यवस्था और प्रशासनिक चौकसी ने उन्हें यह आभास करा दिया कि आज कुछ ख़ास दिन है.
बुधवार दोपहर 12 बजे जब लखनऊ की सीबीआई कोर्ट ने यह फ़ैसला सुना दिया कि छह दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में जिन 32 लोगों पर 27 साल से मुक़दमा चल रहा है, वो सभी निर्दोष हैं, उसके बाद भी अयोध्या की सड़कें वैसे ही गुलज़ार थीं जैसे कि उससे पहले.
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इस बारे मेंहनुमानगढ़ी के पास साधु वेष में घूम रहे एक सज्जन बोले, "पुलिस वाले झूठ-मूठ में शंका करते हैं, फ़ोर्स लगा देते हैं. अयोध्या के हिन्दू-मुसलमान आपस में कभी लड़ते-झगड़ते नहीं हैं."
कोर्ट के फ़ैसले से पहले ही अधिग्रहीत स्थल के पास, (जहां राम मंदिर का निर्माण कार्य चल रहा है) टेढ़ी बाज़ार इलाक़े में बाबरी मस्जिद के पक्षकार रहे इक़बाल अंसारी के घर पर कुछ मीडियाकर्मियों का जमावड़ा हो चुका था.
बीबीसी से बातचीत में इक़बाल अंसारी कहने लगे, "फ़ैसला तो नौ नवंबर को ही आ चुका था. हम तो चाहते हैं कि सब अमन से रहें. जब कोर्ट को लगता है कि मस्जिद गिराने में कोई दोषी नहीं है, तो हम क्या कह सकते हैं. ये अलग बात है कि न सिर्फ़ अयोध्या के लोगों ने बल्कि पूरी दुनिया ने देखा है कि उस दिन क्या हुआ था."
"ऐसे फ़ैसले की उम्मीद नहीं थी"
इक़बाल अंसारी इस बात को साफ़तौर पर नहीं बताते हैं कि उन्हें क्या ऐसे ही फ़ैसले की उम्मीद थी.
टेढ़ी बाज़ार के पास ही मस्जिद से नमाज़ पढ़कर आए मोहम्मद आज़म कहते हैं, "हम तो क्या, जो लोग दोषी थे वो ख़ुद इस फ़ैसले की उम्मीद नहीं कर रहे थे. वो लोग ख़ुद एलान कर रहे थे कि हम जेल जाने को तैयार हैं. यानी उन्हें यह आशंका तो रही ही होगी कि सज़ा होगी और जेल जाएंगे. बहरहाल, न्यायपालिका को बहुत-बहुत धन्यवाद."
मोहम्मद आज़म की बातचीत का लहज़ा यह बता रहा था कि वो सीबीआई की विशेष अदालत के फ़ैसले को किस तरह से देख रहे हैं लेकिन पास में ही खड़े वाहिद क़ुरैशी अपनी मायूसी बयां करने से ख़ुद को रोक नहीं पाते हैं.
वो कहते हैं, "अदालत सिर्फ़ एक दिन की सज़ा दे देती, एक रुपये के जुर्माने की सज़ा दे देती तो भी हम लोगों को लगता कि हां, कुछ न्याय हुआ है. नाउम्मीद तो हम लोग नौ नवंबर को सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद से ही थे लेकिन अब तो कुछ कहने को है ही नहीं."
टेढ़ी बाज़ार स्थित यह मस्जिद छोटी ज़रूर है लेकिन नमाज़ पढ़ने यहां काफ़ी लोग आते हैं. पर सीबीआई कोर्ट के फ़ैसले पर दो-तीन लोगों को छोड़कर कोई बात करने को तैयार नहीं था. लोगों का यही कहना था कि 'क्या बात करें और बात करने से क्या होने वाला है?'
मस्जिद ढहाए जाने की घटना याद है
अयोध्या में धारा 144 पहले से ही लागू है और फ़ैसले के मद्देनज़र हाई अलर्ट कर दिया गया था.
हालांकि इसका असर न तो यहां की सड़कों पर और न ही यहां के लोगों पर दिख रहा था. सड़कों पर आवाजाही आम दिनों जैसी थी और ज़िंदग़ी रोज़मर्रा की तरह. हालांकि दोपहर के वक़्त मुख्य मार्ग पर ज़्यादातर दुकानें बंद थीं.
नया घाट पर कुछ लोग चाय पीते मिले. सीबीआई कोर्ट के फ़ैसले पर काफ़ी ख़ुश नज़र आ रहे थे.
मनोज पांडेय कहते हैं, "मेरा घर यहां से 10 किलोमीटर दूर है और हमारे घर में हमें यह बताया जाता था कि किस तरह भगवान राम की जन्मभूमि को नष्ट करके मस्जिद बनाई गई. मस्जिद कारसेवकों ने ज़रूर तोड़ी थी लेकिन जिन लोगों को अभियुक्त बनाया गया था इनका तो कोई दोष नहीं था. इसलिए अदालत का फ़ैसला बिल्कुल सही है."
पास में ही खड़ी एक बुज़र्ग महिला को फ़ैसले की जानकारी तो नहीं थी लेकिन छह दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद ढहाए जाने की घटना बख़ूबी याद थी.
कहने लगीं, "लाखों लोग बाहर से आए थे कार सेवा करने. अब सभी को पता था कि क्या करने जा रहे हैं. इतने लोग रहेंगे तो मस्जिद पुरानी थी, टूटेगी ही."
महिला कहने लगीं, "सब बहुमत का खेल है. जिसके पास बहुमत है, उसके पास सब है. जब बहुमत उनके साथ है तो उन्हें भला कौन सज़ा दे सकता है."
लेकिन जब उनसे कोर्ट के फ़ैसले और बहुमत में अंतर्संबंध के बारे में पूछ गया तो वो सिर्फ़ मुस्कुरा दीं.
"सभी बरी हो जाएंगे, ये सोचा न था"
वहीं दूसरी ओर, अयोध्या के संतों ने कोर्ट के इस फ़ैसले पर ख़ुशी जताई और मिठाइयां भी बांटी.
'जय श्री राम' के नारे भी लगाए गए. हनुमानगढ़ी के पास कुछ संत ख़ुशी मनाते हुए दिखे. उन्हीं में से एक संत सिद्धेश्वर नाथ कहने लगे, "इस मामले में सच में न्याय हुआ है. सत्य की जीत हुई है. अयोध्या में राम मंदिर बन रहा है और अब सभी को बरी कर दिया गया है. यह सब राम की कृपा से ही संभव हो सका है."
संतों का कहना था कि उन्हें उम्मीद थी कि ज़्यादातर लोगों को बरी कर दिया जाएगा, लेकिन अदालत सभी को बरी कर देगी, ऐसा कभी नहीं सोचा था.
वहीं फ़ैसले से नाख़ुश मोहम्मद आज़म मशहूर शायर राहत इंदौरी का एक शेर उद्धृत करते हुए अपनी पीड़ा को बयां करते हैं, "इंसाफ़ ज़ालिमों की हिमायत में जाएगा, यही हाल रहा तो अदालत कौन जाएगा."