Babri Masjid demolition case:CBI कोर्ट कल सुनाएगी फैसला, इस मुकदमे के बारे में सबकुछ जानिए
नई दिल्ली- 1992 के बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में कल लखनऊ की स्पेशल सीबीआई कोर्ट अपना फैसला सुनाएगी। 28 साल पुरानी इस घटना के बाद देश में आजादी के बाद अबतक के सबसे भयानक सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे थे, जिसमें अनुमान के मुताबिक लगभग 2,000 लोगों की मौत हो गई थी। इस केस में पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी और यूपी के पूर्व सीएम कल्याण सिंह समेत बीजेपी, वीएचपी और संघ से जुड़े कई बड़े नेता अभियुक्त हैं। फैसले का दिन आने में लगभग तीन दशक इसलिए लग गए, क्योंकि यह केस कई तरह के कानूनी उलझनों में बीच-बीच में अटकता रहा। आखिरकार जब सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल पूरा करके फैसला सुनाने की आखिरी तारीख मुकर्रर कर दी, तब जाकर यह दिन आ रहा है।
बाबरी मस्जिद विध्वंस: सीबीआई अदालत सुनाएगी फैसला
उत्तर प्रदेश की अयोध्या में 6 दिसबंर, 1992 को कारसेवकों की भारी भीड़ के बीच बाबरी मस्जिद गिरा दी गई थी। इस घटना के बाद उसी दिन दो एफआईआर दर्ज की गई। पहली एफआईआर (197/1992) में अज्ञात कारसेवकों को आरोपी बनाया गया। उनके खिलाफ लूट-पाट, चोट पहुंचाने और धर्म के आधार पर दो गुटों में शत्रुता बढ़ाने जैसे आरोप लगाए गए। दूसरी एफआईआर (198/1992) भाजपा, विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े उन नेताओं के खिलाफ दर्ज की गई थी, जिन्होंने रामकथा पार्क में मंच पर भाषण (कथित तौर पर भड़काऊ) दिए थे। इनमें बीजेपी नेता एलके आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, साध्वी ऋतंभरा, वीएचपी के तत्कालीन महासचिव अशोक सिंघल, विनय कटियार, गिरिराज किशोर और विष्णु हरि डालमिया (कुल 8 अभियुक्त) को नामजद किया गया था। इस केस में लखनऊ की विशेष सीबीआई अदालत के स्पेशल जज सुरेंद्र कुमार यादव फैसला सुनाएंगे।
कुल 47 एफआईआर, दूसरी एफआईआर में नेताओं के नाम
बाद में पहली एफआईआर से संबंधित जांच सीबीआई को सौंप दी गई और दूसरी एफआईआर की जांच यूपी सीआईडी के हवाले कर दिया गया। 1993 में पहली एफआईआर (197/1992) की सुनवाई के लिए यूपी के ललितपुर में स्पेशल कोर्ट बनाई गई, वहीं दूसरी एफआईआर (198/1992) से जुड़े मुकदमे की सुनवाई रायबरेली की विशेष अदालत को सौंप दी गई। बाद में इन दोनों एफआईआर के अलावा 45 और मुकदमे भी दर्ज किए गए और उन सबको बाद में पहले केस के साथ सीबीआई के हवाले कर दिया गया। इन मुकदमों की सुनवाई के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट के कहने पर लखनऊ में एक नई सीबीआई अदालत गठित हुई। लेकिन, दूसरी एफआईआर (198/1992) से जुड़े मुकदमे रायबरेली कोर्ट में ही चलते रहे। लखनऊ ट्रांसफर होने से पहले 1993 में पहली एफआईआर संख्या- 197/1992 में आईपीसी की धारा-120बी यानी आपराधिक साजिश भी जोड़ दिया गया।
आपराधिक साजिश की धारा के चलते उलझा रहा मामला
बाद में 5 अक्टूबर,1993 को सीबीआई ने एफआईआर संख्या-198/1992 (दूसरी एफआईआर- नेताओं वाला) को भी एक साथ शामिल करके एक साझा आरोप पत्र दाखिल किया, क्योंकि दोनों मामले एक-दूसरे से जुड़े थे। आरोप पत्र में शिवसेना सुप्रीमो बाला साहेब ठाकरे, यूपी के पूर्व सीएम कल्याण सिंह, चंपत राय, धरमदास, महंत नृत्य गोपाल दास और कुछ और लोगों को भी नामजद किया गया। 8 अक्टूबर, 1993 की यूपी सरकार की अधिसूचना से साफ हो गया कि बाबरी विध्वंस से जुड़े सभी केसों की सुनवाई लखनऊ की विशेष अदालत करेगी। बाद में 1996 में लखनऊ स्पेशल कोर्ट ने सभी मुकदमो में आपराधिक साजिश की धारा (120बी) जोड़ने का आदेश दिया (नेताओं पर भी)। विशेष अदालत ने आरोप तय करने वाले आदेश में कहा था कि सारे मामले जुड़े हुए हैं, इसलिए एक साथ ट्रायल चलाने का पूरा आधार है। लेकिन, आडवाणी और दूसरे आरोपियों ने हाई कोर्ट में इसे चुनौती दे दी। 12 फरवरी, 2001 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि लखनऊ की विशेष अदालत को दूसरी एफआईआर (198/1992) वाले 8 नामजद अभियुक्तों के खिलाफ मुकदमा सुनने का अधिकार नहीं है, क्योंकि उस अदालत के गठन की अधिसूचना में इस केस का नंबर नहीं शामिल था।
निचली अदालत से एक बार बरी हो गए थे आडवाणी
इसी के साथ हाई कोर्ट ने सीबीआई से कहा कि आडवाणी और बाकी नेताओं के खिलाफ आपराधिक साजिश के सबूत हैं तो रायबरेली कोर्ट में ही पूरक चार्जशीट दायर करे। लेकिन, सीबीआई कथित भड़काऊ भाषण वाली दूसरी एफआईआर में मस्जिद गिराने की आपराधिक साजिश नहीं जोड़ सकी। आखिरकार रायबरेली कोर्ट से आडवाणी इसलिए बरी कर दिए गए, क्योंकि उनके खिलाफ केस चलाने के पुख्ता सबूत नहीं थे। 2005 में इलाहाबाद हाइकोर्ट ने रायबरेली कोर्ट के फैसले को पलट दिया और आदेश दिया कि आडवाणी और अन्यों के खिलाफ केस चलते रहेंगे। हालांकि, यह मामला चलता जरूर रहा, लेकिन इसमें आपराधिक साजिश के आरोप नहीं। क्योंकि, हाई कोर्ट के मुताबिक आरोपी दो प्रकार के थे। एक वैसे नेता जो मस्जिद से 200 मीटर दूर मंच पर थे (जिनपर भड़काऊ भाषण के आरोप लगाए गए थे) और दूसरे खुद कारसेवक। इसलिए नेताओं पर आपराधिक साजिश नहीं लगाया जा सकता। इस तरह 28 जुलाई, 2005 को रायबरेली कोर्ट ने आरोप तय किए और 57 गवाहों का बयान दर्ज किया।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश से तय हुई ट्रायल की डेडलाइन
बाद में सुप्रीम कोर्ट ने 30 मई, 2017 को उस केस को भी (198/1992) लखनऊ की विशेष अदालत में ट्रांसफर कर दिया। यही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला रद्द करके फिर से आपराधिक साजिश के आरोप लगाने और दोनों ही मुकदमो की एकसाथ सुनवाई का आदेश दिया। इस तरह से आडवाणी और 20 लोगों के अलावा बाकी आरोपियों पर भी आपराधिक साजिश के मुकदमे की सुनवाई शुरू हुई। अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पेशल कोर्ट में ट्रायल के लिए एक समय सीमा भी तय कर दी। पहले यह समय सीमा दो साल के लिए दी गई। लेकिन, स्पेशल जज की मांग पर 19 जुलाई, 2019 को इसे पहले 6 महीने के लिए बढ़ा दिया गया और कुल 9 महीने में आखिरी फैसला सुनाने को कहा। ये 9 महीने इस साल अप्रैल में पूरे हो गए। 6 मई को जज ने फिर मियाद बढ़ाने की मांग की। 8 मई को सर्वोच्च अदालत ने 31 अगस्त की जजमेंट के लिए डेडलाइन फिक्स कर दी। लेकिन, बाद में इसे आखिरी रूप से 30 सितंबर यानी बुधवार तक लिए बढ़ा दिया गया।
कुल 49 लोगों को बनाया गया था आरोप, 17 लोग जीवित नहीं
इस तरह से बाबरी मस्जिद ढांचा गिराए जाने के मामले में कुल 49 लोगों को आरोपी बनाया गया, जिनमें से 17 लोग अब इस दुनिया में नहीं हैं। जिन लोगों पर बुधवार को लखनऊ की विशेष सीबीआई अदालत बुधवार को फैसला सुनाने वाली है, उनमें से लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारत, कल्याण सिंह, साध्वी ऋतंभरा, चंपत राय, नृत्य राम गोपाल दास और रामविलास वेदांती जैसे दिग्गज शामिल हैं।