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बाबरी विध्वंस: भाजपा ने क्या खोया, क्या पाया?

6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में जो सिलसिला शुरू हुआ, वो कहां तक जाएगा?

By BBC News हिन्दी
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बाबरी मस्जिद
MANPREET ROMANA/GETTY IMAGES
बाबरी मस्जिद

पच्चीस साल पहले 6 दिसंबर को मैंने उत्तर भारत के अयोध्या में एक ऐतिहासिक मस्जिद को हिंदू राष्ट्रवादियों के हाथों नष्ट होते देखा था. इसे हिंदुओं के भगवान राम का जन्मस्थल माना जाता है.

यह हिंदू राष्ट्रवादी पार्टी बीजेपी की छह साल के उस अभियान का नतीजा था जिसमें वो मस्जिद को तोड़ कर उसकी जगह पर मंदिर बनाना चाहते थे.

लगभग 15 हज़ार लोगों की भीड़ अचानक आगे बढ़ी और उसने मस्जिद को बचाने के लिए बने पुलिस घेरे को तोड़ते हुए मस्जिद के बुर्ज़ पर चढ़ाई कर दी और पल भर में उसे तोड़ने का काम शुरू हो गया.

अटल और मोदी
Getty Images
अटल और मोदी

मैंने देखा कि अंतिम घेरा टूट चुका था और ऊपर से बरसाए जा रहे पत्थरों से बचने के लिए पुलिसकर्मी लकड़ी की बनी ढाल से अपने सिर बचाते हुए पीछे हट रहे थे.

एक पुलिस अधिकारी बाकी पुलिसकर्मियों को किनारे धकियाते हुए वहां से पहले बाहर निकलने की कोशिश कर रहा था.

तब मुझे एहसास हुआ कि मैं एक ऐतिहासिक घटना का गवाह बन गया हूं. और ये घटना थी- आज़ादी के बाद हिंदू राष्ट्रवादियों की महत्वपूर्ण विजय और धर्मनिरपेक्षतावाद को करारा झटका.

25 साल पहले अयोध्या में मस्जिद के अलावा और भी बहुत कुछ टूटा था

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ऐतिहासिक मोड़

राजनीतिक विशेषज्ञ ज़ोया हसन ने 'मस्जिद विध्वंस को आधुनिक भारत में क़ानून का सबसे खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन' कहा था.

उनकी नज़र में ये 'भारतीय राष्ट्रीयता के लिए एक ऐतिहासिक मोड़' था.

लेकिन इस विध्वंस की शाम को उत्तर प्रदेश में तब बीबीसी के संवाददाता रहे राम दत्त त्रिपाठी बहुत उत्साह में दिखे.

उन्होंने कहा कि हिंदू राष्ट्रवादियों ने मस्जिद को ढहा कर 'उस मुर्गी को ही हलाल कर डाला, जो सोने के अंडे देती.'

उनका तर्क था कि हिंदू राष्ट्रवादियों के लिए मस्जिद की मौजूदगी, जिसे वो मानते थे कि ये राम जन्मभूमि है, एक भावनात्मक मुद्दा था और वहां मंदिर निर्माण की उनकी कोई इच्छा नहीं थी.

पहली नज़र में तो ऐसा लगता है कि राम दत्त ग़लत थे. क्योंकि इसके बाद भारत के विभिन्न हिस्सों में हिंदू-मुस्लिम दंगों में बहुत खून बहा.

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पुलिस
AFP/GETTY IMAGES
पुलिस

कांग्रेसी की कमज़ोरी ने दिया दम

दंगों से सबसे अधिक प्रभावित मुंबई हुआ, जहां लगभग 900 लोग मारे गए और पुलिस पर हिंदुओं का पक्ष लेने का आरोप भी लगा.

लेकिन गुज़रते समय में दंगे थम गए और अयोध्या में उस मस्जिद की जगह मंदिर निर्माण का अभियान अपनी गति खो गया.

बीजेपी को उम्मीद थी कि मस्जिद का विध्वंस उनके पक्ष में हिंदू मतदाताओं को गोलबंद कर देगा लेकिन 1993 में हुए तीन राज्यों के विधानसभा चुनवों में वो सरकार बनाने में कामयाब नहीं हो पाई. और इनमें से एक राज्य उत्तर प्रदेश भी था.

साल 1995 के बाद हुए आम चुनावों में बीजेपी ने धीरे-धीरे पकड़ बनानी शुरू की और 1999 में वो एक स्थायी गठबंधन सरकार बनाने में कामयाब रही.

लेकिन केंद्र में पहली बार बीजेपी के सत्ता तक पहुंचने का कारण, उसकी मुख्य विपक्षी कांग्रेस पार्टी का अंदरूनी उथल-पुथल था.

पूर्व कांग्रेसी प्रधानमंत्री राजीव गांधी की 1991 में हत्या हो गई थी, जिसने पार्टी को नेहरू-गांधी परिवार की ओर से नेतृत्वविहीन कर दिया. इसी परिवार ने आज़ादी के बाद से पार्टी को एकजुट कर रखा था.

एकमात्र संभावित उम्मीदवार, राजीव गांधी की इटली में जन्मी विधवा सोनिया ने राजनीति में शामिल होने से इनकार कर दिया था.

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अटल बिहारी वाजयेपी और नरसिम्हा राव
TEKEE TANWAR/AFP/GETTY IMAGES
अटल बिहारी वाजयेपी और नरसिम्हा राव

हिंदुत्व पर बीजेपी में पसोपेश

इसके बाद आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और लंबे समय से केंद्र सरकार में मंत्री रह चुके नरसिम्हा राव को अल्पमत सरकार का मुखिया चुना गया.

मस्जिद की रक्षा करने में उनकी नाकामी को उनके प्रतिद्वंद्वियों ने उनको नीचा दिखाने के लिए इस्तेमाल किया और आरोप लगाए कि वो एक सेक्युलर कांग्रेसी की बजाय एक हिंदू राष्ट्रवादी थे.

इस मुद्दे पर पार्टी में विभाजन हुआ और जब 1996 का आम चुनाव आया तो पार्टी खुद से जूझ रही थी.

लेकिन जब बीजेपी ने 1999 में एक स्थायी गठबंधन सरकार बना ली तो न तो तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और ना ही उस समय बीजेपी में नंबर दो पर रहे सबसे शक्तिशाली लालकृष्ण आडवाणी ही मानते थे कि अयोध्या ने इतना अधिक हिंदू वोट उनके पक्ष में ला खड़ा किया है कि वो अपनी पार्टी के हिंदू राष्ट्रवादी या हिंदुत्ववादी एजेंडे को लागू कर सकते थे और अयोध्या मंदिर मुद्दे को फिर से ज़िंदा कर सकते थे.

उनको लगता था कि अगर उनका गठबंधन बनाए रखना है और अगला चुनाव जीतने के लिए आबादी के विभिन्न तबकों का समर्थन हासिल करना है तो बीजेपी को अब भी मध्यमार्गी रुख़ अख़्तियार करने की ज़रूरत है.

एक बार आडवाणी ने मुझसे कहा था, "हिंदुत्व इतने प्रकार का है कि वास्तव में आप धर्म के नाम पर हिंदुओं से अपील ही नहीं कर सकते."

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एजेंडे पर हिंदुत्व

बीजेपी में बहुतों का मानना था कि अगर पार्टी ने हिंदू राष्ट्रवाद के बैनर तले हिंदू वोटों को गोलबंद किया होता तो वो 1994 का चुनाव नहीं हारती.

लेकिन ये हार मुख्य रूप से गठबंधन के लिए साथी चुनने में बीजेपी की ग़लती के कारण हुई थी और तब तक सोनिया गांधी कांग्रेस पार्टी को दोबारा एकजुट करने में जुट गई थीं.

और जब वो कमान संभालने को राज़ी हुईं तो पार्टी में एक नई जान आ गई. उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने दस साल तक शासन किया.

इसलिए अयोध्या की घटना, हालांकि बहुत अहम थी, लेकिन फिर भी वो एक ऐसा हिंदू वोट बैंक नहीं बना सकी जो भारत के राजनीतिक फलक को पूरी तरह बदल पाए.

हो सकता है कि वो ऐतिहासिक मोड़ 2014 में बीजेपी की जीत के साथ अपने अंजाम तक पहुंच चुका हो, जिसकी वजह से उसे संसद में पहली बार पूर्ण बहुमत हासिल हुआ और नरेंद्र मोदी के रूप में एक ऐसा प्रधानमंत्री मिला जो हिंदू राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने में झिझकता नहीं है और अपनी पार्टी के हिंदुत्ववादी एजेंडे को लागू करने की शुरुआत कर दी है.

उदाहरण के लिए उनकी सरकार ने पशु बाज़ार में क़त्ल के लिए गायों की ख़रीद पर प्रतिबंध लगा दिया, हिंदी को बढ़ावा दिया जाने लगा और शैक्षणिक और सांस्कृतिक संस्थानों के शीर्ष पदों पर हिंदुत्व के समर्थकों की नियुक्तियां होने लगीं.

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सरकार के एजेंडा में हिंदुत्व कहां है?

नरेंद्र मोदी
AFP
नरेंद्र मोदी

ऐतिहासिक मोड़ पर मोदी

हालांकि मोदी लगातार अपने इस उद्देश्य की घोषणा करते रहे कि वो सभी भारतीयों के लिए भारत का विकास चाहते हैं, लेकन केंद्र और राज्यों में बीजेपी सरकारों में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व न के बराबर बना रहा.

मुख्यमंत्री मोदी को भारत पर शासन करने के लिए देश के जिस सबसे अधिक आबादी वाले और राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश से चुना गया, वो मुसलमानों के प्रति आक्रामकता के लिए जाना जाता है.

लेकिन मोदी केवल हिंदू वोटों के बूते ही नहीं चुनाव जीते. उनके चुनावी अभियान का मुख्य मुद्दा भारत का विकास और बदलाव था.

उनके अभियान की सफलता इस बात पर भी निर्भर रही कि कांग्रेस फिर से उथल-पुथल के दौर में पहुंच गई थी.

इस बात के पहले भी संकेत थे कि गोहत्या पर प्रतिबंध को वो कुछ नरम करेंगे क्योंकि इसका किसान मतदाताओं पर बहुत असर पड़ा है.

हिंदुत्व बहुत से पंथों वाला धर्म अभी भी बना हुआ है और भारत बहुत विविधता वाला देश है जिसकी पुरानी जड़ें बहुलतावादी परम्पराओं वाली रही हैं.

इसलिए, मेरे दिमाग में अभी ये साफ़ नहीं है कि मोदी उस ऐतिहासिक मोड़ तक पहुंचेंगे या वहां तक पहुंचने की मंशा रखते हैं कि नहीं, जहां धर्मनिरपेक्ष भारत का अंत हो जाएगा और एक हिंदू राष्ट्र अस्तित्व में आ जाएगा.

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English summary
Babri demolition What did the BJP lose what did he found
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