चरमपंथी हमले मारे गए पुलिसकर्मी बाबर के घर का हाल
श्रीनगर के श्री महाराजा हरि सिंह अस्पताल में हुए चरमपंथी हमले में जम्मू-कश्मीर पुलिस के जवान बाबर और मुश्ताक मारे गए थे
चरमपंथी हमले में मारे गए जम्मू-कश्मीर पुलिस के जवान बाबर अहमद के गांव में दाखिल होते ही लोगों की भारी भीड़ दिखती है जो बाबर के जनाज़े में शामिल होने के लिए सड़क के दोनों ओर इंतज़ार कर रहे थे.
सड़क से पैदल चलकर क़रीब आधे किलोमीटर की दूरी पर पहाड़ी पर बने बाबर के घर में महिलाओं के रोने की आवाज़ें आ रही थीं.
मंगलवार को बाबर अहमद और उनके दूसरे साथी मुश्ताक़ अहमद की श्रीनगर के श्री महाराजा हरि सिंह अस्पताल में एक चरमपंथी हमले में मौत हो गई थी. हमले के बाद हमलावरों के साथ फ़रार हुआ पाकिस्तानी क़ैदी लश्कर-ए-तैयबा का हाई प्रोफ़ाइल कमांडर नवेद जट्ट था.
'रविवार को आखिरी बार देखा'
बाबर साल 2011 में पुलिस में भर्ती हुए थे उनका एक और भाई भी पुलिस में हैं. बाबर दक्षिणी कश्मीर के बारिअंग के निवासी थे जबकि मुश्ताक़ उतरी कश्मीर के करनह इलाक़े से थे.
बाबर के एक मंज़िला माकन में दाखिल होने पर घर के अंदर अफरा-तफरी का माहौल देखने को मिलता है. बाबर कि पत्नी शकीला रोते हुए बोलती हैं, ''तुझ पर कुर्बान जवां, कहां गया, किस ने मारा मेरे गुलाब को?''
शकीला ने अपने पति को आखिरी बार बीते रविवार को देखा था, वे कहती हैं, ''आज सुबह उन्होंने मुझ से फ़ोन पर बात की और कहा कि मैं कल घर आउंगा, फोन पर मुझसे ये भी कहा कि बेटी से बात करवा दो, उन्होंने बेटी से बात भी की, लेकिन दस बजे के बाद से उनका फोन बंद हो गया.''
अपने जज़्बातों से बेक़ाबू होकर शकीला सवालिया अंदाज़ में पूछती हैं, ''मझे इस बात का जवाब दो कि पुलिसकर्मियों के पास हथियार क्यों नहीं थे? मैं साहब से पूछूंगी कि जब उन्हें पता था कि वहां चरमपंथी हैं तो फिर दो ही लोगों को क्यों भेजा?
इसके बाद शकीला बात करने से इंकार कर देती हैं और अपनी बेटी को सीने से लगाकर रोने लगती हैं.
'सरकार कुछ हल निकाले'
बाबर की दो बेटियां हैं, एक तीन साल की दूसरी एक साल की. पूरे घर में सिर्फ रोने की ही आवाजें सुनाई पड़ रही थीं.
बाबर के सबसे बड़े भाई मंजूर अहमद कहते हैं कि हमने तो कभी नहीं सोचा था कि भाई कि लाश इस तरह घर आएगी.
उनका कहना था, ''मुख्यमंत्री को कुछ न कुछ करना चाहिए, चरमपंथी भी मुसलमान हैं और पुलिस के लोग भी, दोनों तरफ से मुसलमान मर रहे हैं, इस मसले का कुछ तो फैसला होना चाहिए.''
एक और रिश्तेदार शाबिर अहमद खान कहते हैं कि दोनों तरफ से कश्मीरी भाई मर रहे हैं सरकार कुछ सोचती नहीं है.
बाबर के एक और रिश्तेदार अब्दुल रशीद कहते हैं, ''जब तक दोनों देश बातचीतन नहीं करेंगे तब तक हम ऐसे ही मरते रहेंगे, हम कब तक बर्दाश्त करेंगे.''
अब्दुल रशीद आगे कहते हैं, ''यहां कई मसले हैं, रोजगार का मसला, ज़िंदगी का मसला. इन मसलों का हल ढूंढना तो सरकारों का काम है, जहां देखों सिर्फ क़ब्रें मिलती हैं. कब तक हम ये खून देखते रहेंगे?''
चरमपंथी हमलों में जम्मू-कश्मीर पुलिस के जवानों के मारे जाने पर गांव के एक बुजुर्ग ने अपना नाम न बताने की शर्त पर कहा, ''जिस तरह से बीते कुछ सालों में जम्मू-कश्मीर पुलिस के विशेष दस्ते ने चरमपंथियों के ख़िलाफ़ ऑपरेशन में भाग लेना शुरू किया, तभी से पुलिस हर एक जवान चरमपंथियों के निशाने पर आ गए.''
बीते कुछ सालों में जम्मू-कश्मीर पुलिस के दर्जनों पुलिसकर्मी चरमपंथी हमलों में मारे गए हैं.