अयोध्या फैसला: अयोध्या राम मंदिर आंदोलन के ये हैं असली योद्धा !
बेंगलुरु। अयोध्या में राम मंदिर बनने का रास्ता साफ हो गया है। देश की सर्वोच्च अदालत के सबसे बड़े फैसले में अयोध्या की विवादित जमीन पर रामलला विराजमान का हक माना है। अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण की लड़ाई वर्षों पुरानी हैं।अयोध्या में रामजन्मभूमि आंदोलन के शुरू होते ही देश की सियासत में भाजपा का एक नया रूप सामने उभरा था। सियासत में हिंदुत्व का तानाबाना बुनकर भाजपा ने लोगों के बीच पैठ इसी आंदोलन के द्वारा बनाई।
इस आंदोलन ने भाजपा को कई कोहिनूर दिए। इतना ही नहीं इन दिग्गजों ने रामजन्मभूमि आंदोलन के द्वारा देश की सियासत में खुद को स्थापित किया। इस आंदोलन को बड़े स्तर पर पहुंचाने में न केवल भाजपा के नेताओं का योगदान रहा बल्कि विश्व हिंदू परिषद, शिवसेना के बड़े नेता शामिल हैं, जिन्होंने अपना पूरा जीवन इस मुहिम पर न्यौछावर कर दिया। इनमें भाजपा के लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, कल्याण सिंह, विनय कटियार के अलावा शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे, विश्व हिन्दू परिषद के अशोक सिंघल का नाम प्रमुख हैं।
लाल कृष्ण आडवाणी
भाजपा के पितामह लाल कृष्ण आडवाणी जिन्होंने अविभाजित भारत के सिंध प्रांत में 8 नवंबर 1927 को जन्म लिया। वह भारत पाकिस्तान के बंटवारे के बाद भारत आए। महज 14 वर्ष की उम्र में वह संघ से जुड़ गए। बीजेपी की राजनीति को ऐतिहासिक माइलेज राम मंदिर आंदोलन से ही मिला और इसका सबसे बड़ा चेहरा थे लाल कृष्ण आडवाणी। उन्होंने 1990 में अयोध्या में राममंदिर बनवाने के पक्ष में माहौल बनाने के लिए सबसे पहले गुजरात से सोमनाथ यात्रा की शुरुआत की थी। सितंबर 1990 में उन्होंने राम जन्मभूमि आंदोलन को आगे बढ़ाते हुए दक्षिण से अयोध्या तक 10 हजार किलोमीटर लंबी रथयात्रा शुरू की थी। लाल कृष्ण आडवाणी की इस रथयात्रा से भाजपा की लोकप्रियता खूब बढ़ी। लोगों के सामने आडवाणी के भाजपा के सबसे बड़े हिन्दुत्व का चेहरा बन गए। देश के कोने-कोने से इसी यथ यात्रा के बाद कारसेवक अयोध्या में पहुंचे। इसी यात्रा के साथ पूरे देश में नारा गूंजा "रामलला हम आएंगे मंदिर वही बनाएंगे"। 1992 में विध्वंस के दौरान आडवाणी भी अयोध्या में मौजूद थे। कोर्ट में विध्वंस संबधी विवाद में चल रहे मामले के आरोपियों में इनका नाम भी शामिल हैं।
मुरली मनोहर जोशी
राममंदिर आंदोलन में मुरली मनोहर जोशी की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही। छह दिसंबर को अयोध्या में जब विवादित ढ़ाचा गिराया गया तब आडवाणी के अलावा वह भी वहां मौजूद थे। मुरली मनोहर जोशी ने इस आंदोलन के तहत जोशीले भाषणों से लोगों को बहुत प्रभावित किया था। उनके भाषणों ने आंदोलन को बहुत गति दी थी। मुरली मनोहर जोशी समेत कई बीजेपी नेताओं पर आरोप लगा कि 28 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट से प्रतीकात्मक कारसेवा का फैसला हो जाने के बाद भी इन लोगों ने पूरे प्रदेश में सांप्रदायिकता से ओत-प्रोत भाषण दिए, जिनसे सांप्रदायिक जहर फैला।
कल्याण सिंह
जब भी राममंदि आंदोलन की चर्चा छिड़ती है उसमें सबसे पहले उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री भाजपा के भाजपा के दिग्गज नेता कल्याण सिंह का नाम सबसे पहले आता हैं। राजस्थान और हिमाचल प्रदेश के पूर्व राज्यपाल कल्याण सिंह जिन्होंने दो बार उत्तर प्रदेश के मुख्यममंत्री की कुर्सी संभाली। उन्होंने राममंदिर आंदोलन में जो सक्रिय भूमिका निभाई उसने भाजपा को नयी बुलंदियों पर पहुंचाया। मस्जिद गिराए जाने के वक्त कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। उन पर आरोप है कि उग्र कारसेवकों को उनकी पुलिस और प्रशासन ने जानबूझकर नहीं रोका। इसी आंदोलन के चलते उन्हें उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री की कुर्सी तक गंवानी पड़ी थी। कल्याण सिंह उन 13 लोगों में हैं, जिन पर मूल चार्जशीट में मस्जिद गिराने की ‘साजिश' में शामिल होने का आरोप लगा। इसके मुताबिक, 1991 में CM पद की शपथ लेने के बाद कल्याण सिंह ने मुरली मनोहर जोशी और दूसरे नेताओं के साथ अयोध्या जाकर शपथ ली थी कि विवादित जगह पर ही मंदिर बनेगा। इस आंदोलन के तहत कल्याण सिंह ने जमकर बयानबाजी की जिसके चलते वह सदा सुर्खियों में छाए रहे। कोर्ट में चल रहे विध्वंस मामले में वह भी एक आरोपी हैं।
उमा भारती
1984 में भागवतकथा वाचक उमा भारती पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ीं और हार गईं । 1989 और फिर 1991 में वे मध्य प्रदेश की खजुराहो सीट से लोकसभा चुनाव जीत गईं। लेकिन उनका राजनीतिक कद बढ़ा राम जन्मभूमि आंदोलन में उनकी भूमिका से ही बढ़ा। उमा भारती के उग्र भाषणों से आंदोलन को गति मिली और महिलाएं बड़ी संख्या में कारसेवा के लिए पहुंचीं। 6 दिसंबर को जब ढांचा गिराया गया, वे अन्य बीजेपी और वीएचपी नेताओं के साथ मौके पर थीं. लिब्रहान आयोग ने बाबरी ध्वंस में उनकी भूमिका दोषपूर्ण पाई। भारती ने भीड़ को उकसाने के आरोपों से इनकार किया। लेकिन ये भी कहा कि उन्हें इसका कोई अफसोस नहीं है और वह ढांचा गिराए जाने की नैतिक जिम्मेदारी लेने को तैयार हैं। हिंदुत्व का चेहरा और फायर ब्रांड नेता के तौर पर उनकी पहचान बन चुकी थी। एक समय था भाजपा में उमा भारती की तूती बोलती थी। वहीं उमा भारती ने मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में चुनाव लड़ने से मना कर दिया था। उमा भारती के अलावा ग्वालियर के राजघराने की विजयराजे सिंधिया और साध्वी ऋतंभरा भी आंदोलन की महिला अगुवा थीं। साध्वी ऋतंभरा बाबरी ध्वंस के बाद राजनीतिक रूप से लो-प्रोफाइल हो गईं।
विनय कटियार
राम मंदिर आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए वीएचपी ने 1 अक्टूबर 1984 में अपनी एक ‘दबंग' शाखा बनाई, जिसे ‘बजरंग दल' नाम दिया गया। संघ प्रचारक और दो साल पहले हिंदू जागरण मंच बनाने वाले तेजतर्रार 30 वर्षीय युवक विनय कटियार को इस संगठन का पहला अध्यक्ष बनाया गया। बजरंग दल कार्यकर्ताओं ने जन्मभूमि आंदोलन को उग्र बनाया। इस आदोलन को लेकर कटियार के तेवर शुरू से सख्त थे जो कि अभी बरकरार है। कटियार की कट्टर हिंदुत्ववादी हैं। विध्वंस के दौरान विनय कटियार अयोध्या में मौजूद थे और वो इस मामले में आरोपी हैं। भाजपा के सदस्य कटियार पर कारसेवकों को विवादित ढांचा तोड़ने के लिए उकसाने का आरोप है। विवादित ढांचा गिराए जाने से एक दिन पहले 5 दिसंबर को अयोध्या में विनय कटियार के घर पर एक बैठक हुई, जिसमें आडवाणी के अलावा शिव सेना नेता पवन पांडे भी मौजूद थे। माना जाता है कि इसी बैठक में विवादित ढांचा गिराने का आखिरी फैसला किया गया।
अशोक सिंघल
विश्व हिंदू परिषद के अशोक सिंघल का नाम मंदिर आंदोलन से जुड़े नामों में प्रमुख हैं। इंजीनियर की नौकरी छोड़कर समाजसेवा का रास्ता चुनने वाले सिंघल 20 साल तक विश्व हिन्दू परिषद के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे। श्रीराम जन्मभूमि मंदिर आंदोलन में सिंघल की महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने इस आंदोलन की रणनीति तय की।इस आंदोलन से कारसेवकों को जोड़ने की योजना उन्हीं की थी। उनके ही कारण इस आंदोनल से 50 हजार कारसेवक जुटे। बता दें 1992 में विवादित ढांचा गिराने वाले कारसेवकों का नेतृत्व विहिप के आशोक सिंघल ने ही किया था। एक समय अयोध्या विवाद को फैजाबाद के स्थानीय जमीन विवाद के तौर पर देखा जाता था। ये सिंघल ही थे जिन्होंने इसे राष्ट्रीय आंदोलन बनाया।अयोध्या विवाद पर पहली धर्म संसद बुलाने के लिए सिंघल ने तमाम हिंदू संगठनों को एक मंच खड़ा किया। सिंघल का 2015 में 89 साल की उम्र में निधन हो गया था। वो मूल रूप से संघ के कार्यकर्ता थे जो बाद में विश्व हिंदू परिषद से जुड़े और इसे एक मजबूत संगठन बनाया।आपातकाल के दौरान भी उनकी सक्रिय भूमिका थी।
बालासाहेब ठाकरे
शिवसेना प्रमुख रहे बालासाहेब ठाकरे अपने तेज तर्रार और विवादित भाषणों की वजह से देश भर में सुर्खियों में रहते थे। शिवसेना के बालासाहेब ठाकरे ही थे जिन्होंने छह दिसंबर को जब विवादित ढांचा गिराया तो बड़े गर्व से अयोध्या में शिव सैनिकों की मौजूदगी की बात स्वीकार की थी। अपने बयानों में वह अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की बात करना नहीं भूलते थे। बाला साहेब ठाकरे के समर्थक उन्हें हिंदू हृदय सम्राट कहते थे। इस आंदोलन में जो कारसेवक की इतनी बड़ी संख्या शामिल हुई उसमें बाला साहेब ठाकरे की महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वालों में से एक थे। उनके प्रभावित करने वालों भाषणों से प्रभावित होकर इस आंदोलन से लोग जुड़े।
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