Ayodhya Verdict: जानिए इस फैसले में कौन-कौन हैं पक्षकार जिन्होंने दशकों तक लड़ा मुकदमा
नई दिल्ली। बस कुछ मिनटों का समय बचा है जब देश की सुप्रीम कोर्ट उत्तर प्रदेश के अयोध्या में 2.77 एकड़ की विवादित जमीन पर अपना एतिहासिक फैसला देगा। पांच जजों का संवैधानिक पीठ जिसकी अगुवाई मुख्य न्यायधीश रंजन गोगोई कर रहे हैं, उसकी ओर से साल 2010 में इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर याचिका के खिलाफ अपना जजमेंट देगी। 40 दिनों की सुनवाई के बाद आ रहे एतिहासिक फैसले से पहले देशभर में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला
साल 2010 में इलाहाबाद हाई कोर्ट की ओर से आदेश दिया गया था कि विवादित जमीन को निर्मोही अखाड़ा, सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और रामलला के प्रतिनिधियों के बीच बराबार बांट दिया जाना चाहिए। साल 1992 में बाबरी मस्जिद को ढहा दिया गया था। इस जगह पर तब से ही मंदिर बनाने की बात कही जा रही है। इस मुकदमे में जो पक्षकार रहे हैं वे इस तरह से हैं-
हिंदू पक्ष
निर्मोही अखाड़ा- निर्मोही अखाड़ा साधुओं का एक धार्मिक समूह है। अखाड़े की तरफ से दिसंब 1959 में फैजाबाद के सिविल कोर्ट में केस दर्ज किया गया था जिसमें उन्होंने बाबरी मस्जिद पर मालिकाना हक मांगा था। निर्मोही अखाड़े की तरफ से कहा गया था कि वह भगवान की तरफ से याचिका पर तब तक नहीं लड़ेंगे जब तक कि उसके वकील की तरफ से इसके प्रबंधन के अधिकार की मांग नहीं की जाती।
रामलला विराजमान
रामलला विराजमान को प्रतिनिधित्व त्रिलोकनाथ पांडे करते हैं और पांडे विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के सदस्य हैं। देवकी नंदन अग्रवाल जो कि इलाहाबाद हाई कोर्ट के रिटायर जज हैं, वह पहले 'अगले मित्र' थे।अग्रवाल की तरफ से साल 1989 में केस दायर किया गया था जिसमें रामलला विराजमान और श्रीराम जन्मभूमि का प्रतिनिधित्व करने का दावा किया गया था। पांडे जो कि वीएचपी के सीनियर लीडर हैं वह साल 2002 में अग्रवाल की मृत्यु के बाद अगले मित्र बन गए थे।
आल हिंदू महासभा
हिंदू महासभा ने दिसंबर 2010 में सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था और इसने उस वर्ष सितंबर में आए इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील की थी। हिंदू महासभा की तरफ से फैसले को निरस्त करने की मांग की गई थी।
राम जन्मभूमि न्यास
इस पक्ष को वीएचपी की तरफ से समर्थन मिला है और यह संतों की सर्वोच्च संस्था है। इस संस्था की तरफ से ही सन् 1990 से देश भर में राम मंदिर आंदोलन को आगे बढ़ाने की मुहिम चलाई जा रही है। इस ट्रस्ट को वीएचपी ने शुरू किया था और जनवरी 1993 में इसकी शुरुआत हुइ थी। दिसंबर 1992 में बाबरी मस्जिद को ढहाया गया था। इसके तुरंत बाद संस्था की शुरुआत का मकसद राम मंदिर के निर्माण कार्य को आगे बढ़ाना था।
मुसलमान पक्ष
उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड
सुन्नी वक्फ बोर्ड, सुप्रीम कोर्ट में मुसलमान पक्ष की तरफ से केस लड़ रहा है। इसकी तरफ से एक फरवरी 1961 को फैजाबाद सिविल कोर्ट में केस दायर किया गया था और यह केस तीन अटके पड़े हिंदु केसेज के खिलाफ था। बोर्ड की तरफ से मस्जिद पर मालिकाना हक का दावा किया जाता रहा है।
मोहम्मद इकबाल अंसारी
इकबाल अंसारी इस केस में स्वतंत्र पैरोकार हैं और वह केस में सबसे बूजुर्ग पक्षकार मोहम्मद हाशिम अंसारी के बेटे हैं। हाशिम अंसारी एक लोकल टेटेलर थे जो बाबरी मस्जिद से कुछ कदमों की दूरी पर ही रहते थे। इस केस में वह पहले शिकायतकर्ता थे। साल 2016 में उनका निधन हो गया था और इसके बाद इकबाल अंसारी ने सुप्रीम कोर्ट में जिम्मा संभाला है।
मोहम्मद सादिक
सादिक, जमीयत-उल-उलेमा-ए-हिंद, उत्तर प्रदेश के जनरल सेक्रेटरी थी। उन्होंने जमीयत की तरफ से केस दर्ज कराया था। जमीयत के मौलाना अशद राशिदी, सादिक की मृत्यु के बाद याचिकाकर्ता बन गए।
सेंट्रल शिया वक्फ बोर्ड
सन् 1946 में ट्रायल कोर्ट की तरफ से फैसला दिया गया था कि बाबरी मस्जिद सुन्नी की प्रॉपर्टी है। बोर्ड की तरफ से हमेशा दावा किया जाता रहा है कि यह मस्जिद मुगल बादशाह बाबर के शिया कमांडर मीर बकी की थी जिन्होंने इस मस्जिद का निर्माण कराया था न बाबर ने जो कि एक सुन्नी थे। शिया वक्फ बोर्ड भी इलाहाबाद हाई कोर्ट में पक्षकार था और साल 2017 में सन् 1946 के फैसले को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था।