क्विक अलर्ट के लिए
अभी सब्सक्राइव करें  
क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

राम जन्मभूमि विवाद में ऐतिहासिक फैसले तक कैसे पहुंचा सुप्रीम कोर्ट ? जानिए

Google Oneindia News

नई दिल्ली- राम जन्मभूमि विवाद में फैसला देने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने इतिहास, पुरातत्व, धर्म और कानून सभी पहलुओं पर विचार किया है, तभी इतना सुलझा हुआ और ऐतिहासिक निर्णय सामने आ पाया है। अंतिम नतीजे तक पहुंचने के दौरान सुप्रीम कोर्ट कुछ बेहद ही दिलचस्प विचार रखे हैं, अगर उनपर ध्यान दें तो साफ हो जाता है कि 40 दिन की मैराथन सुनवाई के बाद पांच जजों की संवैधानिक बेंच आखिर कैसे आम सहमति से एक नतीजे पर पहुंच सका। इसमें यह जानना भी दिलचस्प है कि पूरी विवादित जमीन राम लला को ही क्यों दी गई। निर्मोही अखाड़े का दावा खारिज किया गया, लेकिन ट्रस्ट में उसका प्रतिनिधित्व अदालत ने ही क्यों तय किया और मस्जिद बनाने के लिए अलग से जमीन देने का निर्देश क्यों दिए गए? यही नहीं अदालत ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को किस आधार पर किनारे रख दिया?

मंदिर के पक्ष में ये रहा

मंदिर के पक्ष में ये रहा

सुप्रीम कोर्ट के पास राम जन्मभूमि की विवादित जमीन की अचल संपत्ति से जुड़े विवाद को निपटाने की जिम्मेदारी थी। अदालत ने मालिकाना हक का फैसला आस्था या विश्वास पर नहीं, बल्कि वहां मौजूद तमाम सबूतों और साक्ष्यों के दम पर ही किया है। मसलन, कोर्ट ने पाया है कि विवादित जमीन के बाहरी प्रांगण में 1857 में ग्रिल और ईंटों की दीवार खड़ी किए जाने के बावजूद हिंदुओं की ओर से वहां बिना रुकावट लगातार पूजा होते रहने के सबूत मौजूद थे। इसमें बाहरी प्रांगण पर उनका कब्जा स्थापित होने के साथ ही उसपर नियंत्रण करने की घटनाएं भी उनके साथ जुड़ गईं। कोर्ट के मुताबिक जहां तक अंदर के प्रांगण का संबंध है इन संभावनाओं के सबूत मौजूद हैं कि 1857 में अवध पर अंग्रेजों के कब्जे से पहले भी हिंदू वहां पूजा करते रहे थे।

मुस्लिम पक्ष के दावों पर ये कहा

मुस्लिम पक्ष के दावों पर ये कहा

अदालत के मुताबिक मुसलमानों ने ऐसा कोई सबूत पेश नहीं किया जिससे यह पता लग सके कि जबसे 16वीं शताब्दी में अंदरुनी ढांचे का निर्माण हुआ था, तबसे 1857 से पहले तक सिर्फ उन्हीं का कब्जा था। ग्रिल और ईंट की दीवार बनने के बाद मस्जिद का ढांचा मौजूद था और ऐसे सबूत उपलब्ध हैं, जिससे उसके अहाते में नमाज अदा किए जाने के संकेत मिलते हैं। लेकिन, 1949 के दिसंबर में वक्फ बोर्ड के इंस्पेक्टर की रिपोर्ट से पता चलता है कि मुसलमानों को नमाज पढ़ने के लिए मस्जिद तक पहुंचने में बाधाओं का सामना करना पड़ता था। हालांकि, इस बात के सबूत मौजूद हैं कि मस्जिद के ढांचे में नमाज पढ़ी जाती थी और 16 दिसंबर, 1949 को आखिरी शुक्रवार की नमाज अदा की गई।

मस्जिद से मुसलमानों का कब्जा ऐसे छूटा

मस्जिद से मुसलमानों का कब्जा ऐसे छूटा

अदालत के फैसले में कहा गया है कि 22-23 दिसंबर,1949 की दरमियानी रात हिंदू देवता की प्रतिमा स्थापित किए जाने के साथ ही मस्जिद से मुसलमानों का कब्जा छूट गया और उनकी ओर से की जाने वाली इबादत रुक गई। हालांकि, उस वक्त मुसलमानों को उनकी इबादत स्थल से इस तरह से बाहर किया जाना किसी कानूनी प्राधिकार के तहत नहीं था। बाद में एक रिसीवर भी नियुक्त किया गया और अंदर के प्रांगण को अटैच भी किया गया, लेकिन हिंदू देवता की प्रतिमा की पूजा की इजाजत दी गई। मुकदमें की सुनवाई के दौरान ही मस्जिद का ढांचा गिरा दिया गया और मुसलमानों को गलत तरीके से उस मस्जिद से वंचित किया गया, जिसे 450 वर्षों से भी पहले अच्छी तरह बनाया गया था।

हाई कोर्ट के फैसले में क्या थी दिक्कत

हाई कोर्ट के फैसले में क्या थी दिक्कत

अदालत ने कहा कि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने जिस तरह से फैसला दिया था, उसे धरातल पर उतारना संभव नहीं था। इससे न तो तीनों में से किसी पार्टी का हित ही सध रहा था और न ही उससे हमेशा के लिए शांति और सौहार्द ही कायम रखा जा सकता था। इसलिए, अदालत ने विवादित जमीन पर रामलला का स्वामित्म माना है, निर्मोही अखाड़े के दावे को खारिज कर दिया है और मंदिर ट्रस्ट में उसे प्रतिनिधित्व दिए जाने का निर्देश दिया है और सुन्नी वक्फ बोर्ड को 5 एकड़ जमीन देने का आदेश भी दिया है। गौरतलब है कि हाई कोर्ट ने तीनों पक्षों को विवादित जमीन पर ही अलग-अलग हिस्सा तय किया था।

आर्टिकल-142 का इस्तेमाल

आर्टिकल-142 का इस्तेमाल

अपने फैसले में कोर्ट ने साफ किया है कि मुस्लिमों को जमीन देना जरूरी है, क्योंकि संभावनाओं के संतुलन और कब्जे के सबंध में सबूत मुस्लिमों से ज्यादा हिंदुओं के पक्ष में हैं। लेकिन, मुसलमानों को पहले 22-23 दिसंबर, 1949 और आखिरकार 6 दिसंबर, 1992 को उनकी मस्जिद से वंचित कर दिया गया। उन्होंने मस्जिद छोड़ी नहीं थी। इसलिए, अदालत ने आर्टिकल 142 का इस्तेमाल करके उन गलतियों को सुधारने की कोशिश की है, जो ढांचे के साथ की गई है। इसके साथ ही कानून का शासन और सभी विश्वासों के प्रति संविधान समानता की भावना को भी कोर्ट ने स्थापित किया है। इसी तरह कोर्ट ने निर्मोही अखाड़े की जमीन पर स्वामित्व के दावे को तो खारिज किया है, लेकिन राम जन्मभूमि स्थान से उसके ऐतिहासिक जुड़ाव को ध्यान में रखते हुए आर्टिकल 142 के तहत ही मंदिर निर्माण और उसके प्रबंधन के लिए बनाए जाने वाले ट्रस्ट में उसे भी जगह देना सुनिश्चित किया है।

इसे भी पढ़ें- Ayodhya Verdict: ऐसा हो सकता है अयोध्‍या में राममंदिर का स्‍वरुपइसे भी पढ़ें- Ayodhya Verdict: ऐसा हो सकता है अयोध्‍या में राममंदिर का स्‍वरुप

Comments
English summary
Ayodhya Verdict,How Supreme Court reached verdict in Ram Janmabhoomi dispute?
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X