अयोध्या फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल करेगा मुस्लिम पक्ष: AIMPLB
Recommended Video
लखनऊ। अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर करने का फैसला लिया है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य सैयद कासिम रसूल इलियास ने कहा कि बोर्ड ने फैसला लिया है कि हम अयोध्या मसले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर करेंगे। बता दें कि 9 नवंबर को अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए विवादित स्थल को मंदिर निर्माण के लिए देने का आदेश दिया था, साथ ही मस्जिद निर्माण के लिए अयोध्या के किसी अहम स्थल पर पांच एकड़ जमीन देने का भी आदेश दिया था।
मुसलमान कोई और जमीन स्वीकार नहीं करेंगे
बोर्ड की ओर से कहा गया है कि मस्जिद की जमीन के बदले मुसलमान कोई और जमीन को स्वीकार नहीं करेंगे। हमने फैसला लिया है कि हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर करेंगे। बोर्ड ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कई अंतर्विरोध हैं, जब बाहर से मूर्ति लाकर मंदिर के भीतर रखी गई तो आखिर कैसे उसे देवता मान लिया गया। एएसआई की रिपोर्ट पर भी बोर्ड ने सवाल खड़ा करते हुए कहा कि एएसआई की रिपोर्ट में यह साबित नहीं हो पाया है कि मस्जिद का निर्माण किसी मंदिर को तोड़कर किया गया है। कोर्ट ने खुद इस बात को माना है कि मस्जिद को किसी मंदिर को तोड़कर नहीं बनायाा गया है।
गुंबद के नीचे मंदिर होने के प्रमाण नहीं
पर्सनल लॉ बोर्ड की ओर से कहा गया है कि 1949 में मस्जिद के भीतर मूर्ति को रखे जाने को सुप्रीम कोर्ट ने गैर कानूनी माना है। यही नहीं बोर्ड ने कहा कि गुंबद के नीचे जन्मभूमि होने का कोई प्रमाण नहीं मिला है। खुद सुप्रीम कोर्ट ने इस बात को माना है। कोर्ट ने इस बात को भी माना है कि बाबरी मस्जिद में आखिरी नमाज 16 सितंबर 1949 को पढ़ी गई थी।
हमे मालूम है याचिका खारिज हो जाएगी
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की बैठक तकरीबन तीन घंटे तक चली। बैठक के बाद जमीयत उलेमा हिन्द के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि हमें मालूम है रिव्यू पेटिशन 100 फीसदी खारिज कर दी जाएगी, लेकिन फिर भी हमारा यह हक है। इससे पहले मदनी ने कहा था कि कोर्ट का फैसला समझ से परे है। कानून और न्याय की नजर में वहां बाबरी मस्जिद थी और है और कयामत तक मस्जिद ही रहेगी, फिर चाहे उसको कोई भी नाम या स्वरूप क्यों न दे दिया जाए।