अयोध्या फैसले के बाद क्या काशी-मथुरा का विवाद पहुंचेगा कोर्ट? SC ने दिया ये जवाब
नई दिल्ली। अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सबसे बड़ा सवाल यह खड़ा हो रहा था कि क्या इस फैसले के बाद इस तरह के अन्य धार्मिक मामलों की कोर्ट में कतार लग जाएगी। लोगों के मन में यह सवाल था कि क्या प्रार्थना स्थल को लेकर कोर्ट में याचिकाओं की लंबी फेहरिस्त लेगेगी। लेकिन इन सवालों पर सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले के दौरान ही विराम लगा दिया है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि इतिहास में की गई गलती का इलाज लोगों द्वारा कानून को हाथ में लेना नहीं है।
इस तरह विवाद के लिए नहीं खुले हैं कोर्ट के दरवाजे
राम मंदिर के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद एक तबका ऐसा भी था जो देश के अन्य हिस्सों में इस तरह के विवाद को कोर्ट पहुंचाना चाहता है, जिसमे मुख्य रूप से काशी व मथुरा आते हैं, जहां पर अयोध्या की ही तरह मस्जिद स्थित है। पांच जजों की बेंच ने हाई कोर्ट के जज डीवी शर्मा की राय को दरकिनार करते हुए कहा कि अयोध्या फैसले के बाद इस तरह के धार्मिक प्रार्थना स्थल से जुड़े विवाद के लिए कोर्ट के दरवाजे नहीं खुल गए हैं।
हाई कोर्ट का फैसला
अयोध्या विवाद पर इलाहाबाद हाई कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने फैसला सुनाया था। इस फैसले में जस्टिस शर्मा ने कहा था कि अगर धार्मिक स्थल पर प्रार्थना की अनुमति पहले प्राप्त थी तो इससे जुड़े मामलों की सुनवाई प्रार्थना स्थल एक्ट (प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट) कानून के अनुसार ही होगी। कोर्ट के इस फैसले के बाद सभी धार्मिक विवाद की सुनवाई कोर्ट को करनी पड़ती। यही नहीं देश की आजादी के बाद से जितने भी इस तरह के विवाद हैं, उसपर कोर्ट को सुनवाई करनी पड़ती। लेकिन राम जन्मभूमि विवाद को इस एक्ट से अलग रखा गया है।
भविष्य में ना की जाए छेड़छाड़
हाई कोर्ट के फैसले को दरकिनार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कानून के तहत किसी भी धार्मिक स्थल का परिवर्तन नहीं किया जा सकता है, साथ ही कोर्ट ने कहा कि भविष्य में लोगों द्वारा जहां पर प्रार्थना की जाती है उस प्रार्थना स्थल को सुरक्षित रखा जाए और इससे छेड़छाड़ ना की जाए। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि प्रार्थना स्थल को लेकर संसद ने जो कानून बनाया है, उसमे यह कतई नहीं कहा गया है कि इतिहास में कुछ गलत किया गया है तो उसे आधार बनाकर मौजूदा समय या फिर भविष्य में प्रार्थना स्थल से कोई छेड़छाड़ की जाए।
धार्मिक स्थल को सुरक्षित रखा जाएगा
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कानून का काम है संविधान द्वारा दिए गए मौलिक मूल्यों की रक्षा की जाए। कोर्ट ने कहा कि एक्ट को इस आधार पर तैयार किया गया है कि भूतकाल में लोगों के साथ हुई नाइंसाफी और उनके जख्म पर मरहम लगाया जा सके और सभी धर्म समुदाय के लोगों को यह भरोसा दिया जा सके कि उनके प्रार्थना स्थल सुरक्षित रहेंगे और उनके मूल स्वभाव को नहीं बदला जाएगा। कोर्ट ने कहा कि धार्मिक प्रार्थना स्थल एक्ट भारत के सभी धर्मों की समानता के विश्वास को प्रदर्शित करता है।
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