अयोध्या राम मंदिर केसः क्या होगा कोर्ट का फैसला? जानिए किसकी दलील में कितना दम!
बेंगलुरू। अयोध्या राम मंदिर विवाद पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ की सुनवाई अंतिम दौर में पहुंच चुकी हैं। मंगलवार, 6 अगस्त से सुप्रीम कोर्ट लगातार मामले की सुनवाई कर रही है। विवादित परिसर अपने दावों को लेकर हिंदू और मुस्लिम पक्षकारों के वकीलों ने मंदिर और मस्जिद को लेकर दलीलें पेश की। लगातार 39वें दिन से चल रहे ट्रायल के दौरान कोर्ट परिसर के माहौल और मिज़ाज दोनों में लगातार परिवर्तन देखा गया। बहस के दौरान दोनों पक्षकारों ने अपने दावों की मजबूती देने के लिए दलीलें पेश की गई।
देश के सबसे बड़े सांप्रदायिक केस की करीब दो महीने तक चले ट्रायल के दौरान हिंदू और मुस्लिम पक्षकारों के वकीलों द्वारा पेश किए जाए दलीलों और नजीरों पर कोर्ट परिसर का तापमान भी घटता-बढ़ता रहा। बावजूद इसके चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई में 5 सदस्यीय संवैधानिक पीठ द्वारा ट्रायल को शांतिपूर्ण तरीके से लगभग पूरा कर लिया। संवैधानिक पीठ में शामिल 5 सदस्यीय पीठ में जस्टिस एस. ए. बोबडे, जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस एस. ए. नजीर और चीफ जस्टिस रंजन गोगई शामिल हैं।
निर्मोही अखाड़े की दलील और विवादित परिसर पर दावा
कोर्ट ट्रायल के पहले निर्मोही अखाड़ा ने सुप्रीम कोर्ट की पीठ के सामने अपनी दलील पेश की। निर्मोही अखाड़े ने कोर्ट को बताया कि वर्ष 1850 से ही हिंदू पक्ष विवादित स्थान पर पूजा करता आ रहा है, लेकिन ब्रिटिश काल में ऐसा लागू नहीं रह सका था। हालांकि, ब्रिटिश काल में भी रामलला के दर्शन की सुविधा जारी रही थी। निर्मोही अखाड़े के वकील सुशील जैन ने विवादित स्थल के आंतरिक कोर्ट यार्ड पर अपने मालिकाना हक का दावा किया।
इस पर निर्मोही अखाड़े के वकील ने कहा कि सैकड़ों वर्षों से उक्त जमीन और मन्दिर पर अखाड़े का कब्ज़ा रहा है और यह कब्जा अखाड़े के रजिस्ट्रेशन से पहले भी रहा है। इस दौरान निर्मोही अखाड़े ने सदियों पुराने रामलला की सेवा पूजा व मन्दिर प्रबंधन के अधिकार को छीने जाने और विवादित स्थल पर मुस्लिम पक्ष के दावे को गलत बताया।
निर्मोही अखाड़े के मुताबिक विवादित पूरी जमीन अखाड़े के पास रही है और 6 दिसंबर 1949 को आखिरी बार जन्मभूमि पर निर्मित मस्जिद में नमाज़ पढ़ी गई थी। दलील में उन्होंने आगे कोर्ट को बताया कि वर्ष 1961 में वक्फ बोर्ड ने विवादित स्थल पर अपना दावा दाखिल किया जबकि मुस्लिम कानून के तहत कोई भी व्यक्ति जमीन पर कब्जे की वैध अनुमति के बिना मस्जिद निर्माण नहीं कर सकता है। ऐसे में विवादित भूमि पर जबरन कब्जा करके बनाई गई मस्जिद गैर-इस्लामिक है, वहां अदा की गई नमाज़ तक कबूल नहीं होती है।
निर्मोही अखाड़े के वकील सुशील जैन ने संविधान पीठ से विवादित भूमि पर ओनरशिप और कब्जे की मांग करते हुए कहा कि ओनरशिप का मतलब मालिकाना हक नहीं बल्कि कब्जे से है इसलिए उन्हें रामजन्मभूमि पर क़ब्ज़ा दिया जाए। इस पर को जस्टिस चंद्रचूड़ ने निर्मोही अखाड़ा से पूछा कि वो किस आधार पर जमीन पर अपना हक जता रहे हैं औक दलील देते हुए कहा कि विवादित परिसर पर बिन मालिकाना हक के पूजा-अर्चना किया जा सकता है, लेकिन पूजा करना और मालिकाना हक जताना दोनों अलग-अलग बात है।
जजों ने विवादित भूमि पर निर्मोही अखाड़े कब्जा मांगने पर उनसे पूछा कि क्या उनके पास इस बात का कोई सबूत हैं, जिससे आप साबित कर सके कि राम जन्मभूमि की जमीन पर उनका कब्जा है, लेकिन इसके जवाब में निर्मोही अखाड़ा ने अपनी दलील में बताया कि सबूत नहीं है, क्योंकि वर्ष 1982 में एक डकैती में संबंधिक सभी कागजात खो गए थे।
रामलला विराजमान की दलील और विवादित परिसर पर दावा
निर्मोही अखाड़े के बाद संविधान पीठ के सामने रामलला विराजमान के वकील के.परासरन ने विवादित परिसर पर राम की जन्म भूमि होने के पक्ष में तर्क दिए। इनमें से एक यह था कि ब्रिटिश राज में भी ईस्ट इंडिया कम्पनी ने जब इस स्थान का बंटवारा किया तो मस्जिद की जगह विवादित भूमि को राम जन्म स्थान का मंदिर माना। उन्होंने कोर्ट से कहा कि जब कोर्ट किसी संपत्ति को जब्त करता है तो कब्जाधारी के अधिकार को मामले के निपटारे तक छीना नहीं जाता है।
इसके बाद रामलला विराजमान के वकील ने तर्क दिया कि वाल्मिकी रामायण में तीन बार लिखा हुआ है कि भगवान राम अयोध्या में पैदा हुए थे, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने पूछ लिया कि क्या जीसस क्राइस्ट बेथलहम में पैदा हुए थे, तो वकील बगले झांकने लगे। इसके अलावा ऐतिहासिक साक्ष्य देते हुए वकील ने बताया कि अंग्रेजों के ज़माने की अदालत ने एक फैसले में बाबर निर्मित मस्जिद और जन्मस्थान मन्दिर का ज़िक्र किया है।
रामलला विराजमान ने कोर्ट में दलील के दौरान रामलला जन्मस्थान को एक गंभीर बात कही। उन्होंने कहा कि रामलला जन्मस्थान को लेकर सटीक स्थान की आवश्यकता नहीं है और आसपास के क्षेत्रों से भी इसका मतलब हो सकता है। उन्होंने कहा कि हिंदू और मुस्लिम पक्ष दोनों ही विवादित क्षेत्र को जन्मस्थान कहते हैं। इसलिए इसमें विवाद नहीं है कि ये भगवान राम का जन्मस्थान है। उन्होंने कोर्ट को बताया कि मजिस्ट्रेट ने CRPC की धारा 145 के तहत रामलला विराजमान की सम्पत्ति अटैच कर दी थी और उसके बाद मुकदमे में रामलला को पक्षकार बनाया था और रामजन्म भूमि को मुद्दई मानने से इनकार कर दिया था।
उन्होंने बताया चूंकि रामलला नाबालिग हैं, इसलिए उनके दोस्त मुकदमा लड़ रहे हैं। सुनवाई कर रहे जस्टिस भूषण ने रामलला के वकील से पूछा कि क्या जन्मस्थान को व्यक्ति माना जा सकता है, जिस तरह उत्तराखंड की हाईकोर्ट ने गंगा को व्यक्ति माना था. इस पर परासरण ने कहा कि हां, रामजन्म भूमि व्यक्ति हो सकता है और रामलला भी, क्योंकि वो एक मूर्ति नहीं, बल्कि एक देवता हैं, हम उन्हें सजीव मानते हैं।
सुन्नी वक्फ बोर्ड की दलील और विवादित परिसर पर दावा
सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर वकील सतीध धवन ने दावा किया कि विवादित परिसर पर वर्ष 1934 से पहले इमारत के भीतरी हिस्से में नमाज पढ़ी जाती थी। उन्होंने ने कोर्ट से कहा कि कुछ हिंदू प्रतीक चिन्ह मिलने से विवादित परिसर पर हिंदुओं का दावा नहीं हो जाता। उन्होंने कोर्ट के सामने मान लिया कि बाहरी हिस्से में निर्मोही अखाड़े के लोग पूजा करते थे, जिन्हें विवादित परिसर के अंदर भी कब्जा देने की कोशिश की गई, यह पूरा विवाद इसी का नतीजा है।
सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से विवादित स्थान पर मालिकाना हक का दावा करते हुए वकील राजीव धवन ने कहा कि वहां 1528 से जबसे मस्जिद बनी है सिर्फ मुसलमानों का ही अधिकार रहा है। मुसलमान ही उस जगह के मालिक हैं। उनका मुकदमा समयबाधित नहीं है। वहीं दूसरे वकील जफरयाब जिलानी ने 1862 की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए जन्मस्थान को एक अलग मंदिर बताया दिया। कहा गया कि राम कोट भगवान राम का जन्मस्थान है।
इस पर जस्टिस बोबड़े ने उन्हें बताया कि उनके गजेटियर में कहा गया है कि राम चबूतरा ही राम का जन्म स्थान है, जो केंद्रीय गुम्बद से 40 से 50 फ़ीट दूर है। इसके बाद जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि सभी गेजेटियर इस बात का इशारा करते है कि राम चबूतरे पर ही भगवान राम का जन्म हुआ था।
सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष ने माना कि राम चबूतरा ही जन्मस्थान है, क्योंकि हिन्दू दावेदार भी सालों से इसी पर विश्वास करते रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस मामले में 1885 में डिस्ट्रिक्ट जज का आदेश है कि हिंदू राम चबूतरे को जनस्थान मानते थे. मुस्लिम पक्षकारों ने कहा कि जब कोर्ट का आदेश है तो हम इससे अलग कैसे हो सकते है। हालांकि बाद में सुन्नी वक्फ बोर्ड ने अपने बयान से पलटते हुए उसने कहा कि वो राम चबूतरे को भगवान राम का जन्मस्थान नहीं मानते हैं।
अयोध्या राम जन्मभूमि पर मस्जिद का दावा करते हुए एकाधिकार और मालिकाना हक मांग रहे मुस्लिम पक्ष से सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि अगर वहां हिंदुओं को पूजा करने का अधिकार था तो क्या इससे मुसलमानों का एकाधिकार का दावा कमजोर नहीं हो जाता। सुनवाई के दौरान न्यायाधीशों के लगातार सवालों से धवन झल्ला गए और कहा कोर्ट सिर्फ उन्हीं से सवाल पूछता है।
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विवादित परिसर पर कमजोर हुआ मुस्लिम पक्ष का दावा
पिछले दो महीने से अयोध्या स्थित विवादित परिसर पर एक ओर जहां हिंदु पक्षकारों का दावा मजबूत हुआ है। वहीं, मुस्लिम पक्षकारों की दलीलें सुनवाई दर सुनवाई कमजोर हुई हैं, क्योंकि मुस्लिम पक्षकारों के पास बताने के लिए बहुत सीमित चीजें हैं। मुस्लिम पक्षकार के वकीलों द्वारा राम चबूतरे को राम जन्म स्थान बताया जाना और फिर अगले दिन बयान से लिया गया यू टर्न उनके दावों और दलीलों की पोल खोल कर रखी दी थी। सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्षकारों को तब माफी मांगनी पड़ गई जब उन्होंने पुरातात्विक खोज में मिली दीवार (नंबर 18) के मंदिर नहीं, ईदगाह की होने की मुस्लिम पक्ष की दलील खारिज कर दी।
राम मंदिर केस पर सुलह के लिए फिर निकला मध्यस्थता का जिन्न
अयोध्या राम मंदिर पर सुनवाई अंतिम चरण में पहुंच रही थी। इसी बीच इंडियान मुस्लिम फॉर पीस नामक एक मुस्लिम संगठन ने अयोध्या मामले का अदालत के बाहर समाधान निकालने की हिमायत करते हुए कहा कि मुल्क में अमन-चैन कायम रखने के लिए मुस्लिम समुदाय के लोग विवादित स्थल को उच्चतम न्यायालय के जरिए केन्द्र सरकार को सौंप देना चाहिए। विभिन्न मुस्लिम तंजीमों के नवगठित छात्र संगठन 'इंडियन मुस्लिम्स फॉर पीस के संयोजक कलाम खान ने कहा कि संगठन की बैठक में पारित प्रस्ताव में कहा गया है कि वो अयोध्या विवाद का अदालत के बाहर हल निकालने का पक्षधर है। हालांकि इससे मुस्लिम वक्फ बोर्ड ने किनारा कर लिया।
मंदिर के पक्ष में आया फैसला तो क्या मान जाएंगे मुस्लिम
अयोध्या राम मंदिर मामले में अगर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ 17 नवंबर को मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाती है तो क्या देश का मुस्लिम समुदाय फैसले को आसानी से स्वीकार कर लेगा। हालांकि अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है कि कि फैसला मंदिर के पक्ष में आएगा अथवा मस्जिद के पक्ष में होगा, यह तो भविष्य के गर्भ में है। यह सवाल मौजू इसलिए भी हैं, क्योंकि बाबरी मस्जिद विध्वंश के 25 वर्ष बाद भी मुस्लिम वर्ग समझौते को लेकर कभी सहज नहीं दिखा है। उसे इस बात का डर भी है कि अगर अयोध्या में मंदिर बन गया तो काशी और मथुरा में भी यह मांग उठनी शुरू हो जाएगी। यही कारण है कि मुस्लिम समुदाय असमंजस में हैं।
वर्ष 2010 में आ गया था राम मंदिर विवाद पर फैसला
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने वर्ष 2010 में सुनाए फैसले में विवादित भूमि को रामजन्मभूमि घोषित किया था। हाईकोर्ट ने बहुमत से निर्णय दिया कि विवादित भूमि जिसे रामजन्मभूमि माना जाता रहा है, उसे हिंदू गुटों को दे दिया जाए। कोर्ट ने यह भी कहा कि वहां से रामलला की प्रतिमा को नहीं हटाया जाएगा। हाईकोर्ट ने यह भी पाया कि चूंकि सीता रसोई और राम चबूतरा आदि कुछ भागों पर निर्मोही अखाड़े का भी कब्ज़ा रहा है इसलिए यह हिस्सा निर्माही अखाड़े के पास ही रहेगा। दो जजों ने यह निर्णय भी दिया कि इस भूमि के कुछ भागों पर मुसलमान प्रार्थना करते रहे हैं इसलिए विवादित भूमि का एक तिहाई हिस्सा मुसलमान गुटों दे दिया जाए, लेकिन हिंदू और मुस्लिम दोनों ही पक्षों ने इस निर्णय को मानने से अस्वीकार करते हुए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित तीन सदस्यों की मध्यस्थ्ता समिति हुई फेल
सुप्रीम कोर्ट ने गत राम मंदिर विवाद को मध्यस्थता के जरिए सुलझाने के लिए 8 मार्च को पूर्व जज जस्टिस एफएम कलीफुल्ला की अध्यक्षता में तीन सदस्यों की समिति गठित की थी। कोर्ट का कहना था कि समिति आपसी समझौते से सर्वमान्य हल निकालने की कोशिश करे। इस समिति में आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर और वरिष्ठ वकील श्रीराम पांचू शामिल थे। समिति ने बंद कमरे में संबंधित पक्षों से बात की, लेकिन हिंदू पक्षकार गोपाल सिंह विशारद ने सुप्रीम कोर्ट के सामने निराशा व्यक्त करते हुए लगातार सुनवाई की गुहार लगाई। 155 दिन के विचार विमर्श के बाद मध्यस्थता समिति ने रिपोर्ट पेश की और कहा कि वह सहमति बनाने में सफल नहीं रही थी।
17 नवंबर को राम मंदिर विवाद पर आ सकता है अंतिम फैसला
अयोध्या के राम मंदिर विवाद मामले की अंतिम सुनवाई गुरूवार को खत्म हो रही है। इससे पहले मामले की सुनवाई का तिथि 18 अक्टूबर तक की गई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने एक दिन पहले यानी 17 अक्टूबर को ट्रायल पूरे करने का आदेश दिया। यही नहीं, चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई वाली संवैधानिक बेंच ने 37 वें दिन मामले की सुनवाई के आखिर में कहा कि मामले की सुनवाई 17 अक्टूबर को पूरी कर ली जाएगी। मुस्लिम पक्षकारों ने गत 14 अक्टूबर को दलील पूरी कर ली है और बचे शेष दिन हिंदु पक्षकारों की दलीलें सुनी जानी है।