अयोध्या राम मंदिर केसः हाई कोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट भी लगा सकती है ठप्पा!
बेंगलुरू। अयोध्या राम मंदिर विवाद पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित संवैधानिक पीठ पिछले 5 अगस्त से लगातार सुनवाई कर रही है। 18 अक्टूबर तक राम मंदिर विवाद पर फैसले की उम्मीद की जा रही है। राम मंदिर भूमि विवाद पर अब चले ट्रायल में विवादित भूमि पर संवैधानिक पीठ का फैसला क्या होगा, यह तो अभी भविष्य के गर्भ में हैं, लेकिन राम मंदिर आंदोलन से जुड़े लोगों को भरोसा हो चला है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला राम मंदिर के पक्ष में आएगा।
राम मंदिर आंदोलन से जुड़े लोग इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ द्वारा वर्ष 2010 में सुनाए गए फैसले के आधार पर ऐसी उम्मीद लगाए हुए हैं। अगर फैसला राम मंदिर के पक्ष में आया तो यह एक ऐतिहासिक क्षण का गवाह होगा, जब अयोध्या नगर वासी 491 वर्ष बाद भगवान राम के स्वागत में दीवाली का त्योहार मनाएंगे।
गौरतलब है वर्ष 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने विवादित भूमि को राम जन्मभूमि घोषित किया था। न्यायालय ने बहुमत से निर्णय दिया था कि विवादित भूमि जिसे राम जन्मभूमि माना जाता रहा है, उसे हिंदू गुटों को दे दिया जाए। न्यायालय ने यह भी कहा कि वहां से रामलला की प्रतिमा को नहीं हटाया जाएगा। न्यायालय ने यह भी पाया कि चूंकि सीता रसोई और राम चबूतरा आदि के कुछ भागों पर निर्मोही अखाड़े का भी कब्ज़ा रहा है इसलिए यह हिस्सा निर्माही अखाड़े के पास ही रहेगा।
मामले की सुनवाई कर रहे दो न्यायधीधों ने यह निर्णय भी दिया कि इस भूमि के कुछ भागों पर मुसलमान प्रार्थना करते रहे हैं इसलिए विवादित भूमि का एक तिहाई हिस्सा मुसलमान गुटों दे दिया जाए, लेकिन हिंदू और मुस्लिम दोनों ही पक्षों ने इस निर्णय को मानने से अस्वीकार करते हुए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।
निःसंदेह राम मंदिर विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ के फैसले का इंतजार पूरा देश कर रहा है और जिस तेजी से ट्रायल चल रहा है उससे उम्मीद की जा रही है कि सुप्रीम कोर्ट हिंदुओं के बड़े त्योहार दीवाली से पहले अपना फैसला सुना देगी। सुप्रीम कोर्ट भी मामले की सुनवाई कर रही पांच जजों की संवैधानिक पीठ को 18 अक्टूबर से पहले केस का ट्रायल पूरा करने का निर्देश दे चुकी हैं।
वर्ष 2019 में दीवाली का त्योहार 27 अक्टूबर को पड़ रहा है और अगर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने राम मंदिर के पक्ष में 27 अक्टूबर के आसपास फैसला सुनाया तो हिंदू बहुसंख्यकों के लिए 2019 की दीवाली ऐतिहासिक हो जाएगी और पूरी अयोध्या नगरी एक बार भगवान राम के अयोध्या आगमन पर दीप जलाकर स्वागत करेगी।
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पुरातत्व विभाग की खुदाई में मिले थे मंदिर अवशेष
करीब 15 साल पहले भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने अयोध्या में मौजूद राम जन्मभूमि स्थल की खुदाई की थी। कई दिनों तक चली खुदाई के दौरान जमीन के नीचे से मिली चीजों का एएसआई की टीम ने वैज्ञानिक परीक्षण किया था। खुदाई और वैज्ञानिक परीक्षण पर आधारित रिपोर्ट में विवादित ढांचे के नीचे पुरातन मंदिर के अवशेष होने का दावा किया गया है और पुरातत्व विभाग की खुदाई में मिले मंदिर अवशेषों के आधार पर ही इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ विवादित भूमि को राम जन्मभूमि करार देते हुए मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाया था।
वर्ष 2018 में सुप्रीम कोर्ट को सौंपी गई थी रिपोर्ट
मंदिर के पक्ष में मिले साक्ष्यों को बाकायदा फोटो के साथ एएसआई ने नवंबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट को सौंपा था। एएसआई ने ये रिपोर्ट इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर तैयार की थी। माना जाता है कि अयोध्या केस में हाइकोर्ट ने जो फैसला सुनाया था, उसके पीछे पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की रिपोर्ट अह्म थी। जाहिर है कि वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित इस रिपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट भी सिरे से खारिज नहीं कर सकता। यही कारण है कि राम जन्मभूमि आंदोलन से जुड़े पक्षकार सुप्रीम कोर्ट के संवैधानिक पीठ के फैसलों को उससे जोड़कर देख रहे हैं।
विवादित भूमि की खुदाई में ASI मिली थीं ये चीजें
एएसआई की रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया है कि विवादित ढांचे के ठीक नीचे एक बड़ी संरचना मिली है। यहां 10वीं शताब्दी से लेकर ढांचा बनाए जाने तक लगातार निर्माण हुआ है। खुदाई में यहां जो अवशेष मिले हैं, वह ढांचे के नीचे उत्तर भारत के मंदिर होने का संकेत देते हैं। यही नहीं 10वीं शताब्दी के पहले उत्तर वैदिक काल तक की मूतिर्यों और अन्य वस्तुओं के खंडित अवशेष भी यहां खुदाई के दौरान मिले थे। इनमें शुंग काल की चूना पत्थर की दीवार और कुषाण काल की बड़ी संरचना भी शामिल है।
मुस्लिम पक्षकारों ने विवादित स्थल पर माना मंदिर का अस्तित्व
सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित संवैधानिक पीठ के सामने सुनवाई का 19 वें दिन मुस्लिम पक्षकारों ने अपनी दलील में यह माना कि विवादित स्थल के बाहरी अहाते यानी राम चबूतरे पर मन्दिर था और वहां पूजा होती थी। हालांकि इससे मस्जिद के अस्तित्व पर कोई असर नहीं पड़ता, क्योंकि वहां पूजा और नमाज़ कई सालों तक साथ-साथ होती आई थी।