अयोध्या राम मंदिरः विवादित परिसर पर मुस्लिम पक्षकारों का दावा कमजोर
बेंगलुरू। अयोध्या राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ लगातार सुनवाई कर रही है। लगातार 32वें दिन तक चली सुनवाई में एक ओर जहां विवादित परिसर पर हिंदु पक्षकारों का दावा मजबूत हुआ है। वहीं, मुस्लिम पक्षकारों की दलीलें सुनवाई दर सुनवाई कमजोर हुई हैं, क्योंकि मुस्लिम पक्षकारों के पास बताने के लिए बहुत सीमित चीजें हैं। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार मामले की सुनवाई 18 अक्टूबर को पूरा कर लिया जाएगा और संभावना है कि विवादित भूमि पर फैसला 15 नवंबर तक आ सकता है।
दरअसल, सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष ने यह मान लिया है कि अयोध्या में भगवान श्रीराम पैदा हुए इसको लेकर उन्हें को संशय नहीं हुआ है। हालांकि मुस्लिम पक्षकार यह मानने को तैयार नहीं है कि विवादित परिसर में राम का जन्म कहां हुआ। चूंकि सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर विवाद को 18 अक्टूबर 2019 तक पूरा करने का निर्देश दिया है। इसीलिए माना जा रहा है कि संवैधानिक पीठ का फैसला राम मंदिर के पक्ष में आ सकता है।
गौरतलब है सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ को मामले की सुनवाई को 18 अक्टूबर तक पूरा करना है, जिसे अब महज 10 दिन बाकी रह गए हैं। हालांकि शुरूआत में मुस्लिम पक्षकारों के वकील राजीव धवन ने संवैधानिक पीठ के हफ्ते पांच सुनवाई पर आपत्ति जताई थी और जुम्मे के नमाज की छुट्टी मांगी थी और सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जुम्मे की छुट्टी देने को राजी भी हो गई, लेकिन एक बार छुट्टी के बाद भी मुस्लिम पक्षकार के वकील कोर्ट में मौजूद रहे। 18 अक्टूबर तक सुनवाई को पूरा करने के लिए कोर्ट इतनी सख्त है कि उसने कोर्ट की सुनवाई को एक घंटे अधिक तक सुननी शुरू कर दी है।
अयोध्या राम मंदिर विवाद पर मुस्लिम पक्षकारों के पास कोर्ट को बताने और दिखाने को कुछ खास नहीं है और मुस्लिम पक्षकारों की दलीलों को वर्ष 1994 में संवैधानिक पीठ का फैसला भी कमजोर करता है, जिसमें कोर्ट ने फैसला दिया था कि मस्जिद इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है। वहीं, हिंदू पक्षकारों की तुलना में सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्षकारों की दलीलें बेहद कमजोर रही है।
मुस्लिम पक्षकारों में अयोध्या में भगवान राम का जन्म को लेकर कोई संशय नहीं है। उनका विवाद सिर्फ इतना रह गया है कि राम जन्म कहां हुआ है, क्योंकि वो हिंदू पक्षकारों के इस तर्क को मानने को तैयार नहीं कि राम का जन्म विवादित परिसर पर हुआ था। इस पर सुनवाई के दौरान जस्टिस चंद्रचूड सिंह ने कहा कि पुराण, रामायण और राम चरित मानस में अवधपुरी में राम के जन्म की बात कही गई है और वाल्मिकी रामायण में भी राम के जन्म की बात साकेत (अयोध्या) में कही गई है, लेकिन स्थान को लेकर संशय हैं।
सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्षकारों उस वक्त बगले झांकना पड़ गया जब जस्टिस बोबले ने कहा कि सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्षकारों एक गवाह शास्त्रों का हवाला देते हुए कहा है कि सीता कूप से अग्निकोण में महज 200 कदम की दूरी पर राम का जन्म स्थान है और कोर्ट ने नक्शा मंगाकर देखा तो सेंट्रल गुंबद ही राम जन्म का स्थान दिखा, तो यहां भी मुस्लिम पक्षकार घिरते हुए नजर आए। वहीं, 1886 में एक अंग्रेज जिला जज ने मसले पर सुनवाई के दौरान माना था कि अयोध्या विवादित परिसर पर वर्ष 1528 में यहां मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई थी।
मुस्लिम पक्षकारों को सुनवाई के दौरान तब फजीहत का सामना करना पड़ा जब मुस्लिम पक्षकारों के वकील राजीव धवन ने भारतीय पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट पर सवाल उठा दिया, लेकिन कोर्ट की लताड़ के बाद मुस्लिम पक्षकार के वकील राजीव धवन को कोर्ट से माफी मांगनी पड़ गई। सबसे दिलचस्प बात यह है कि सुनवाई के दौरान कई बार मुस्लिम पक्षकार बुरी तरह से असमंजस में नजर आए और कई बार बयान से पलटना पड़ा है। इसमें राम चबूतरे को राम जन्म स्थान मानने को लेकर मुस्लिम पक्षकारों के दावे को लेकर असमंजस प्रमुख है।
उल्लेखनीय है वर्ष 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने विवादित भूमि को रामजन्मभूमि घोषित किया था। न्यायालय ने बहुमत से निर्णय दिया कि विवादित भूमि जिसे राम जन्मभूमि माना जाता रहा है, उसे हिंदू गुटों को दे दिया जाए। न्यायालय ने यह भी कहा था कि वहां से रामलला की प्रतिमा को नहीं हटाया जाएगा। न्यायालय ने यह भी पाया था कि चूंकि सीता रसोई और राम चबूतरा आदि कुछ भागों पर निर्मोही अखाड़े का भी कब्ज़ा रहा है इसलिए यह हिस्सा निर्माही अखाड़े के पास ही रहेगा।
मामले की सुनवाई कर रहे हाईकोर्ट के दो न्यायधीशों ने यह निर्णय भी दिया कि विवादित भूमि के कुछ भागों पर मुसलमान प्रार्थना करते रहे हैं इसलिए विवादित भूमि का एक तिहाई हिस्सा मुसलमान गुटों दे दिया जाए। हालांकि हिंदू और मुस्लिम दोनों ही पक्षों ने इस निर्णय को मानने से अस्वीकार करते हुए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। इस पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ अयोध्या राम मंदिर विवाद की सुनवाई गत 6 अगस्त से प्रतिदिन सुनवाई कर रही है।
माना जा रहा है कि 18 अक्टूबर तक मामले की सुनवाई पूरी होने के बाद सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ 15 नवंबर तक फैसला सुना सकती है। क्योंकि कोर्ट को फैसला सुनाने से पहले काफी रिसर्च काम करने है। क्योंकि जजमेंट के लिए पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ को करीब 30000 मूल पेजों का अध्य्ययन के साथ-साथ पुराने जजमेंट का अध्ययन और शास्त्र और पुराणों का उल्लेख करना होगा। मालूम हो, 491 वर्ष तक चले इस विवाद की कोर्ट पिछले 200 वर्षों से सुनवाई कर रही है।
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