अयोध्या विवाद: शिया वक्फ बोर्ड ने कोर्ट में कहा- विवादित जमीन का तिहाई हिस्सा हिंदुओं को देने को तैयार
नई दिल्ली। शिया वक्फ बोर्ड ने कहा कि अयोध्या की विवादित जमीन मंदिर बनाने के लिए हिंदुओं को दे दी जाए। शिया वक्फ बोर्ड ने दलील दी कि अयोध्या मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने फैसले में एक तिहाई हिस्सा मुस्लिमों को दिया था, न कि सुन्नी वक्फ बोर्ड को। हमारा वहां दावा बनता है और हम उसे हिंदुओं को देना चाहते हैं। ये ओरिजिनीली हमारा है और वह हिस्सा हम हिंदुओ को देना चाहते हैं। शिया वक्फ बोर्ड के वकील ने कहा, "उच्च न्यायालय ने विवादित भूमि को 3 बराबर हिस्सों में बाँटकर एक तिहाई हिस्सा मुसलमानों को दिया था। ना कि सुन्नी वक्फ बोर्ड को।
इसलिए वह अपना हिस्सा हिंदुओं को देना चाहता है, जिसका एक आधार यह भी है कि बाबरी मस्जिद शिया वक्फ की संपत्ति है।"उन्होंने आगे कहा, "1936 तक इस पर शियाओं का कब्जा था और इसके पहले व अंतिम मुतवल्ली (देखभाल करने वाला) शिया थे। कभी किसी सुन्नी को मुतवल्ली नियुक्त नहीं किया गया। बाबर का कमांडर मीर बकी शिया मुस्लिम था और बाबरी मस्जिद का पहला मुतवल्ली था।"इससे पूर्व, अखिल भारतीय श्रीराम जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति की ओर से वरिष्ठ वकील पीएन मिश्रा ने विवादित स्थल के ज़मीन रिकॉर्ड में हस्तक्षेप किए जाने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, "जमीन पर दावे को लेकर मुसलमानों का कोई ठोस पक्ष नहीं है। वाकिफ (वक्फ करने वाला) को जमीन का मालिक होना चाहिए। बाबर जमीन का मालिक नहीं था।"
शिया वक्फ बोर्ड की ओर से वकील एम सी धींगरा ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में 16वें दिन की सुनवाई पर पीठ से कहा, ''मैं हिंदू पक्ष का समर्थन कर रहा हूं।'' उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय ने विवादित भूमि को तीन बराबर हिस्सों में बांटते हुए एक तिहाई हिस्सा मुसलमानों को दिया था, ना कि सुन्नी वक्फ बोर्ड को और इसलिए वह इस आधार पर अपना हिस्सा हिंदुओं को देना चाहता है जिसका एक आधार यह भी है कि बाबरी मस्जिद शिया वक्फ की संपत्ति है। धींगरा ने कहा कि हिंदुओं ने जो दलीलें दी हैं, उनसे पूर्वाग्रह रखे बिना, शिया उस संपत्ति पर अधिकार का दावा नहीं करते। 1936 तक इस पर शियाओं का कब्जा था और इसके पहले तथा अंतिम मुतवल्ली शिया थे और किसी सुन्नी को कभी मुतवल्ली नियुक्त नहीं किया गया। हालांकि उन्होंने कहा कि विवादित संपत्ति शियाओं को बिना नोटिस दिये सुन्नी वक्फ के तौर पर पंजीकृत कर दी गयी और बाद में शिया बोर्ड 1946 में अदालत में इस आधार पर मामले को हार गया कि उसने एक सुन्नी इमाम नियुक्त कर लिया था।