अयोध्या में राम मंदिर भूमि पूजन के बाद कैसे मनाई गई बाबरी विध्वंस की 28वीं बरसी
नई दिल्ली- बाबरी विध्वंस की 28 बरसी राम जन्मभूमि में मंदिर निर्माण के लिए हुए भव्य भूमि पूजन के ठीक चार महीने बाद आई है। लेकिन, लगता है कि इन चार महीनों में अयोध्या के लोग मंदिर-मस्जिद विवाद को काफी पीछे छोड़ बहुत आगे बढ़ चुके हैं। 29 साल पुरानी उस घटना को भुलाकर इस बार अयोध्या के हिंदुओं और मुसलमानों ने फैसला किया कि वह बाबरी विध्वंस पर किसी तरह के कार्यक्रम का आयोजन नहीं करेंगे। गौरतलब है कि दोनों समुदाय के लोग बीते वर्षों में इस दिन को अलग-अलग रूप से मनाते आए थे। लेकिन, जब बाबरी मस्जिद का मुद्दा ही खत्म हो चुका है और वहां पर भगवान रामलला के भव्य मंदिर का निर्माण शुरू हो चुका है, इसलिए दोनों समुदायों ने ही तय किया कि अब बीती कड़वी यादों को दोहराने में किसी की भलाई नहीं है।
कड़वी यादों को भुलाकर आगे बढ़ गए हिंदू और मुसलमान
पिछले 28 वर्षों से अयोध्या के मुसलमान हर 6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद तोड़े जाने की घटना को 'यौम-ए-गम' या 'शहादत दिवस' के तौर पर मनाते रहे थे। इस मौके पर उनकी ओर से काले झंडे लहराए जाते थे और वो अपनी दुकानें और प्रतिष्ठान बंद रखकर विरोध जताते थे। दूसरी ओर कुछ हिंदू संगठनों की ओर से इस दिन को 'शौर्य दिवस' के रूप में मनाया जाता था। 6 दिसंबर के लिए इस बार श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत नृत्य गोपाल दास के उत्तराधिकारी होने वाले महंत कमल नयन दास ने एक अपील जारी करके हिंदुओं से कहा था कि वह इस बार 'शौर्य दिवस' ना मनाएं। अयोध्या के कारसेवकपुरम से जुड़े विश्व हिंदू परिषद के क्षेत्रीय प्रवक्ता शरद शर्मा ने इसकी वजह बताते हुए कहा कि, 'जब सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर के पक्ष में फैसला दे दिया है तो शौर्य दिवस मनाने का कोई कारण नहीं है। अब तो राम मंदिर की भूमि पूजन भी हो चुकी है और राम मंदिर के फाउंडेशन का काम चल रहा है।' उन्होंने यह भी कहा कि 'इसलिए हिंदुओं और मुसलमानों दोनों को ही आगे बढ़ना चाहिए।'
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नहीं रखा गया 'यौम-ए-गम' का कार्यक्रम
शायद यही वजह है कि पिछले वर्षों की तरह इस बार बाबरी मस्जिद टाइटल सूट के वादियों में से एक हाजी महबूब के टेढ़ी बाजार स्थित आवास पर शहादत दिवस मनाने के लिए प्रतिकात्मक विरोध का कोई कार्यक्रम भी तय नहीं किया गया था, जिसमें कि पहले बड़ी तादाद में भीड़ इकट्ठी होती थी। इस दौरान पूरे प्रदेश के मौलवी भी यहां जुटते थे और मस्जिद की बहाली के लिए कई बार राष्ट्रपति को भेजने के लिए ज्ञापन तैयार करके उसे सिटी मैजिस्ट्रेट को सौंपा जाता था। लेकिन, इस साल 5 अगस्त को भूमि पूजन हो जाने के बाद अयोध्या के मुसलमानों ने भ फैसला किया कि अब 6 दिसंबर को 'यौम-ए-गम' नहीं मनाएंगे। हाजी महबूब ने इसकी जानकारी देते हुए कहा था, 'इस साल यौम-ए-गम नहीं होगा। कोई काला झंडा नहीं फहराया जाएगा और 6 दिसंबर को मुसलमान अपना कारोबार भी जारी रखेंगे।' उन्होंने कहा कि 'टेढ़ी बाजार मस्जिद में 6 दिसंबर, 1992 को हुई हिंसा में मारे गए लोगों के लिए सिर्फ कुरान पढ़ी जाएगी।'
अब दुख मनाने की कोई वजह नहीं- अंसारी
हाजी महबूब ने साफ कहा कि, 'हमने बीती बातों से आगे बढ़ने और पूरे देश के मुस्लिम समुदाय को यह संदेश देने का फैसला किया कि बेहतर भविष्य के लिए अतीत को भूल जाएं।' वहीं राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद के मूल वादी दिवंगत हासिम अंसारी के बेटे इकबाल अंसारी ने भी कहा कि, 'मैंने बहुत पहले ही यौम-ए-गम मनाना बंद कर दिया था। अब राम मंदिर के पक्ष में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद किसी मुसलमान के लिए इस दिन को दुख का दिन मनाने का कोई मायने नहीं रह गया है।'
5 अगस्त को पीएम मोदी ने किया था शिलान्यास
गौरतलब है कि 9 नवबंर, 2019 को सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने राम मंदिर के पक्ष में ऐतिहासिक फैसला सुनाकर सदियों पुराने इस विवाद को हमेशा-हमेशा के लिए खत्म कर दिया था। उस ऐतिहासिक फैसले के बाद इसी साल 5 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वहां पर भव्य राम मंदिर के निर्माण के लिए शिलान्यास किया था।
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