Ayodhya Run: हिंदुत्व की ओर वापस लौटेगी शिवसेना, इसीलिए छटपटा रहे हैं उद्धव ठाकरे!
बेंगलुरू। महाराष्ट्र में विपरीति विचारधारा वाली दलों के साथ गठबंधन सरकार चला रहे शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे महा विकास अघाड़ी मोर्च की सरकार के 100 दिन पूरे होने के बाद एक बार अयोध्या कूच करने वाले हैं। हिंदू, हिंदुत्व और हिंदूवादी पार्टी की पहचान को ताख पर रखकर किंगमेकर से महाराष्ट्र के किंग बन चुके उद्धव ठाकरे की अयोध्या यात्रा के कई मायने निकाले जा सकते हैं।
ऐसा लगता है कि पिछले 100 दिनों की महाराष्ट्र में गठबंधन सरकार चला रहे मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे समझ चुके हैं कि विपरीत विचारधारा वाली सरकार चलाना कितना ही मुश्किल है, खासकर तब जब शिवसेना को उन मुद्दों पर मौन साधना पड़ रहा है, जिसके मूल आधार पर वर्ष 1966 में शिवसेना का जन्म हुआ था, क्योंकि पिछले तीन महीनों में शिवसेना को गठबंधन धर्म निभाने के लिए केवल शिवसेना को ही पार्टी की मूल विचारधारा से समझौता करना पड़ा है।
निः संदेह शिवसेना परस्पर विरोधी दल कांग्रेस और एनसीपी के साथ गठबंधन में फंस गई है और यह उसकी छटपटाहट ही है कि उद्धव ठाकरे अपनी मुख्यमंत्री कार्यकाल के 100 दिन पूरे होने पर अयोध्या जा रहे हैं अन्यथा उद्धव 100 दिन पुरानी गठबंधन सरकार का जश्न मुंबई के किसी पांच सितारा होटल में मनाते। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भी अयोध्या गए थे और अयोध्या में जल्द राम मंदिर निर्माण की बात कही थी।
2019 लोकसभा चुनाव से पहले भी शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे अयोध्या पहुंचे थे और रामलला का दर्शन किया था। राम मंदिर निर्माण के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बाद भी उद्धव ठाकरे अयोध्या जाने की घोषणा की थी, लेकिन नहीं जा पाए। आखिर उद्धव ठाकरे की अयोध्या परिक्रमा के मायने क्या है, यह इसी से समझा जा सकता है कि उद्धव ने तब अयोध्या जाने का ऐलान किया है, जब महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार के 100 दिन पूरे हुए हैं।
उद्धव ठाकरे की अयोध्या यात्रा के पीछे एक सियासी संदेश छिपा हुआ है, जिसके जरिए वो अपने पांरपरिक वोटरों को साधने को कोशिश कर रही हैं। कही न कहीं, उद्धव ठाकरे अपने कोर वोटरों को संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि शिवसेना ने विचारों से समझौता नहीं किया है बल्कि सियासी समझौता किया है।
ऐसा समझा जाता है कि पार्टी के पुराने स्टैंड और स्टेट्स को बरकरार रखने के लिए उद्धव ठाकरे ऐसा कर रहे हैं और पिछले 100 दिनों में गठबंधन सरकार में रहते हुए भी शिवसेना ने ऐसे कई फैसले भी लिए हैं ताकि जब कभी ऐसी स्थिति आए और महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार गिरने की नौबत आए तो उन्हें वोटरों के सामने शर्मिंदा न होना पड़े। इसकी झलक संसद में नागरिकता संशोधन विधेयक का समर्थन और सीएए के खिलाफ विधानसभा में प्रस्ताव में नहीं लाने की अनिच्छा में दिखता है।
सीएए के खिलाफ विधानसभा में प्रस्ताव लाने की इच्छुक नहीं हैं उद्धव
पंजाब की कैप्टन अमरिंदर सरकार और केरल की पिन्राई विजयन सरकार विधानसभा में सीएए के खिलाफ प्रस्ताव लेकर आ चुकी है, जिसकी कोई संवैधानिक औचित्व नहीं है। उद्धव ठाकरे यह बात अच्छी तरह से जानते हैं कि सीएए के खिलाफ विधानसभा में प्रस्ताव लाने से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है, क्योंकि केंद्रीय सूची में निर्मित सीएए के खिलाफ राज्यों को चर्चा करने और प्रस्ताव लाने का अधिकार ही नहीं है। देश के सभी राज्यों को सीएए को बिना किसी लाग-लपेट के लागू करना ही होगा वरना संविधान का उल्लंघन माना जाएगा और ऐसी सरकार बर्खास्त भी की जा सकती हैं।
सरकार में एनसीपी चीफ शरद पवार के अंकुश से बेचैन हैं उद्धव
यह बात भी दीगर है महाराष्ट्र गठबंधन सरकार में भले ही उद्धव ठाकरे मुखिया हैं, लेकिन गठबंधन सरकार पर एनसीपी चीफ शरद पवार पर स्वैच्छिक अंकुश उन्हें बेचैन कर रहा है। स्वैच्छिक अंकुश इसलिए क्योंकि सरकार चलाने का पूर्व अनुभव होने के चलते उद्धव को शरद पवार के इशारों पर सरकार चलाना पड़ रहा है। उद्धव चाहे-अनचाहे इसलिए शरद पवार को अपना गुरू बनाना पड़ा है, जिससे कई जगहों पर हुए नफा-नुकसान का पता उद्धव को बाद में पता चला है। महाराष्ट्र में विभाग बंटवारे के दौरान उद्धव ठाकरे की स्थिति को अच्छी तरह से समझा जा सकता है।
सरकार में महत्वपूर्ण गृह विभाग और वित्त विभाग से हाथ धोना पड़ा
महाराष्ट्र में गठबंधन सरकार के गठन के करीब दो महीनों बाद शपथ ले चुके और मंत्रिमंडल विस्तार के बाद लेने वाले मंत्रियों के बीच विभागों को बंटवारा संपन्न हो सका था। विभागों के बंटवारे में पेंच गृह मंत्रालय और राजस्व मंत्रालय को लेकर फंसा हुआ था। उद्धव ठाकरे अपने साथ गृह मंत्रालय को रखना चाहते थे, लेकिन पिछली दो सरकारों में गृह मंत्रालय एनसीपी के पास था, तो उसने उस पर दावा ठोंक दिया और अंततः उद्धव को समझौता करना पड़ा और शिवसेना के हाथ से महत्वपूर्ण गृह विभाग और राजस्व विभाग दोनों चला गया। अभी कांग्रेस शिवसेना से कृषि विभाग भी छीनने की जद्दोजहद में है, जो सीधे-सीधे किसानों और किसान राजनीति से जुड़ा हुआ है।
अकेले NCP ने गृह, वित्त, जल संसाधन मंत्रालय पर किया कब्जा
महाराष्ट्र गठबंधन सरकार में शामिल दोनों दल एनसीपी और कांग्रेस के साथ गहन चर्चा और विचार-विमर्श के बाद उद्धव ठाकरे ने पिछले माह कैबिनेट विस्तार किया था, जिससे पहले कैबिनेट पदों और मंत्रालयों को लेकर तीनों पार्टियों के बीच तनाव था। मंत्रिमंडल विस्तार में NCP स्पष्ट रूप से विजेता बनकर उभरी थी, क्योंकि उद्धव ठाकरे को अह्म और टकरावों से उभरे गठबंधन की मजूबरी के चलते एनसीपी चीफ शरद पवार के भतीजे अजित पवार को उपमुख्यमंत्री पद के साथ-साथ गृह विभाग, वित्त मंत्रालय और जल संसाधन मंत्रालय देना पड़ा था। उद्धव ठाकरे की असहजता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मंत्रियों के शपथ और उनके विभागों के बंटवारे में एक माह से अधिक समय लग चुका था।
विभाग बंटवारे में हुए बंदरबांट से शिवसेना के ही विधायक खुश नहीं
गठबंधन सरकार में उद्धव ठाकरे की असहजता और असंतोष को ही टारगेट करते हुए शिवसेना की पूर्व सहयोगी BJP ने सरकार पर हमला करते हुए कहा कि महा विकास अघाड़ी मोर्च की सरकार जल्द गिर जाएगी, क्योंकि विभाग बंटवारे से शिवसेना के ही विधायक खुश नहीं हैं। इसी असंतोष को लेकर पूर्व महाराष्ट्र मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने एक रैली का आयोजन किया और शिवसेना के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार पर निशाना साधते हुए कहा था कि कि मंत्रिमंडल विस्तार के लिए एक माह का समय लिया गया, उसके एक सप्ताह बाद भी सरकार मंत्रालयों का बंटवारा नहीं कर सकी और मंत्रालयों का बंटवारा होने से पहले एक मंत्री ने इस्तीफा दे दिया है, जो गठबंधन सरकार के अंत की शुरुआत है। महाराष्ट्र चुनाव से पूर्व कांग्रेस छोड़कर शिवसेना की सदस्यता लेने वाले अब्दुल सत्त्तार ने इस्तीफा दे दिया था। हालांकि उन्हें बाद में मना लिया गया।
क्या सरकार में उद्धव की हालत सरकार में रबड़ स्टैंप जैसी हो गई है?
मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के गठबंधन सरकार के 100 दिन पूरे होने पर अयोध्या यात्रा को उनके असंतोष से इसलिए भी जोड़ा जा सकता है, क्योंकि शिवसेना की हालत सरकार में रबड़ स्टैंप जैसी हो गई है। शिवसेना प्रमुख उद्ध ठाकरे भले ही दूर से महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार का नेतृत्व करते हुए दिख रहे हैं, लेकिन महाराष्ट्र की महा विकास अघाड़ी मोर्च की सरकार एनसीपी चीफ शऱद पवार के रिमोट से ही कंट्रोल होता है। महाराष्ट्र सरकार में शिवसेना के पास भले 18 मंत्री हैं, लेकिन कोई भी महत्वपूर्ण विभाग शिवसेना के हाथ नहीं लगा है। गृह विभाग और वित्त विभाग जैसे मंत्रालय एनसीपी के हाथ हैं और कांग्रेस के हाथ महत्वपूर्ण राजस्व और लोक निर्माण विभाग के साथ विधानसभा का स्पीकर लगा है जबकि शिवसेना के केवल कृषि और शहरी विकास मंत्रालय मिला है, लेकिन विभागों के बंटवारे के बाद भी कांग्रेस कृषि मंत्रालय पर अपना दावा ठोंक कर रही है।
मुख्यमंत्री पद को छोड़कर सरकार में शिवसेना के हाथ में कुछ नहीं लगा
महाराष्ट्र गठबंधन सरकार में मुख्यमंत्री पद को छोड़कर शिवसेना के हाथ में कुछ नहीं लगा है और सरकार चलाने की सारी जिम्मेदारी शिवसेना के कंधे पर हैं। कल को महाराष्ट्र सरकार में कुछ भी होता है तो इसकी पूरी जिम्मेदारी और ठीकरा उद्धव ठाकरे के सिर पर फोड़ा जाएगा, क्योंकि सरकार में शामिल डिप्टी सीएम और एनसीपी नेता अजीत पवार और छगन भुजबल जैसे नेता महत्वपूर्ण पदों पर विराजमान है, जिन्हें भ्रष्टाचार के संगीन आरोप हैं और शिवसेना-बीजेपी गठबंधन की पिछली महाराष्ट्र सरकार में छगन भुजबल को जेल यात्रा भी करनी पड़ी थी।
उद्धव ठाकरे की हालत सांप और छछूंदर जैसी हो गई है
अभी महाराष्ट्र गठबंधन सरकार में शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की हालत सांप और छछूंदर जैसी हो गई है, क्योकि न वो महा विकास अघाड़ी मोर्च सरकार का नेतृत्व कर पा रहे हैं और न ही सरकार से अलग हो पा रहे हैं। इन्हीं ऊहापोहों के मद्देनजर ही कॉन्ग्रेस के पूर्व सांसद यशवंत राव गडाख ने कहा कि अगर शिवसेना-एनसीपी-कॉन्ग्रेस गठबंधन के नेता लड़ते रहे तो उद्धव मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे देंगे। यशवंतराव ने कहा कि कांग्रेस और एनसीपी के नेतागण बंगलों और विभागों के आवंटन में लगातार बाधा डाल रहे हैं। ख़ुद शिवसेना नेताओं ने भी स्वीकारा है कि गठबंधन में मंत्रियों को विभाग आवंटन के मुद्दे पर खींचतान चल रही थी।
क्या कर्म से गए अब धर्म बचाने की जद्दोजहद में जुट गए हैं उद्धव
ऐसी संभावना है कि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे अभी अह्म के टकराव में पैदा हुई नई सियासी गठबंधन से बेहद परेशान चल रहे हैं और कर्म से गए तो गए अब पार्टी का धर्म बचाने की जद्दोजहद में हैं। महाराष्ट्र सरकार के 100 दिन पूरे होने पर उद्धव ठाकरे की अयोध्या यात्रा की कवायद महाराष्ट्र के गठबंधन धर्म से बिल्कुल जुदा है, जिससे शायद ही एनसीपी और कांग्रेस खुश होंगे। माना जा रहा है कि अब उद्धव ठाकरे गठबंधन धर्म इतर से शिवसेना के धर्म यानी को तवज्जों देने में लग गए हैं। उद्धव ठाकरे की संभावित अयोध्या यात्रा और राम मंदिर निर्माण का श्रेय बीजेपी को नहीं देने की कोशिश बताती है कि शिवसेना पार्टी की हिंदूवादी छवि को पुनः जीवित करना चाहती है।
उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे दे दें तो आश्चर्य नहीं होगा
हिंदूवादी राजनीति की ओर लौटने की शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की अकुलाहट बताती है कि महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है और जल्द ही गठबंधन सरकार में खटपट शुरू हो सकती है और महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार गिर सकती है। इसकी शुरूआत अगर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद से शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे के इस्तीफे से होती है, तो कोई आश्चर्य नहीं होगा।
मनसे अध्यक्ष राज ठाकरे के हिंदुत्व में बढ़ते झुकाव से परेशान हैं उद्धव
शिवसेना को अभी अपने कोर वोटरों की चिंता सताने लगी है और मौजूदा महाराष्ट्र सरकार का भविष्य उद्धव ठाकरे को नहीं दिख रहा है, जिसमें सिर्फ और सिर्फ शिवसेना को नुकसान हो रहा है। उद्धव ठाकरे के डर को मनसे अध्यक्ष राज ठाकरे के हिंदुत्व की ओर बढ़ते झुकाव से समझा जा सकता है।
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