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अयोध्‍या विवाद सुप्रीम कोर्ट के इतिहास की दूसरी सबसे लंबी सुनवाई, जानें इससे भी लंबी किस केस की चली थी सुनवाई

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Ayodhya नहीं, इस case पर Supreme Court में हुई थी लंबी बहस । वनइंडिया हिंदी

बेंगलुरु। अयोध्या राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले में सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई देश की शीर्ष अदालत में चली इतिहास की दूसरी सबसे लंबी चलने वाली सुनवाई होगी। इस मामले में 17 अक्टूबर तक कोर्ट में अयोध्या मामले में कुल 41 दिनों की सुनवाई पूरी हो जाएगी जो सुप्रीम कोर्ट के इतिहास की दूसरी सबसे ज्यादा लंबी चलने वाली सुनवाई होगी। बता दें मौलिक अधिकारों को लेकर केशवानंद भारती बनाम केरल विवाद में 13 जजों के पीठ ने पांच महीने में 68 दिन सुनवाई की थी। ये सुनवाई 31 अक्टूबर 1972 से शुरू होकर 23 मार्च 1973 तक चली थी।

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इसके बाद अब अयोध्या राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामला है जिसकी सुनवाई इतनी लंबी चल रही है। 17 नवंबर से पहले अयोध्या राम मंदिर-बाबरी मस्जिद मामले पर फैसला आने की उम्मीद हैं। इसके पीछे कारण ये है कि 17 नवंबर को चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रंजन गोगोई रिटायर हो रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट की अबतक की परंपरा के मुताबिक किसी केस की सुनवाई कर रही बेंच में से कोई जज रिटायर हो जाता है तो उस मामले की सुनवाई शुरू से शुरू होगी क्योंकि जो भी नया जज मामले को सुनेगा उसे अबतक मामले पर हुई सुनवाई के बारे में कोई जानकारी नहीं होगी।

यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने अयोध्या मामले की सुनवाई रोजाना करने करने का फैसला किया था और अब तक इस मामले में 37 दिनों की सुनवाई पूरी हो चुकी है। कोर्ट ने सभी पक्षों से कहा है कि वो अपनी दलीलें तैयार रखें और बहस को जल्द से जल्द पूरा करें ताकि कोर्ट को अपने फैसले को लिखने का भी वक्त मिल सके। अयोध्या राम जन्मभूमि मामले में शुक्रवार को हुई सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने कहा कि मस्जिद ध्वस्त की गई और उसपर जबरन कब्जा किया गया। हम इतिहास को कैसे देखते हैं ये महत्वपूर्ण है।

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जानिए 'केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य केस क्या था

देश के न्यायिक इतिहास में केशवानंद भारती का नाम बहुत मशहूर हैं। 24 अप्रैल, 1973 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा 'केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य' के मामले में दिए गए एक ऐतिहासिक फैसले के चलते कोर्ट-कचहरी की दुनिया में वे लगभग अमर हो गए हैं। हालांकि बहुतों को यह जानकर आश्चर्य हो सकता है कि न्यायिक दुनिया में अभूतपूर्व लोकप्रियता के बावजूद केशवानंद भारती न तो कभी जज रहे हैं और न ही वकील। उनकी ख्याति का कारण तो बतौर मुवक्किल सरकार द्वारा अपनी संपत्ति के अधिग्रहण को अदालत में चुनौती देने से जुड़ा रहा है। वैसे वे दक्षिण भारत के बहुत बड़े संत हैं।

मठ का इतिहास करीब 1,200 साल पुराना

कासरगोड़ केरल का सबसे उत्तरी जिला है। पश्चिम में समुद्र और पूर्व में कर्नाटक से घिरे इस इलाके का सदियों पुराना एक शैव मठ है जो एडनीर में स्थित है। यह मठ नवीं सदी के महान संत और अद्वैत वेदांत दर्शन के प्रणेता आदिगुरु शंकराचार्य से जुड़ा हुआ है। शंकराचार्य के चार शुरुआती शिष्यों में से एक तोतकाचार्य थे जिनकी परंपरा में यह मठ स्थापित हुआ था। यह ब्राह्मणों की तांत्रिक पद्धति का अनुसरण करने वाली स्मार्त्त भागवत परंपरा को मानता है। इस मठ का इतिहास करीब 1,200 साल पुराना माना जाता है। यही कारण है कि केरल और कर्नाटक में इसका काफी सम्मान है। शंकराचार्य की क्षेत्रीय पीठ का दर्जा प्राप्त होने के चलते इस मठ के प्रमुख को 'केरल के शंकराचार्य' का दर्जा दिया जाता है। ऐसे में स्वामी केशवानंद भारती केरल के मौजूदा शंकराचार्य कहे जाते हैं। उन्होंने महज 19 साल की अवस्था में संन्यास लिया था जिसके कुछ ही साल बाद अपने गुरू के निधन की वजह से वे एडनीर मठ के मुखिया बन गए।

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केशवानंद भारती ने सरकार के इस फैसले को अदालत में चुनौती दी

इसके अलावा यह मठ सालों से कई तरह के व्यवसायों को भी संचालित करता है। साठ-सत्तर के दशक में कासरगोड़ में इस मठ के पास हजारों एकड़ जमीन भी थी। यह वही दौर था जब ईएमएस नंबूदरीपाद के नेतृत्व में केरल की तत्कालीन वामपंथी सरकार भूमि सुधार के लिए काफी प्रयास कर रही थी। समाज से आर्थिक गैर-बराबरी कम करने की कोशिशों के तहत राज्य सरकार ने कई कानून बनाकर जमींदारों और मठों के पास मौजूद हजारों एकड़ की जमीन अधिगृहीत कर ली। इस चपेट में एडनीर मठ की संपत्ति भी आ गई। मठ की सैकड़ों एकड़ की जमीन अब सरकार की हो चुकी थी। ऐसे में एडनीर मठ के युवा प्रमुख स्वामी केशवानंद भारती ने सरकार के इस फैसले को अदालत में चुनौती दी।

ये हुआ था निर्णय

केरल हाईकोर्ट के समक्ष इस मठ के मुखिया होने के नाते 1970 में दायर एक याचिका में केशवानंद भारती ने अनुच्छेद 26 का हवाला देते हुए मांग की थी कि उन्हें अपनी धार्मिक संपदा का प्रबंधन करने का मूल अधिकार दिलाया जाए। उन्होंने संविधान संशोधन के जरिए अनुच्छेद 31 में प्रदत्त संपत्ति के मूल अधिकार पर पाबंदी लगाने वाले केंद्र सरकार के 24वें, 25वें और 29वें संविधान संशोधनों को चुनौती दी थी। इसके अलावा केरल और केंद्र सरकार के भूमि सुधार कानूनों को भी उन्होंने चुनौती दी। जानकारों के अनुसार स्वामी केशवानंद भारती के प्रतिनिधियों को सांविधानिक मामलों के मशहूर वकील नानी पालकीवाला ने सलाह दी थी कि ऐसा करने से मठ को उसका हक दिलाया जा सकता है. हालांकि केरल हाईकोर्ट में मठ को कामयाबी नहीं मिली जिसके बाद यह मामला आखिरकार सुप्रीम कोर्ट चला गया।

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सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया वह आज भी मिसाल है

देश की शीर्ष अदालत ने पाया कि इस मामले से कई संवैधानिक प्रश्न जुड़े हैं। उनमें सबसे बड़ा सवाल यही था कि क्या देश की संसद के पास संविधान संशोधन के जरिए मौलिक अधिकारों सहित किसी भी अन्य हिस्से में असीमित संशोधन का अधिकार है। इसलिए तय किया गया कि पूर्व के गोलकनाथ मामले में बनी 11 जजों की संविधान पीठ से भी बड़ी पीठ बनाई जाए। इसके बाद 1972 के अंत में इस मामले की लगातार सुनवाई हुई जो 68 दिनों तक चली। अंतत: 703 पृष्ठ के अपने लंबे फैसले में केवल एक वोट के अंतर से शीर्ष अदालत ने स्वामी केशवानंद भारती के विरोध में फैसला दिया। एडनीर मठ के शंकराचार्य वैसे तो यह मामला हार गए थे, लेकिन इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया वह आज भी मिसाल है। इससे संसद और न्यायपालिका के बीच वह संतुलन कायम हो सका जो इस फैसले के पहले के 23 सालों में संभव नहीं हो सका था और इसके साथ ही अपनी बाजी हारकर भी स्वामी केशवानंद भारती इतिहास के 'बाजीगर'बन गए थे।

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English summary
The Ayodhya dispute is the second longest hearing in the history of the Supreme Court. In the Keshavanand Bharti vs Kerala dispute over the rights, a bench of 13 judges had heard 68 days in five months.
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