राम मंदिर पर सुनवाई: सुप्रीम कोर्ट ने क्या क्या कहा, पढ़िए बड़ी बातें
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में आज अयोध्या मामले पर अहम सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को सभी पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद इस विवाद के स्थायी समाधान के लिए कोर्ट द्वारा नियुक्त और निगरानी में मध्यस्थता को लेकर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। इस मामले की सुनवाई की दौरान सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय बेंच ने कहा कि अदालत अयोध्या भूमि विवाद और इसके प्रभाव को गंभीरता से समझती है और इसलिए इस मामले में जल्द फैसला सुनाना चाहते हैं। 5 सदस्यीय बेंच ने कहा कि अगर इस मामले के पक्षकार मध्यस्थों का नाम सुझाना चाहते हैं तो वे दे सकते हैं।
हिंदू महासभा मध्यस्थता के पक्ष में नहीं
1. इस केस की सुनवाई के दौरान हिंदू महासभा ने अपना स्टैंड साफ कर दिया कि मध्यस्थता नहीं हो सकती है। महासभा ने कहा कि ये भगवान राम की जमीन है, दूसरे पक्ष का इसपर हक नहीं है। लिहाजा इस केस को मध्यस्थता के लिए ना भेजा जाए।
2. रामलला विराजमान का भी कहना था कि मध्यस्थता से हल नहीं निकल सकता है। हालांकि निर्मोही अखाड़े और सुन्नी वक्फ बोर्ड ने मध्यस्थता का पक्ष लिया।
3. कोर्ट ने कहा कि हमें इसकी गंभीरता का पता है और हम आगे मामले को देख रहे हैं। यह उचित नहीं कि अभी कहा जाए कि नतीजा कुछ नहीं होगा।
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विवाद के निपटारे की चिंता, इतिहास ना बताएं- सुप्रीम कोर्ट
4. जस्टिस बोबडे ने कहा कि ये धार्मिक भावनाओं से जुड़ा मामला है। ये 1500 स्क्वायर फीट का मामला नहीं है। हम मध्यस्थता के पक्ष में हैं।
5. सुनवाई के दौरान हिंदू पक्षों ने कहा कि मध्यस्थता निरर्थक प्रयास होगा क्योंकि हिंदू इसे एक भावनात्मक और धार्मिक मामले के तौर पर लेते हैं और इसमें किसी तरह का समझौता नहीं होगा। हिंदू पक्षों ने कहा कि मुस्लिम हमलावर (बाबर) ने मंदिर को ध्वस्त किया था।
6. इस दलील पर जस्टिस बोबडे ने कहा कि अतीत में क्या हुआ, उस पर हमारा नियंत्रण नहीं है। किसने हमला किया, कौन राजा था, मंदिर था या मस्जिद थी। हम मौजूदा विवाद के बारे में जानते हैं। हमें सिर्फ विवाद के निपटारे की चिंता है।
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मुस्लिम पक्ष मध्यस्थता के लिए तैयार- वकील राजीव धवन
7. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'अदालत का मानना है कि मध्यस्थता की प्रक्रिया शुरू होती है तो पूरे घटनाक्रम पर मीडिया रिपोर्टिंग पूरी तरह से बैन होनी चाहिए। 'यह कोई गैग ऑर्डर (न बोलने देने का आदेश) नहीं है बल्कि सुझाव है कि रिपोर्टिंग नहीं होनी चाहिए।'
8. वहीं, मुस्लिम पक्ष की तरफ से वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने कहा कि पूरी प्रक्रिया की गोपनीयता जरूरी है और मध्यस्थता की रिपोर्टिंग होती है तो अदालत इसे अवमानना मान सकती है। उन्होंने कहा कि मुस्लिम पक्षकार किसी समझौते या मध्यस्थता के लिए तैयार हैं। उन्होंने अदालत से इस संदर्भ में शर्तें तैयार करने की बात भी कही।
आपसी बातचीत से मामले को कैसे सुलझाया जाए, ये अहम सवाल- जस्टिस चंद्रचूड़
9. जस्टिस बोबडे ने कहा कि कोई एक मध्यस्थ नहीं रहेगा, मध्यस्थता के लिए एक पैनल की जरूरत है। जिसपर एक हिंदू पक्ष ने कहा कि इसके लिए पब्लिक नोटिस की जरूरत होगी। इसपर जस्टिस भूषण ने सुनवाई के दौरान कहा कि इस मामले में अगर पब्लिक नोटिस दिया गया तो मामला सालों तक चलेगा।
10. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि ये विवाद दो समुदायों का है, इसमें दोनों पक्षों को तैयार करना आसान नहीं है। उन्होंने कहा कि ये अहम सवाल है कि आपसी बातचीत से कैसे मसले को हल किया जाए। बता दें कि मामले की सुनवाई कर रही पीठ ने कहा था कि अगर एक फीसदी भी मध्यस्थता की उम्मीद है तो इस दिशा में कोशिश होनी चाहिए।