अयोध्या विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने रद्द की सभी हस्तक्षेप याचिकाएं, स्वामी से पूछा आप को क्यों मानें पक्षकार
नई दिल्ली। अयोध्या में राम मंदिर-बाबरी मस्जिद प्रोपर्टी विवाद में बुधवार को एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हो गई है। 2.7 एकड़ के इस भूमि विवाद मामले में अलग-अलग वकीलों और संगठनों की तरफ से दाखिल की गई 32 हस्तक्षेप याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया। इनमें अपर्णा सेन और तीस्ता सीतलवाड़ की याचिकाएं भी शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट मामले की अगली सुनवाई 23 मार्च को करेगा। मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सुब्रमण्यम स्वामी से पूछा है कि उन्हें इस मामले में तीसरे पक्ष के रूप में शामिल होने की इजाजत आखिर क्यों दी जाए। वहीं स्वामी ने कोर्ट में कहा कि उनका मौलिक अधिकार किसी भी प्रोपर्टी के अधिकार से ज्यादा अहम है।
किसी से समझौते के लिए नहीं कह सकते: SC
सुप्रीम कोर्ट ने ये भी साफ किया है कि वह किसी भी पार्टी को समझौते के लिए नहीं कह सकती है। अदालत ने कहा कि वो किसी पर ये दबाव नहीं डाल सकती कि वो समझौता कर लें। फरवरी में मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा था कि अदालत की नजर में ये एक प्रोपर्टी से जुड़ा मामला है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया था कि आस्था जैसी बात अदालत के लिए कोई मायने नहीं रखती है।
केस से जुड़े दस्तावेजों का हुआ अनुवाद
इस पूरे मामले की सुनवाई जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नजीर की बेंच करेगी। आठ मार्च को सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार के सामने हुई मीटिंग में सभी पक्षों का कहना था कि कागजी कार्रवाई और अनुवाद का काम लगभग पूरा हो गया है। बता दें, रामायण, रामचरितमानस व गीता आदि के दस्तावेजों का अंग्रेज़ी में अनुवाद का काम हो चुका है। राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद केस में करीब 9 हजार से ज्यादा पन्ने हैं जो हिन्दी, पाली, उर्दू, अरबी, पारसी, संस्कृत आदि सात भाषाओं हैं इनका अंग्रेजी में अनुवाद किया गया है। कोर्ट के आदेश पर अनुवाद का यह काम उत्तर प्रदेश सरकार ने किया है।
2010 में हाईकोर्ट ने तीन पक्षों में बांटी थी जमीन
2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बैंच ने अपने फैसले में अयोध्या में 2.77 एकड़ के इस विवादित स्थल को इस विवाद के तीनों पक्षकार सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और भगवान राम लला के बीच बांटने का आदेश दिया था। इस फैसले के खिलाफ तीनों ही पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था।
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