अयोध्या विवाद: मुस्लिम पक्ष ने दाखिल किया मोल्डिंग ऑफ रिलीफ, जानें फिर क्या बोले चीफ जस्टिस
बेंगलुरु। अयोध्या के रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद मामले में मुस्लिम पक्ष की ओर से सुप्रीम कोर्ट में मोल्डिंग ऑफ रिलीफ पर हलफनामा दायर किया गया। मुस्लिम पक्ष के हलफनामा दायर करते ही चीफ जस्टिस आफ इंडिया रंजन गोगोई ने मुस्लिम पक्ष से कहा ये तो अंग्रेजी अखबार के फ्रंट पेज पर था। वह इतने पर ही चुप नहीं हुए गोगोई ने आगे कहा क्या आपने उन्हें भी एक कॉपी दी है?
बता दें अयोध्या के रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में लगातार चल रही सुनवाई खत्म हो चुकी है। बरसों से चले आ रहे इस केस की 6 अगस्त 2019 से सुप्रीम कोर्ट में रोजाना सुनवाई हुई, इस दौरान अदालत ने हफ्ते में पांच दिन इस मामले को सुना। करीब 40 दिन की लंबी सुनवाई के बाद अदालत ने अपना फैसला रिजर्व कर लिया है। माना जा रहा हैं कि 15 नवबंर से पहले सुप्रीम कोर्ट इस मामले में ऐतिहासिक फैसला सुना देगी। सोमवार को मुस्लिम पक्ष की ओर से विगत सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में मोल्डिंग ऑफ रिलीफ पर हलफनामा दायर किया गया। इसी दौरान चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने मुस्लिम पक्ष से कहा कि ये तो अंग्रेजी अखबार के फ्रंट पेज पर था। क्या आपने उन्हें भी एक कॉपी दी है?
इस पर मुस्लिम याचिकाकर्ताओं की ओर से जवाब दिया गया है, उन्होंने सभी याचिकाकर्ताओं को इसकी कॉपी दी है। मुस्लिम पक्षकारों ने कहा कि पहले उन्होंने इसे सीलबंद लिफाफे में दिया था, लेकिन बाद में सभी याचिकाकर्ताओं को इसकी कॉपी दी गई। गौरतलब है कि मुस्लिम पक्ष की ओर से इससे पहले जब मोल्डिंग ऑफ रिलीफ पर नोट दिया गया था, तो कोई सवाल किए थे। मुस्लिम पक्षकारों ने अपने नोट में उम्मीद जताई है कि मॉल्डिंग ऑफ रिलीफ के जरिए भी कोर्ट इस महान देश के ऐतिहासिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विरासत का भी ध्यान रखेगा , ताकि हमारी सदियों पुरानी गौरवशाली साझी विरासत और बहुलतावादी सामंजस्य वादी संस्कृति बनी रहे।
वहीं नोट के आखिर में यह भी कहा गया है कि मोल्डिंग ऑफ रिलीफ के जरिए हमारा संविधान इन्हीं मूल्यों को बचाए और बनाए रखने की जिम्मेदारी भी कोर्ट को ही सौंपता है। इसमें कहा गया था कि कोर्ट का जो भी फैसला होगा, वो देश के भविष्य और आने वाली पीढ़ियों की सोच पर असर डालेगा। फैसला देश की आजादी और गणराज्य के बाद संवैधानिक मूल्यों में यकीन रखने वाले करोड़ों नागरिकों पर भी प्रभाव डालेगा।
क्या होता है मोल्डिंग ऑफ रिलीफ?
आपको बता दें कि अयोध्या विवाद पूरे अदालती और न्यायिक इतिहास में रेयरेस्ट और रेयर मामलों में से एक है। इसमें विवाद का असली यानी मूल ट्रायल हाई कोर्ट में हुआ था और पहली अपील सुप्रीम कोर्ट सुन रहा है। मोल्डिंग ऑफ रिलीफ का मतलब ये हुआ कि याचिकाकर्ता ने जो मांग कोर्ट से की है अगर वो नहीं मिलती तो विकल्प क्या हो जो उसे दिया जा सके। यानी दूसरे शब्दों में कहें तो सांत्वना पुरस्कार। बता दें मुस्लिम पक्ष ने वैकल्पिक राहत की मांग सीलबंद लिफाफे में दाखिल की जिस पर हिंदू पक्ष ने आपत्ति जाहिर की। लेकिन अदालत ने इस मांग को रिकॉर्ड पर ले लिया है।
गौर करने वाली बात ये है कि वैकल्पिक राहत के मसले पर एक कदम आगे बढ़ते हुए रामलला की तरफ से सुप्रीम कोर्ट से विशेषाधिकारों का इस्तेमाल करते हुए पूरी जमीन खुद को देने की मांग की गई है। कहा गया है कि हाईकोर्ट के फैसले को दरकिनार कर निर्मोही अखाड़ा या मुस्लिम पक्ष को कोई हिस्सा न दिया जाए। एएसआइ की रिपोर्ट से साबित है कि यहां मंदिर हुआ करता था। लिहाजा पूरी जमीन ही हिंदू पक्ष को दे दी जाए।
लेकिन मुस्लिम पक्ष की मांग विषय से कुछ हटकर है। ये एक दीवानी केस है और इसमें जमीन के मालिकाना हक को लेकर हिंदू-मुस्लिम पक्ष कोर्ट में हैं। मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि फैसला ऐसा आए जिसमें संवैधानिक मूल्य परिलक्षित हों। क्योंकि ये मामला देश की भावी पीढ़ियों को प्रभावित करेगी। सुन्नी वक्फ बोर्ड की तरफ से दाखिल इस अपील में कहा गया है कि कोर्ट देशहित में फैसला दे। सुप्रीम कोर्ट संविधान का रखवाला है और उसके फैसले में बहुसांस्कृतिक और अनेक धर्मों वाली संस्कृति की झलक मिलनी चाहिए। भविष्य की पीढ़ियां इस फैसले को कैसे देखेंगी, इसका भी ध्यान फैसले में रखा जाना चाहिए।
ये बात कोर्ट को याद दिलाने कि अदालत के फैसले तथ्यों पर होते हैं भावनाओं पर नहीं। सुप्रीम कोर्ट संविधान का रखवाला है। सुप्रीम कोर्ट को यह बात याद दिलाने के लिए मुस्लिम पक्ष का शायद कोई मकसद रहा हो जो कि इस केस में स्पष्ट तो नहीं होता है। मुख्य मांग उसकी भी जमीन पर कब्जे की है लेकिन मोल्डिंग ऑफ रिलीफ में मुस्लिम पक्ष एक भावुक अपील कर रहा है जो कि अपने आप में अमूर्त किस्म की है। ये केस किसी छोटी-मोटी अदालत में नहीं संविधान पीठ में चल रहा है और मुख्य न्यायाधीश समेत पीठ में पांच जजों ने सवा महीने इसकी सुनवाई की है।
संविधान पीठ को फैसला देते वक्त संविधान के मूल्यों का उपदेश देना कितनी युक्तिसंगत बात है ये तो फैसला आने पर ही पता चलेगा। लेकिन इतना तो तय है कि मुस्लिम पक्ष ने तथ्यों के साथ भावुक अपील भी कर दी है। अदालत के फैसले तथ्यों और गवाहों पर आधारित होते हैं। इस मामले में सीधे कोई गवाह है नहीं। तथ्यों के नाम पर ऐतिहासिक और पौराणिक साक्ष्य हैं। भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण की रिपोर्ट है जो कि केस में एक अहम सुबूत कही जा सकती है। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में विवादित जमीन को तीन भागों में बांटा था जिसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील हुई और हिंदू-मुस्लिम पक्ष ने पूरी जमीन का मालिकाना हक मांगा है।
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