अयोध्या केस: सुप्रीम कोर्ट में सुन्नी वक्फ बोर्ड ने खारिज किया निर्मोही अखाड़ा का दावा
नई दिल्ली। अयोध्या भूमि विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ रोजाना सुनवाई कर रही है। सुन्नी वक्फ बोर्ड की तरफ से शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में दलीलें पेश की गई। इस दौरान सुन्नी वक्फ बोर्ड की तरफ से वकील जफरयाब जिलानी ने निर्मोही अखाड़ा के मिल्कियत के दावे को खारिज किया। जिलानी ने कहा कि 23-23 दिसंबर की रात 1949 में गुबंद के नीचे मूर्तियां रखे जाने के बाद मजिस्ट्रेट को विवादित इमारत से मूर्तियों को हटाने का निर्देश दिया गया था।
जफरयाब जिलानी ने निर्मोही अखाड़ा के दावे को खारिज किया
मजिस्ट्रेट ने इसे मानने से इनकार करते हुए कहा कि अब ये संभव नहीं है, केवल कोर्ट के आदेश से ही मुमकिन होगा। जफरयाब जिलानी ने कहा कि 1949 के बाद विवादित स्थल को प्रशासन ने अपने संरक्षण में रखा। ये गलत फैसलों पर लगातार अमल जारी रहने के कारण हुआ है। 1949 तक विवादित ढांचे में हर शुक्रवार लगातार नमाज अदा की जाती रही। सारी जानमाज उस इमारत में नहीं रखी जाती थीं, लेकिन शुक्रवार को लाई जरूर जाती थीं।
मुस्लिम पक्ष ने विवादित भूमि पर किया मस्जिद का दावा
वकील जफरयाब जिलानी ने दस्तावेजों के जरिए इसे साबित करने की कोशिश की और कहा कि विवादित ढांचे में नियमित नमाज अदा की जाती थी। वहीं, सुनवाई के 22वें दिन गुरुवार को मुस्लिम पक्ष की तरफ से वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने अपनी दलीलें पेश की। राजीव धवन ने मामले की सुनवाई से पहले, कानूनी टीम के क्लर्क को धमकी की जानकारी अदालत को दी और कहा कि ऐसे गैर-अनुकूल माहौल में बहस करना मुश्किल हो गया है।
राजीव धवन ने क्लर्क को धमकी की जानकारी कोर्ट को दी थी
राजीव धवन ने सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ को बताया कि यूपी में एक मंत्री ने कहा कि अयोध्या हिंदुओं का है, मंदिर उनका है और सुप्रीम कोर्ट भी उनका है। मैं अवमानना के बाद अवमानना दायर नहीं कर सकता हूं। उन्होंने पहले ही 88 साल के व्यक्ति के खिलाफ अवमानना का मामला दायर किया है। राजीव धवन की की दलीलों पर सीजेआई रंजन गोगोई ने कहा कि कोर्ट के बाहर इस तरह के व्यवहार निंदनीय हैं। देश में ऐसा नहीं होना चाहिए। हम इस तरह के बयानों की निंदा करते हैं। सीजेआई ने कहा कि दोनों पक्ष बिना किसी डर के अपनी दलीलें कोर्ट के सामने पेश करने के लिए स्वतंत्र हैं।