कौन हैं मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन, जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट में फाड़ा नक्शा?
नई दिल्ली। देश के सबसे चर्चित मामलों में से एक अयोध्या भूमि विवाद की सुनवाई 40वें दिन पूरी हो गई है। सभी पक्षों की दलीलों के पूरी होने के साथ ही बुधवार को सर्वोच्च अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। वहीं, बुधवार को अयोध्या मामले की सुनवाई के 40वें दिन कोर्ट में दोनों पक्षों के बीच तीखी बहस हुई। सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष के वकील ने अखिल भारतीय हिंदू महासभा के वकील विकास सिंह की तरफ से पेश किए गए नक्शे को फाड़ दिया। इसपर सीजेआई नाराज हो गए और उन्होंने हमारी तरफ से बहस पूरी हो चुकी है, कोई कुछ कहना चाहता है तो इसलिए वक्त दिया जा रहा है, वरना हम उठकर जा भी सकते हैं। 1994 में अयोध्या विवाद में अपनी दलीलों से चर्चा में आए राजीव धवन सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील हैं।
राजीव धवन ने फाड़ा कोर्ट में नक्शा
अखिल भारतीय हिंदू महासभा द्वारा भगवान राम के जन्मस्थान को दर्शाने वाले नक्शे का हवाला दिए जाने पर राजीव धवन आपत्ति जताई थी। नक्शा फाड़ने के बाद कोर्ट में राजीव धवन सफाई देते हुए बोले, 'मैंने कहा था कि इसे फाड़ रहा हूं, इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि जो करना है करो, तो मैंने फाड़ दिया। अब मीडिया में चल रहा है कि चीफ जस्टिस के कहने पर मैंने कागज़ फाड़े। इस पर सीजेआई गोगोई ने कहा, स्पष्टीकरण हो गया। आप कह सकते हैं कि मेरे कहने पर ही आपने कागज फाड़े।'
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील हैं
राजीव धवन ने इलाहाबाद और शेरवुड स्कूल, नैनीताल से अपनी स्कूली शिक्षा ली, इसके बाद उन्होंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी, लंदन यूनिवर्सिटी और कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से उच्च शिक्षा प्राप्त की। राजीव धवन के पिता शांति स्वरूप धवन ब्रिटेन में भारत के राजदूत रह चुके हैं। वे पश्चिम बंगाल के राज्यपाल और लॉ कमिशन के सदस्य भी रहे हैं। राजीव धवन इंडियन लॉ इंस्टीट्यूट में प्रोफेसर भी हैं।
सुन्नी वक्फ बोर्ड की तरफ से लड़ रहे हैं केस
राजीव धवन के बारे में कहा जाता है कि वे कांग्रेस नेता और वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल के करीबी हैं, साथ ही उनसे ही वकालत के गुर सीखे हैं। मंडल मामले में भी राजीव धवन की दलीलों ने सुर्खियां बटोरीं थीं। अयोध्या भूमि विवाद में वे सुन्नी वक्फ बोर्ड की तरफ से केस लड़ रहे हैं और सुनवाई के दौरान कई बार अपनी दलीलों के कारण वे चर्चा में आए हैं।
धवन के नक्शा फाड़ने पर हुआ विवाद
बता दें कि राम मंदिर और बाबरी मस्जिद मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने साल 2010 में फैसला सुनाया था। जिसमें कोर्ट ने विवादित 2.77 एकड़ भूमि को तीन पक्षकारों-सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच बराबर-बराबर बांटने का फैसला सुनाया था। इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले से तीनों पक्षों ने असहमति जताई थी और इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 14 याचिकाएं दायर की गई थीं। वहीं, मध्यस्थता की कोशिशें नाकाम होने के बाद इस मामले में 6 अगस्त से सुप्रीम कोर्ट में रोजाना सुनवाई हो रही थी, जो बुधवार, 16 अक्टूबर को पूरी हुई। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रखा है।