अयोध्या केस: कार्बन डेटिंग क्या है जो SC ने रामलला के लिए पूछा है, जानिए
नई दिल्ली- अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को सातवें दिन भी सुनवाई जारी रही। बहस के दौरान संवैधानिक बेंच के सामने यह दलील पेश की गई कि विवादित स्थल पर देवी-देवताओं की कई आकृतियां मिली हैं। इस पर बेंच ने पूछ लिया क्या इनकी कार्बन डेटिंग हुई है? आइए जानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से पूछे गए इस सवाल की क्या अहमियत है, कार्बन डेटिंग होती क्या है और इससे विवाद को सुलझाने में कैसे बड़ी मदद मिल सकती है?
कार्बन डेटिंग पर अदालत में क्या हुआ?
दरअसल, शुक्रवार को सुनवाई के दौरान रामलला विराजमान के वकील की ओर से अदालत में बताया गया कि मूर्ति को छोड़ दूसरे मटेरियल का कार्बन डेटिंग हुआ था। इस पर जस्टिस बोबड़े ने कहा कि हमने दूसरे मटेरियल नहीं, बल्कि मूर्ति की कार्बन डेटिंग के बारे में पूछा है। इसी दौरान मुस्लिम पक्ष की तरफ से कहा गया कि ईंटों की कार्बन डेटिंग नहीं हो सकती है। कार्बन डेटिंग तभी हो सकती है, जब उसमें कार्बन की मात्रा हो। इसपर रामलला के वकील की तरफ से भी कहा गया कि देवता की कार्बन डेटिंग नहीं हुई है।
क्यों उठी कार्बन डेटिंग की बात?
इससे पहले बेंच के सामने रामलला विराजमान के वरिष्ठ वकील सीएस वैद्यनाथन ने पूर्व में अदालत की ओर से नियुक्त विवादित स्थल का निरीक्षण करने वाले कमिश्नर की रिपोर्ट के अंश पढ़े। उन्होंने बेंच को बताया कि कमिश्नर ने 16 अप्रैल, 1950 को विवादित स्थल का निरीक्षण किया था। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में भगवान शिव की आकृति वाले स्तंभों की उपस्थिति का वर्णन किया था। वैद्यनाथन ने कहा कि मस्जिद के खंबों पर नहीं, बल्कि मंदिरों के स्तंभों पर ही देवी-देवताओं की आकृतियां मिलती हैं। उन्होंने कोर्ट को बताया कि पक्के निर्माण में जहां तीन गुम्बद बनाए गए थे, वहां रामलला की मूर्ति थी। उन्होंने 1950 की निरीक्षण रिपोर्ट के साथ स्तंभों पर उकेरी गई आकृतियों के वर्णन के साथ अयोध्या में मिला एक नक्शा भी पीठ को सौंपा। उन्होंने कहा कि इन तथ्यों से पता चलता है कि यह हिन्दुओं के लिए धार्मिक रूप से एक पवित्र स्थल था। वैद्यनाथन ने ढांचे के भीतर देवाओं के तस्वीरों का एक एलबम भी पीठ को सौंपा और दलील की कि मस्जिदों में इस तरह के चित्र नहीं होते हैं। सुप्रीम कोर्ट इस समय अयोध्या में 2.77 एकड़ विवादित भूमि के मालिकाना हक के मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर सुनवाई कर रहा है।
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कार्बन डेटिंग से चीजों की आयु पता चलती है
आज के अत्याधुनिक युग में वैज्ञानिक मानव से लेकर सभी जीव-जन्तुओं और वनस्पतियों तक की उम्र का पता लगा लेते हैं। कार्बन डेटिंग वह तरीका है, जिससे पत्थर, मिट्टी, हड्डी, चमड़े, बाल, कोयला, लकड़ी, बीज, बीजाणु और पराग जैसी चीजों का लगभग वास्तविक उम्र का पता लगाया जा सकता है। कुल मिलाकर कार्बन डेटिंग या रेडियो कार्बन डेटिंग से हर उस चीज की उम्र का पता चल सकता है, जिसमें कार्बन के अवशेष होते हैं।
कार्बन डेटिंग की तकनीक
किसी चीज की उम्र पता करने के लिए वैज्ञानिक उस पदार्थ के सी-12 और सी-14 कार्बन का अनुपात निकालते हैं। सी-14 एक तरह से कार्बन का ही रेडियोएक्टिव आइसोटॉप है, जिसकी आधी आयु 5730 साल होती है। आज के जमाने में जस्टिस सिस्टम से लेकर इतिहास, विज्ञान, भू-विज्ञान,भूगोल, पुरातत्व, मानव विज्ञान जैसे अनेक विषयों में इसका उपयोग हो रहा है। पुरातत्व विज्ञान का तो यह आधार ही माना जा सकता है। हालांकि यह प्रक्रिया भी पूरी तरह से विवादों से परे नहीं है।
1949 में हुआ था आविष्कार
रेडियो कार्बन डेटिंग तकनीक का इजाद 1949 में शिकागो विश्वविद्यालय में हुआ था। इसे दुनिया के सामने लाने का श्रेय के विलियर्ड लिबी और उनके साथियों को जाता है, जिन्हें इसके लिए 1960 में रसायन विज्ञान का नोबेल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। सबसे पहले उन्होंने इस तकनीक का इस्तेमाल कर लकड़ी की उम्र का पता लगया था।
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