अयोध्या केस: SC से पुनर्विचार याचिका खारिज होने के बाद भी मुस्लिम पक्ष के पास ये है विकल्प
नई दिल्ली- अयोध्या में राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के खिलाफ दायर सभी 18 पुनर्विचार याचिकाएं खारिज होने के बाद भी मुसलमानों के पास एक और आखिरी मौका बचा हुआ है। लेकिन, अगर वह विकल्प भी खारिज हो गया तो उनके पास इस मामले में सारे कानूनी विकल्प खत्म हो जाएंगे। वैसे ये मुस्लिम पक्षों पर निर्भर करता है कि वह अंतिम विकल्प का भी उपयोग करे या फिर सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की तरह सुप्रीम अदालत के सुप्रीम फैसले को स्वीकार कर ले।
सभी 18 पुनर्विचार याचिकाएं खारिज
अयोध्या मसले पर मुस्लिम पक्ष के पास अंतिम विकल्प अपनाने के अलावा कोई उपाय इसलिए नहीं बचा है। क्योंकि, गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने इस केस से संबंधित सभी 18 पुनर्विचार याचिकाएं ठुकरा दी हैं। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ 9 याचिकाएं पक्षकारों की ओर से और 9 अन्य लोगों की ओर से दायर की गई थी। ये सारी याचिकाएं 9 नवंबर को अयोध्या की सारी विवादित जमीन राम लला को देने के सुप्रीम कोर्ट के ही फैसले के विरोध में डाली गई थी। हालांकि, इन याचिकाकर्ताओं में एक प्रमुख मुस्लिम पक्षकार यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड शामिल नहीं था, जिसने पहले ही पुनर्विचार याचिका नहीं दायर करने का फैसला किया था।
मुस्लिम पक्ष के पास ये है अंतिम विकल्प
जो पक्ष अयोध्या मसले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से संतुष्ट नहीं हैं, उनके पास अंतिम विकल्प के तौर पर क्यूरेटिव पिटीशन दायर करने का रास्ता बचा है। इस याचिका को उपचार याचिका भी कहते हैं। यह याचिका पुनर्विचार से थोड़ा अलग होता है और इसमें फैसले से संबंधित कुछ खास बिंदुओं को उठाया जाता है और अदालत से गुजारिश की जाती है कि इसपर ध्यान देने की दरकार है। हालांकि, फिर से यह सुप्रीम कोर्ट पर ही निर्भर करता है कि वह क्यूरेटिव पिटीशन को सुनने पर विचार करे या फिर उसे पुनर्विचार याचिका की तरह ही सिरे से खारिज कर दे। अलबत्ता, अगर क्यूरेटिव पिटीशन भी ठुकरा दी जाती है, तब उनके पास कोई कानूनी विकल्प नहीं बच जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट के बेंच में सिर्फ एक जज नए थे
गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट के जिस बेंच ने पुनर्विचार याचिकाओं को ठुकराया है, उसमें चीफ जस्टिस एसए बोबडे के अलावा जस्टिस डीवाआई चिंद्रचूड़,जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस संजीव खन्ना शामिल थे। इन जजों में जस्टिस खन्ना को छोड़कर बाकी सभी वही जज हैं, जिन्होंने तत्कालीन सीजेआई रंजन गोगोई की अगुवाई वाली संवैधानिक बेंच के अंतर्गत फैसला सुनाया था। इस बेंच ने सदियों से चली आ रही अयोध्या विवाद को महज 40 दिन की लगातार सुनवाई के बाद सुलझा दिया था और विवादित जमीन का मालिकाना हक राम लला को दे दिया था। साथ ही मुस्लिम पक्ष सुन्नी वक्फ बोर्ड को अयोध्या में ही 5 एकड़ जमीन देने के निर्देश सरकार को दिए थे। जबकि, तीसरे पक्ष निर्मोही अखाड़ा को राम मंदिर ट्रस्ट में उचित प्रतिनिधित्व दिए जाने का फैसला सुनाया गया था।