सड़क पर तड़प रही जिस महिला के लिए ऑटो ड्राइवर बना फरिश्ता, उसी महिला ने किया शर्मसार
दर्द से कराह रही महिला हर आने-जाने वाले को हाथ देकर मदद के लिए रोक रही थी, लेकिन कोई भी उसकी मदद के लिए नहीं रुका...
नई दिल्ली। इन्सानियत का कोई रूप नहीं होता और ना ही उसकी कोई पहचान होती है, लेकिन अक्सर कुछ लोग ऐसे कुछ काम कर जाते हैं, जिन्हें देखकर इन्सानियत से सामना हो जाता है। कर्नाटक के बेंगलुरू में भी एक ऐसा ही मामला सामने आया है, जहां एक ऑटो ड्राइवर ने ऐसी मिसाल कायम की है, जिसे सुनकर आप भी कहेंगे कि दुनिया में अभी इन्सानियत जिंदा है। हालांकि जिस महिला की इस ऑटो ड्राइवर ने मदद की, बाद में उसी महिला ने इन्सानियत को शर्मसार कर दिया। बेंगलुरू के रहने वाले बाबू मुदद्रप्पा पेशे से ऑटो ड्राइवर हैं, लेकिन उन्होंने जो काम किया है, वो शायद हम और आप सोच भी नहीं सकते। बाबू रास्ते में मिली एक अनजान गर्भवती महिला को पहले अस्पताल लेकर गए और जब वो महिला अपनी ही नवजात बच्ची को छोड़कर अस्पताल से गायब हो गई तो बाबू ने उस बच्ची को अपना लिया। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था...
हाथ देकर रोक रही थी महिला, लेकिन कोई नहीं रुका
'स्टोरीपिक' में छपी खबर के मुताबिक, कहानी कुछ यूं है कि बाबू मुदद्रप्पा अपने घर से सुबह ऑटो लेकर निकले तो बेंगलुरू के व्हाइटफील्ड रोड के किनारे उन्हें एक गर्भवती महिला मिली, जो दर्द से कराह रही थी। महिला हर आने-जाने वाले को हाथ देकर मदद के लिए रोक रही थी, लेकिन कोई भी उसकी मदद के लिए नहीं रुका। महिला को इस हाल में देखकर बाबू ने तुरंत अपना ऑटो रोका और उसे बिठाकर नजदीकी अस्पताल की ओर भागा। अस्पताल पहुंचने पर डॉक्टरों ने उससे कहा कि इस महिला की डिलीवरी यहां नहीं हो पाएगी, आप इसे सीवी रमन हॉस्पिटल ले जाइए। इसके बाद बाबू महिला को फिर से ऑटो में बिठाकर सीवी रमन हॉस्पिटल की ओर भागा।
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महिला ने किया इन्सानियत को शर्मसार
सीवी रमन हॉस्पिटल पहुंचकर बाबू ने महिला को भर्ती कराया और सभी जरूरी कागजी कार्यवाही पूरी की। महिला ने अस्पताल में एक बच्ची को जन्म दिया लेकिन वो 2 महीन की प्री-मेच्योर पैदा हुई और उसका वजह महज 850 ग्राम था। यहां डॉक्टरों ने बाबू को नवजात बच्ची के बारे में बताया और उससे कहा कि बच्ची को इलाज के लिए दूसरे अस्पताल में भर्ती कराए। बिना वक्त गंवाए बाबू नवजात बच्ची को तुरंत अस्पताल लेकर पहुंचा और इलाज के लिए भर्ती कराया। इसके बाद जब बाबू दोबारा सीवी रमन हॉस्पिटल पहुंचा तो पता चला कि बच्ची की मां अस्पताल से बिना किसी को कुछ बताए जा चुकी है। अब बाबू के लिए काफी कठिन घड़ी थी। वो उस मासूम नवजात बच्ची को यूंही लावारिस नहीं छोड़ सकता था। बाबू ने उस बच्ची को गोद लेने का फैसला लिया।
दिन में ऑटो चलता और रात को हॉस्पिटल जाता
इसके बाद बाबू ने दोनों हॉस्पिटल के सभी बिलों का भुगतान किया और अपने घर आ गया। बाबू ने बताया, 'उस वक्त वो महिला काफी दर्द में थी, इसलिए मैंने उससे कोई सवाल नहीं किया और उसे लेकर सीधे हॉस्पिटल आ गया। अस्पताल में जब मैं कागजी कार्यवाही पूरी कर रहा था तो महिला ने बताया कि उसका नाम नंदिता है। इसके अलावा मुझे उस महिला के बारे में कुछ नहीं पता था।' बाबू शादीशुदा हैं और उनके दो बच्चे हैं। वो दिन में अपना ऑटो चलाता और शाम में बच्ची को अस्पताल में देखने जाता। शुरुआती रिपोर्ट से पता चला कि बच्ची सांस लेने की काफी गंभीर समस्या से पीड़िता है, लेकिन धीरे-धीरे वो रिकवर कर रही थी और लग रहा था कि उसकी हालत सुधर रही है।
बच्ची को नहीं बचा पाया बाबू
बाबू ने उस बच्ची के लिए वो सबकुछ किया, जिसकी उसको जरूरत थी। डॉक्टरों ने उसके लिए जो दवाइयां बताई, बाबू उन सभी दवाइयों को लेकर आया। बाबू चाहता था कि वो बच्ची जल्द से जल्द ठीक हो जाए। लेकिन...धीरे-धीरे बच्ची की हालत बिगड़ने लगी और अस्पताल में 18 दिनों के इलाज के बाद उसकी मौत हो गई। बाबू ने किसी को नहीं बताया कि उस बच्ची के इलाज में उसके कितने पैसे खर्च हुए, वो केवल इस बात से दुखी है कि लाख कोशिशों के बावजूद वो उस बच्ची को नहीं बचा सका। हालांकि बाबू के बारे में जिस किसी ने भी सुना, उसी ने उसकी तारीफ की। लोगों ने उसे फरिश्ते का एक रूप बताया।
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