क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

औरैया हादसा: मज़दूरों के शव भी 'मज़दूरों की तरह' ही भेज दिए गए

उत्तर प्रदेश के औरैया में हुए हादसे के बाद मज़दूरों और उनके परिजनों का दर्द कम नहीं हआ है.

By समीरात्मज मिश्र
Google Oneindia News
सुदामा यादव
Samiratmaj Mishra/BBC
सुदामा यादव

झारखंड के पलामू ज़िले के रहने वाले सुदामा यादव औरैया ज़िला अस्पताल के पीछे बने पोस्ट मॉर्टम हाउस के बाहर गुमसुम खड़े अपने बेटे के शव का इंतज़ार कर रहे हैं.

आंखों में आंसू नहीं हैं. कभी पोस्टमॉर्टम हाउस की ओर देखते हैं, जहाँ बर्फ़ की बड़ी-बड़ी सिल्लियां रखी हैं तो कभी तीनों तरफ़ उजड़े खेतों को निहारते हैं. देखने से ऐसा लग ही नहीं रहा है कि बेटा चला गया है.

पूछने पर धीमी आवाज़ में जवाब देते हैं, "टीवी में सुने थे कि एक्सीडेंट हो गया है. बेटे ने बताया था कि वह भी घर लौट रहा था. फ़ोन लगा नहीं.

आशंका हुई तो घर से चल पड़े. कंट्रोल रूम में फ़ोन किए तो कहा गया कि आकर पोस्टमॉर्टम हाउस में संपर्क करें. परिचय देने पर बेटे की लाश की तस्वीर दिखाकर पहचान कराई गई."

सुदामा यादव यह पूरी कहानी एक सांस में कह देते हैं. 21 वर्षीय युवा बेटे की मौत ने उन्हें भीतर से इस क़दर तोड़ दिया है कि रो भी नहीं पा रहे हैं.

कुछ देर बाद ख़ुद पास आते हैं और कहते हैं, "15 मई को शादी होने वाली थी, लॉकडाउन के चलते दिसंबर के लिए टाल दी गई थी. घर पर बोलकर आया हूं कि बेटे को चोट लगी है. अब इस गाड़ी से उसकी लाश लेकर घर जाऊंगा तो घर वालों का सामना कैसे करूंगा?"

अंतहीन पीड़ा

औरैया हादसा: मज़दूरों के शव भी मज़दूरों की तरह ही भेज दिए गए

सुदामा यादव पोस्टमॉर्टम हाउस के बाहर खड़ी दो गाड़ियों (पिकअप) की ओर इशारा करते हैं जिनमें बर्फ़ की सिल्लियां रखी जा रही हैं और उन्हीं में से किसी एक गाड़ी में उनके बेटे का भी शव रखा जाना है.

सुदामा यादव के दो बेटे हैं जिनमें दुर्घटना में मृत नितीश यादव बड़े थे. बेटा मज़दूरी करने राजस्थान गया था और वे ख़ुद झारखंड में ही रहकर पुताई (पेंटिंग) का काम करते हैं.

सुदामा यादव के साथ ही झारखंड के बोकारो के रहने वाले ब्रजेश कुमार भी हैं, जिनके एक भाई की इस दुर्घटना में मौत हो गई और दूसरे भाई सैफ़ई मेडिकल अस्पताल में ज़िंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रहे हैं.

रविवार दोपहर तक 23 मृतकों के शव झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल और यूपी के उन ज़िलों में भेजे जा चुके थे जहां इन मृतकों के परिजन रहते हैं और जहां जाने की हर संभव कोशिश में इन मज़दूरों ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया.

सभी मृतक उसी ट्रक में सवार थे जिसने सड़क पर खड़ी डीसीएम गाड़ी को टक्कर मार दी थी. डीसीएम गाड़ी में सवार क़रीब 20 लोग भी अस्पताल में भर्ती हैं.

औरैया की एडीएम रेखा एस चौहान ने बीबीसी को बताया कि दोनों ही ड्राइवरों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज करा दी गई है. एक ड्राइवर अस्पताल में भर्ती है जबकि दूसरे ड्राइवर के बारे में अभी कुछ पता नहीं चला है.

जिन 23 लोगों की लाशें रविवार शाम तक भेजी जा चुकी थीं उनमें 11 मृतक झारखंड के थे. इन सभी लाशों को दो कंटेनरों (टेंपोनुमा गाड़ियां जिन्हें स्थानीय लोग पिकअप भी कहते हैं) में भरकर उनके घरों को भेज दिया गया. इन्हीं गाड़ियों में उन मृतकों के परिजन भी भेज दिए गए जो औरैया तक आ सके थे.

सरकारी व्यवस्था

औरैया हादसा: मज़दूरों के शव भी मज़दूरों की तरह ही भेज दिए गए

औरैया की अपर ज़िलाधिकारी रेखा एस चौहान ने बीबीसी को बताया, "कुल आठ गाड़ियों में रूट के हिसाब से इन शवों को भेजा गया है. दो गाड़ियां बोकारो भेजी गई हैं, दो पश्चिम बंगाल भेजी गई हैं, तीन गाड़ियां यूपी के विभिन्न हिस्सों में भेजी गई हैं और एक गाड़ी गया (बिहार) भेजी गई है. इनमें कुछ एंबुलेंस थीं और कुछ बड़े कंटेनर थे."

बाद में दो अन्य गाड़ियों में बचे हुए दो मृतकों के शव भी उनके घरों को भेज दिए गए. रेखा एस चौहान बताती हैं कि सबसे ज़्यादा 11 मृतक बोकारो और छह पुरुलिया (पश्चिम बंगाल) के थे जिन्हें दो-दो वाहनों में भेजा गया, जबकि जिन ज़िलों में सिर्फ़ एक ही मृतक थे, उनके लिए अलग गाड़ियों का इंतज़ाम किया गया.

रेखा एस चौहान ने बताया कि हर गाड़ी के साथ एक राजस्व अधिकारी और एक पुलिस कांस्टेबल को भी भेजा गया है.

औरैया हादसा: मज़दूरों के शव भी मज़दूरों की तरह ही भेज दिए गए

औरैया ज़िला प्रशासन ने अपने उपलब्ध संसाधनों के आधार पर मृतकों को पहुँचाने की व्यवस्था की लेकिन मृतकों के परिजनों को यह

व्यवस्था उन्हें अपनों के खोने से भी ज़्यादा दर्द दे गई.

बोकारो से आए एक मृतक के रिश्तेदार वीरेंद्र महतो बेहद आहत थे. वो बोल पड़े, "मज़दूर थे, जैसे मन किया भेज दिया. न तो कोई पूछने वाला है और न ही कोई सुनने वाला है. जिन मज़दूरों की जीते जी कोई इज़्ज़त नहीं थी, मरने के बाद कौन इज़्ज़त करेगा? मज़दूर के मरने से किसी को क्या फ़र्क पड़ रहा है?"

शनिवार को हुआ था हादसा

औरैया हादसा: मज़दूरों के शव भी मज़दूरों की तरह ही भेज दिए गए

शनिवार को औरैया में चिरहूली गाँव के पास दो ट्रकों की टक्कर में 26 लोगों की अब तक मौत हो चुकी है. कई लोग अभी भी सैफ़ई मेडिकल विश्वविद्यालय में गंभीर अवस्था में भर्ती हैं.

मेडिकल विश्वविद्यालय के कुलपति डॉक्टर राजकुमार ने बीबीसी को बताया, "कुल 32 लोगों को यहां औरैया ज़िला प्रशासन ने भर्ती कराया था. एक व्यक्ति की कुछ ही देर बाद मौत हो गई. पाँच लोगों की हालत गंभीर है जिन्हें हर संभव उपचार दिया जा रहा है. ज़रूरत पड़ने पर ऑपरेशन भी किया जाएगा. बाक़ी लोगों को हड्डियों से संबंधित चोटें हैं लेकिन ऐसी दुर्घटनाओं में हल्की चोटों को भी नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए क्योंकि इनका असर बाद में भी दिखाई पड़ता है."

रविवार को औरैया के ज़िला अस्पताल, ज़िलाधिकारी कार्यालय और सैफ़ई मेडिकल कॉलेज में कहीं भी ऐसा माहौल नहीं था जैसे एक दिन पहले इतनी बड़ी दुर्घटना हुई हो. न मीडिया का जमावड़ा, न रोते बिलखते लोग और न ही संवेदना जताने वाले.

स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन के लोग इस मुद्दे पर कुछ यूं बताते हैं जैसे एक हादसा था और वो गुज़र चुका. दोनों विभागों के लोगों का पूरा ध्यान कोरोना संक्रमित आँकड़ों को जुटाने और संक्रमित मरीज़ों की देखभाल में लगा हुआ है. हालांकि दुर्घटना में मृत मज़दूरों और घायलों में से किसी का कोविड परीक्षण नहीं किया गया है.

बिहार के मोतिहारी ज़िले के सुशील कुमार सैफ़ई मेडिकल कॉलेज में भर्ती हैं. सुशील भी उसी ट्रक में सवार थे जो राजस्थान से आ रहा था और इन्हें पटना पहुँचाने का वादा किया गया था.

औरैया हादसा: मज़दूरों के शव भी मज़दूरों की तरह ही भेज दिए गए

सुशील कुमार के चेहरे पर काफ़ी चोट लगी है. इनके एक भतीजे की भी मौत हो गई.

ट्रक से आने की वजह वे बताते हैं, "हम लोग तो 200 किमी तक पैदल ही चल रहे थे. भरतपुर के पास पुलिस वालों ने इस ट्रक पर बैठा दिया. ट्रक पर 46 लोग बैठे थे."

सुशील कुमार राजस्थान में जिस मार्बल कंपनी में काम करते थे उसी कंपनी में बोकारो के रहने वाले संजय कुमार भी काम करते थे. संजय बताते हैं, "दो महीने से कोई काम नहीं था. पैसा ख़त्म था. कंपनी का मालिक बात ही नहीं कर रहा था. ट्रेन और बस में बहुत पैसा लग रहा था और हमें पता भी नहीं था कि कहाँ मिलेगी और कैसे मिलेगी. 30 लोग साथ में थे. सभी पैदल ही चल पड़े. रास्ते में खाने के लिए सभी लोग ढेर सारा चना रख लिए थे."

सैफ़ई में ही सागर की रहने वाली सत्यवती और उनका 10 साल का बेटा भी भर्ती हैं. बेटे के पैर में काफ़ी चोट आई है जबकि सत्यवती का चेहरा चोट की वजह से सूज गया है.

काम की समस्या

औरैया हादसा: मज़दूरों के शव भी मज़दूरों की तरह ही भेज दिए गए

सत्यवती और उनकी दो अन्य बहनों के परिवार के कुल 16 लोग उस डीसीएम गाड़ी में सवार थे जो दुर्घटना के वक़्त सड़क के किनारे खड़ी थी और जिसे राजस्थान से आ रहे ट्रक ने टक्कर मार दी थी. डीसीएम गाड़ी इन लोगों को ग़ाज़ियाबाद से लेकर चली थी.

सत्यवती और उनके परिवार के अन्य सदस्य ग़ाज़ियाबाद के इंदिरापुरम में रहते हैं. सत्यवती घरों में काम करती हैं और उनके पति रिक्शा चलाते हैं. दो महीने से किसी के पास कोई काम नहीं था.

वो बताती हैं, "हमारे पास पैसा ख़त्म हो गया था. राशन मिल नहीं रहा था. ट्रेन और बस के बारे में सुने थे लेकिन उतना पैसा हमारे पास नहीं था. डीसीएम वाले ने 15 हज़ार रुपए में घर तक पहुंचाने का वादा किया था. हम लोगों ने इतना पैसा उसे दे दिया. हमारे अलावा तीन और लोग बैठे थे जो छतरपुर जा रहे थे."

सत्यवती की तीनों बहनें और उनके परिजन सभी लोग इसी अस्पताल में भर्ती हैं. इन्होंने मध्य प्रदेश के सागर ज़िले में अपने परिजनों को सूचित कर दिया है लेकिन अब तक कोई आ नहीं पाया है. 16 लोगों के इस परिवार को एक बार फिर वही चिंता सता रही है कि यहाँ से कैसे अपने घर जाएं. अब तो पैसे भी ख़त्म हो चुके हैं.

हालाँकि उत्तर प्रदेश सरकार ने मृतकों को दो-दो लाख रुपए के अलावा घायलों को भी 50-50 हज़ार रुपए देने की घोषणा की है. सैफ़ई मेडिकल विश्वविद्यालय में उनके इलाज के अलावा खाने-पीने की भी व्यवस्था की जा रही है.

औरैया की एडीएम रेखा एस चौहान कहती हैं कि मुआवज़े की राशि देने संबंधी काग़ज़ी कार्रवाई जल्द ही पूरी कर दी जाएगी लेकिन सत्यवती को इस बारे में कुछ भी मालूम नहीं है.

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
Auraiya Incident: The dead bodies of workers were also sent 'like workers'
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X