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राम मंदिर ही नहीं भाजपा के लिए इस खास वजह से ऐतिहासिक होने जा रही 5 अगस्त की तारीख

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नई दिल्ली- 5 अगस्त, 2020 भगवान राम में आस्था रखने वाले करोड़ों लोगों के लिए तो ऐतिहासिक दिन है ही। भारतीय जनता पार्टी के लिए यह तारीख इतनी महत्वपूर्ण होने वाली है, जिसके आधार पर उसकी भविष्य की राजनीति की दशा और दिशा तय होती रहेगी। जिस दिन अयोध्या में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भूमि पूजन करने वाले हैं, वह दिन कश्मीर से आर्टिकल-370 हटाए जाने की पहली वर्षगांठ भी है। आइए समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर क्या वजह है कि कोरोना संक्रमण के वक्त कई तरह के विरोध के बावजूद भी 5 अगस्त को भूमि पूजन कार्यक्रम नहीं टला।

ऐतिहासिक हो चुकी है 5 अगस्त की तारीख

ऐतिहासिक हो चुकी है 5 अगस्त की तारीख

जनसंघ के जमाने के बाद से भाजपा का तीन ही कोर एजेंडा रहा है- धारा-370, राम मंदिर और कॉमन सिविल कोड। लेकिन, एनडीए के गठन के लिए बीजेपी ने इन तीनों एजेंडे को साइडलाइन रख दिया था। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को अपने दम पर 282 सांसद मिले, बावजूद इसके नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली भाजपा की पहली पूर्ण बहुमत सरकार ने इनमें से किसी भी कोर एजेंडे को हाथ नहीं लगाया। लेकिन, 2019 में नरेंद्र मोदी को दूसरे कार्यकाल के लिए भाजपा को जैसे ही देश ने लोकसभा की 303 सीटें दीं, सिर्फ दो महीने बाद ही उसने अपने पहले कोर एजेंडे पर सफलतापूर्वक फतह हासिल कर ली। यह था जम्मू और कश्मीर को संविधान के जरिए मिले विवादास्पद विशेष दर्जा वाले आर्टिकल-370 को 5 अगस्त, 2019 को खत्म कर देना। बीजेपी सरकार यहीं तक नहीं रुकी। उसने जम्मू और कश्मीर से राज्य का दर्जा भी हटा दिया और जम्मू और कश्मीर और लद्दाख को दो संघ शासित क्षेत्र बना दिए। मोदी सरकार ने ऐसा करके इतिहास में अपना नाम दर्ज करा लिया। बड़ी बात ये है कि लोकसभा ने तो दो-तिहाई बहुमत से इस फैसले पर मुहर तो लगाया ही, राज्यसभा में पूर्ण बहुमत न होते हुए भी इसे दो-तिहाई मतों से पास करा लिया। यानि 5 अगस्त की तारीख मोदी सरकार के लिए ही नहीं, बल्कि स्वतंत्र भारत के लिए भी ऐतिहासिक तारीख बन गई।

भाजपा के दो एजेंडे पर कामयाबी की मुहर लगने वाली तारीख

भाजपा के दो एजेंडे पर कामयाबी की मुहर लगने वाली तारीख

अयोध्या में राम जन्मभूमि पर रामलला का मंदिर ही बनेगा, यह फैसला किसी और ने नहीं, बल्कि देश के सुप्रीम कोर्ट ने 9 नवंबर, 2019 को दिया था। यह वही राम मंदिर है, जिसके निर्माण के लिए चलाए गए आंदोलनों ने भाजपा को 1989 में दो सांसदों से 88 सांसदों तक पहुंचा दिया था। बीजेपी ने पहली बार 1996 के अपने मैनिफेस्टो में अयोध्या में राम जन्मभूमि पर भव्य राम मंदिर बनाने का संकल्प जताया था। इस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 5 अगस्त, 2020 को अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन करके और आधारशिला रखकर हमेशा के लिए इसका राजनीतिक स्वामित्व अपने नाम कर लेंगे। मतलब साफ है कि हिंदुत्व के पहले एजेंडे यानि धारा-370 के खात्मे की पहली वर्षगांठ पर राम मंदिर की नींव पड़ने से बेहतर सियासत के दृष्टिकोण से कोई शुभ मुहूर्त हो ही नहीं सकती थी। यानि भविष्य में जब भी स्वतंत्रता दिवस की तैयारियां शुरू होंगी, उससे ठीक 10 दिन पहले देश के लोगों के पास धारा-370 के हटने और राम मंदिर के निर्माण के उल्लास में झूमने का मौका मिलेगा।

विपक्ष को 'तारीख' भी बताना था

विपक्ष को 'तारीख' भी बताना था

यहां गौर करने वाली बात ये है कि जम्मू-कश्मीर से धारा-370 हटाने का एजेंडा जनसंघ के पास 1950 के दशक से था। राम मंदिर आंदोलन को भाजपा ने अपना आंदोलन 1980 के दशक से बनाया। इसलिए, धारा-370 हटाने की तारीख उसके लिए तो स्वाभाविक रूप से पहले ही ऐतिहासिक बन चुकी है। भाजपा के विरोधी उस पर यही कटाक्ष करते थे कि 'मंदिर वहीं बनाएंगे, लेकिन तारीख नहीं बताएंगे।' वास्तव में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले बीजेपी सरकार के लिए तारीख बताना मुमकिन भी नहीं था। लेकिन, जब सुप्रीम कोर्ट ने भव्य राम मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ कर दिया तो बीजेपी सरकार ने 5 अगस्त की शुभ मुहूर्त वाली तारीख बताकर विपक्ष की तंज का जवाब भी दे दिया। अलबत्ता, इस तारीख के विरोध में कुछ सवाल भी उठाए गए हैं। कुछ धार्मिक जानकार सावन पूर्णिमा के बाद की इस तारीख को अच्छा नहीं बता रहे हैं। तर्क दिया जा रहा है कि ऐसे में शुभ कार्य नहीं होने चाहिए। लेकिन, फिर भी केंद्र सरकार को शायद लगा कि उसके लिए तो 5 अगस्त से अच्छा शुभ मुहूर्त कोई हो नहीं सकता। क्योंकि, यह वह तारीख बन चुकी है, जिसमें बीजेपी को लगता है कि वह सियासी बढ़त हासिल कर चुकी है।

मुहूर्त के विरोध को भी किया नजरअंदाज

मुहूर्त के विरोध को भी किया नजरअंदाज

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार को लगता है कि राम मंदिर के मुद्दे पर उसे इतनी ज्यादा नैतिक और राजनीतिक बढ़त मिल चुकी है कि मुहूर्त के नाम पर अड़ंगेबाजी के छोटे-मोटे विरोध को हवा करना मुश्किल नहीं है। वजह भी जाहिर है। कांग्रेस के नेता भी अंदर ही अंदर असहज महसूस कर रहे हैं। मसलन, भाजपा समर्थकों की नजर में हिंदुत्व-विरोधी छवि रखने वाले दिग्विजय सिंह को अब राम मंदिर निर्माण की तारीख की चिंता सता रही है, लेकिन उनके साथी और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ वीडियो संदेश जारी कर इसका स्वागत कर रहे हैं। पड़ोसी छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश सिंह बघेल तो भगवान राम के ननिहाल में मंदिर का काम आगे बढ़ाकर भाजपा पर बढ़त लेने की होड़ में लग गए हैं। यानि एजेंडा बीजेपी ने तय किया है और कांग्रेस के नेता उसके पीछे चलने को बाध्य होते दिख रहे हैं।

नेहरूवादी सोच पर फाइनल अटैक

नेहरूवादी सोच पर फाइनल अटैक

आजादी के बाद पूर्व प्रधानमंत्री और देश के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की पहल पर गुजरात के सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ था। 1951 में इसके उद्घाटन समारोह में पहले राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को बुलावा मिला। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को राष्ट्रपति का वहां जाना पसंद नहीं था। उन्होंने खत लिखकर राजेंद्र बाबू से कहा- 'आपका सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन में जाने का विचार मुझे पसंद नहीं आया। यह महज एक मंदिर दर्शन नहीं है।' लेकिन, प्रधानमंत्री की सलाह ठुकराकर राष्ट्रपति उस कार्यक्रम में शरीक हुए थे। 5 अगस्त, 2020 को अयोध्या में भूमि पूजन और राम मंदिर की आधारशिला रखकर शायद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारतीय राजनीति की उसी नेहरूवादी हिचक को तोड़ना चाहते हैं और सरदार पटेल और राजेंद्र प्रसाद की वैचारिक धारा को आगे बढ़ाना चाहते हैं। क्योंकि, पीएम मोदी के साथ सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला भी है, जिसके बाद वह सियासत के किसी दोराहे पर खड़े नहीं रहना चाहते।

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English summary
August 5 is going to be historic not only for Ram temple but for this special reason also for BJP
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