नज़रियाः दक्षिण भारत पर इतने मेहरबान क्यों दिखे मोदी?
यानी हिंदी क्षेत्र में उन्हें 2014 की तरह सफलता नहीं मिलेगी तो सीटों की संख्या कम हो सकती है. ऐसे में उनकी नज़रें दक्षिण भारत पर हैं.
दक्षिण भारत में लोकसभा की 129 सीटें हैं. आंध्र प्रदेश का बंटवारा होने के बाद पांच राज्य और एक केंद्र शासित प्रदेश है.
तमिलनाडु में एआईएडीएमके की जयललिता और डीएमके के करुणानिधि की मौत के बाद भाजपा की यह कोशिश हो सकती है कि वो इन दोनों पार्टियों में से किसी एक के साथ गठबंधन बनाकर चुनाव में उतरे.
स्वतंत्रता दिवस पर दिए अपने भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दक्षिण भारत का ज़िक्र कई बार किया.
उन्होंने नीलगिरी की पहाड़ियों पर उगने वाले फूल नीलकुरुंजी, आंध्र प्रदेश की बेटियों, सुब्रह्मण्यम भारती और श्री अरविंद (अरविंद घोष) की कविताओं का ज़िक्र किया.
मोदी ने कहा कि आज़ादी के बाद बाबा साहेब आंबेडकर के नेतृत्व में समावेशी संविधान का निर्माण हुआ. ये हमारे लिए कुछ ज़िम्मेदारियां लेकर आया है. समाज के हर तबके को आगे ले जाने के लिए संविधान मार्गदर्शन करता रहा है.
इसी महीने की शुरुआत में जब तमिलनाडु के पूर्व सीएम और डीएमके प्रमुख एम करुणानिधि का निधन हुआ तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चेन्नई पहुंचें, उनके अंतिम दर्शन किए.
प्रधानमंत्री का दक्षिण भारत के प्रति यूं रुचि दिखाना दक्षिण भारत के लिए जहां एक अच्छा संकेत कहा जा सकता है, वहीं इसके राजनीतिक मायने भी लगाए जा रहे हैं.
चुनावी रणनीति
नरेंद्र मोदी ऐसा इस कारण कर रहे हैं ताकि भारतीय जनता पार्टी दक्षिण भारतीय राज्यों से अधिक से अधिक लोकसभा सीटें जीत सके.
आम चुनाव केवल 8 महीने दूर हैं. 2014 में नरेंद्र मोदी को मिले प्रचंड बहुमत में उत्तर भारत के हिंदी प्रदेशों का सर्वाधिक योगदान था. उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से 73 सीटें भारतीय जनता पार्टी और उनके सहयोगियों को मिली थीं.
2014 के चुनाव में लोकसभा की 543 में से भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए को 340 सीटें मिली थीं.
दक्षिण भारत की सीटों पर नज़र
अब उनकी पार्टी के ही कई लोग यह मानते हैं कि उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में 2014 में मिली सफलता को दोहरा पाना कठिन होगा.
यानी हिंदी क्षेत्र में उन्हें 2014 की तरह सफलता नहीं मिलेगी तो सीटों की संख्या कम हो सकती है. ऐसे में उनकी नज़रें दक्षिण भारत पर हैं.
दक्षिण भारत में लोकसभा की 129 सीटें हैं. आंध्र प्रदेश का बंटवारा होने के बाद पांच राज्य और एक केंद्र शासित प्रदेश है.
तमिलनाडु में एआईएडीएमके की जयललिता और डीएमके के करुणानिधि की मौत के बाद भाजपा की यह कोशिश हो सकती है कि वो इन दोनों पार्टियों में से किसी एक के साथ गठबंधन बनाकर चुनाव में उतरे.
कर्नाटक एक मात्र ऐसा राज्य है जहां भाजपा पहले भी सत्ता में आ चुकी है और वर्तमान में यह 104 विधानसभा सीटों के साथ राज्य में सबसे बड़ी पार्टी भी है.
राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ हैं अहम
राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में चुनाव होने वाले हैं. भाजपा ने 2014 के चुनाव में इन तीनों राज्यों में अच्छा प्रदर्शन किया था.
2014 के चुनाव में भाजपा ने राजस्थान में सभी 25 सीटें, छत्तीसगढ़ की 11 में से 10 सीटें और मध्य प्रदेश की 29 में से 27 सीटें जीती थीं.
इसके अलावा दिल्ली (7), गुजरात (26), हिमाचल (4) की सभी सीटें तो झारखंड की 14 में से 12 सीटें भाजपा की झोली में गई थीं.
पर क्या भाजपा इन तीनों राज्यों में 2014 के अपने प्रदर्शन को दोहराने में कामयाब रहेगी? यह बहुत बड़ा प्रश्न है.
गणित बहुत महत्वपूर्ण है और बहुमत लाना आसान काम नहीं है, ऐसे में नज़रें दक्षिण भारत की ओर हैं.
दक्षिण से भरपाई की कोशिश
अब अगर दक्षिण भारतीय राज्यों में लोकसभा सीटों को देखें तो सबसे ज़्यादा लोकसभा सीटें तमिलनाडु में (39) हैं. कर्नाटक में 28, आंध्र प्रदेश में 25, केरल में 20 और तेलंगाना की 17 सीटों के मिलाकर दक्षिण भारत में 129 लोकसभा सीटें हैं.
इसके अलावा पुद्दुचेरी की एक और गोवा की दो सीटें भी हैं.
भाजपा की कोशिश है कि उसे इन 129 में से कुछ सीटें हासिल हों ताकि हिंदी प्रदेशों में होने वाले नुकसान को कम किया जा सके.
2014 के चुनाव में भाजपा को कर्नाटक में 17 सीटों पर जीत मिली थी बाकी के अन्य राज्यों में उसकी उपस्थिति नाम मात्र की थी.
लाल किले की प्राचीर से नरेंद्र मोदी ने सुब्रमण्यम भारती की कविता पढ़ी...''भारत पूरी दुनिया के हर तरह के बंधनों से मुक्ति पाने का रास्ता दिखाएगा.''
तो इसी तरह क्या 2019 के आम चुनावों में दक्षिण भारत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा की नैय्या पार लगा सकेगा, यह तो वक्त ही बताएगा.
(बीबीसी संवाददाता अभिजीत श्रीवास्तव के साथ बातचीत पर आधारित)
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