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ATTENTION: नॉर्थ-ईस्ट के इन इलाकों में नहीं लागू होगा संधोधित नागरिकता कानून

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बेंगलुरू। नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 संसद के दोनों सदन से पास हो गया है, लेकिन नॉर्थ-ईस्टर्न राज्यों में हिंसा और विरोध समाप्त होने का नाम नहीं ले रहा है। दिलचस्प बात यह है कि राष्ट्रपति की मुहर के बाद कानून बन चुके नागिरकता संशोधन विधेयक 2019 के बारे में बहुत कम इत्तेफाक रखते हैं।

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माना जा रहा है कि नार्थ-ईस्ट में प्रदर्शन कर रहे बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि नागरिकता संशोधन विधेयक पास होने के बाद भी नॉर्थ-ईस्ट के उन खास इलाकों में यह विधेयक लागू ही नहीं होगा, जो संविधान के छठवीं अनुसूची में शामिल है और जो इलाके इनर लाइन परमिट में हैं। इस अनभिज्ञता के बावजूद बिल के विरोध में प्रदर्शन जारी है और अब कुल 3 लोगों की जान जा चुकी हैं।

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गौरतलब है बिल के खिलाफ अब तक हुए हिंसात्मक विरोध-प्रदर्शन में सबसे अधिक असम में असर देखा गया है, जहां बिल का विरोध-प्रदर्शन के चलते हालात इतने बेकाबू हो गए हैं कि प्रशासन को गुवाहाटी में वहां कर्फ्यू लगाना पड़ा है। कई इलाकों में तो सरकारी कर्मचारी तक नागरिकता बिल के विरोध में सड़क पर उतर आए हैं।

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बिल के विरोध में जगह-जगह आगजनी करके सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। हिंसा पर उतारू भीड़ से निपटने के लिए प्रशासन को ऐसे हिंसाग्रस्त कई इलाकों में सेना को तैनात करना पड़ा है, लेकिन विरोध थमने का नाम नहीं ले रहे है। शायद यही कारण है कि हिंसात्मक प्रदर्शन को फैलने से रोकने के लिए सरकार ने इंटरनेट को बाधित करना पड़ा है।

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बीजेपी नेताओं ने बिल के विरोध में असम और त्रिपुरा समेत नॉर्थ ईस्ट अन्य राज्यों में हिंसात्मक विरोध-प्रदर्शन के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया है। खुद प्रधानमंत्री मोदी ने असम और त्रिपुरा में हिंसात्मक विरोध-प्रदर्शन के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराते हुए हिंसा पर उतारू भीड़ से शांति की अपील की है।

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प्रधानमंत्री ने बिल का विरोध कर रहे भीड़ को यह कहकर आश्वस्त करने की कोशिश कि बिल से नॉर्थ-ईस्टर्न राज्यों के संस्कृति और पहचान को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा। कांग्रेस पर बीजेपी का आरोप और मौजू हो जाता है, क्योंकि जिन दो राज्यों में सबसे अधिक हिंसात्मक प्रदर्शन हो रहे हैं उनमें त्रिपुरा और असम शामिल है, जहां अभी बीजेपी की सरकार हैं।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि असम और त्रिपुरा समेत सभी नॉर्थ-ईस्टर्न राज्यों में नागरिकता संशोधित विधेयक 2019 का विरोध कर रहे प्रदर्शनकारी इससे वाकिफ नहीं हैं कि बिल में इनर लाइन परमिट का ध्यान रखते हुए उन हिस्सों को बाहर रखा गया है, जहां बिल लागू ही नहीं हो सकता है।

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नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 के विरोध में प्रदर्शन कर रहे लोगों का व्यवहार अभी 'कौव्वा कान ले गया' वाली कहावत को चरित्रार्थ कर रहा हैं। क्योंकि नॉर्थ ईस्ट के उन इलाकों में भी विरोध प्रदर्शन हो रहा है, जिन इलाकों में यह बिल कानून बनने के बाद भी निष्प्रभावी ही रहेगा।

उल्लेखनीय है नए नागरिकता बिल को दो वजहों से नॉर्थ ईस्ट के कई इलाकों में लागू नहीं किया जा सकता है। पहला यह कि नॉर्थ ईस्ट के कुछ इलाके 'इनर लाइन' के जरिए सुरक्षित रखे गए हैं। दूसरा यह है कि कई इलाकों को संविधान की छठी अनुसूची में रखा गया है इसलिए वहां नया नागरिकता कानून लागू नहीं किया जा सकता है।

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अफसोस यह है कि भीड़ का हिस्सा बने छात्र और छात्राएं भी इससे वाकिफ नहीं है। भेड़ चाल में चल रहे ऐसे प्रदर्शनों के चलते एक तरफ जहां नॉर्थ-ईस्टर्न इलाकों का जनजीवन प्रभावित हुआ तो दूसरी तरह नॉर्थ-ईस्ट आवागमन बाधित होने से देश के दूसरे हिस्सों से कट गया है।

दरअसल, पूर्वोत्तर राज्यों के कई इलाकों को इनर लाइन परमिट के जरिए सुरक्षित रखा गया है। इनर लाइन परमिट यानी आईएलपी में देश के दूसरे इलाकों से लोगों को नॉर्थ ईस्ट के उन इलाकों मे जाने से पहले राज्य सरकार से अनुमति लेनी पड़ती है। दूसरे राज्यों के नागरिक नॉर्थ ईस्ट के उन इलाकों में बिना परमिट के नहीं जा सकते हैं।

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नॉर्थ ईस्ट के आईएलपी से सुरक्षित इलाकों में नया नागरिकता कानून लागू नहीं होगा। महत्वपूर्ण बात यह है कि जब संशोधित नागरिकता विधेयक लागू ही नहीं होता तो प्रदर्शन क्यूं हो रहे हैं, जिसके पीछे विपक्षी दलों की साजिश से इनकार नहीं किया जा सकता है, जिसकी तरफ प्रधानमंत्री भी इशारा कर चुके हैं।

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मालूम हो, नागरिकता संशोधन विधेयक से असम की राजनीतिक, भाषायी या भूमि से जुड़े अधिकारों को कोई नुकसान नहीं पहुंचने के आश्वासनों के बावजूद विरोध -प्रदर्शन नहीं रूक रहे हैं जबकि सरकार बार-बार और लगातार इसकी घोषणा कर चुकी हैं कि पूर्वोत्तर के इलाकों में यह कानून प्रभावी नहीं होगा।

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क्योंकि पूर्वोत्तर के ज्यादातर हिस्से इनर लाइन परमिट या संविधान की छठी अनुसूची के कारण नए कानून के दायरे में नहीं आते हैं। यह शोध का विषय हैं कि नॉर्थ-ईस्ट राज्यों में लोगों को एजुकेट करने के बजाय कौन राजनीतिक रोटियां सेंक रहा हैं, जिसमें पूरा नॉर्थ-ईस्ट को जलने के लिए छोड़ दिया गया हैं।

यह भी पढ़ें- असम में नागरिकता एक्ट का विरोध जारी, सेना की 26 और टुकड़ियां भेजी गईं

असम के इन इलाकों में नहीं प्रभावी हैं नया नागरिकता कानून

असम के इन इलाकों में नहीं प्रभावी हैं नया नागरिकता कानून

इनर लाइन परमिट कानून के तहत असम में तीन स्वायत्त जिला परिषदों में राष्ट्रपति की मुहर के कानून बन चुके नागरिकता संशोधित विधेयक 2019 प्रभावी नहीं होगा। हालांकि तीन स्वायत्त जिला परिषदों को छोड़कर बाकी में पूरे राज्य में नया कानून लागू हो सकता है। स्थानीय लोगों में आशंका है कि नए कानून से कामकाज, रोजगार पर असर पड़ेगा। आबादी में वे अल्पसंख्यक हो जाएंगे जबकि सच्चाई बिल्कुल जुदा हैं।

प्रदर्शन कर रहे लोगों में कैब और एनआरसी को लेकर है भ्रम

प्रदर्शन कर रहे लोगों में कैब और एनआरसी को लेकर है भ्रम

माना जा रहा है कि हिंसात्मक विरोध के पीछे लोगों में एनआरसी और कैब को लेकर फैला हुआ भ्रम हैं। भ्रमित लोंगो में अधिक लोग असम और त्रिपुरा के हैं, जो नागरिकता संशोधन कानून के पास होने से पहले और कानून बनने के बाद भ्रमित होकर प्रदर्शन कर रहे हैं। स्थानीय लोगों को आशंका है कि एनआरसी के तहत बाहरी घोषित लोगों को यहां बसने का अधिकार मिल जाएगा जबकि यह सत्य नहीं हैं। सरकार लोगों को एजुकेट करने के लिए कैंपेन शुरू किया जाए तो लोगों का भ्रम दूर किया जा सकता है।

आखिर क्या है नया संशोधित नागरिकता कानून

आखिर क्या है नया संशोधित नागरिकता कानून

नए नागरिकता कानून के मुताबिक पाक, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न के शिकार वो हिंदू, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं, जो 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आ चुके हों। इनमें मुस्लिम समुदाय के लोगों को बाहर रखा गया है, लेकिन अगर कोई प्रताड़ित मुस्लिम भारत में नागरिकता के लिए आवेदन करता है तो उसकी नागरिकता पर सरकार विचार जरूर करेगी।

नॉर्थ-ईस्ट के इन क्षेत्रों में भी नहीं है कानून का कोई असर

नॉर्थ-ईस्ट के इन क्षेत्रों में भी नहीं है कानून का कोई असर

पूरा अरुणाचल प्रदेश इनर लाइन परमिट के अंतर्गत आता है, वहां नया कानून लागू नहीं होता। दीमापुर छोड़कर नगालैंड का भी पूरा इलाका इनर लाइन परमिट से सुरक्षित रखा गया है, जहां यह निष्प्रभावी रहेगा। इसी तरह मणिपुर को भी इनर लाइन परमिट से सुरक्षित करने की कवायद सरकार ने कर दी है।

संविधान के 6वीं अनुसूची के तहत मिला है यह विशेषाधिकार

संविधान के 6वीं अनुसूची के तहत मिला है यह विशेषाधिकार

पूर्वोत्तर के कई क्षेत्रों को संविधान की छठी अनुसूची में रखा गया है। इन इलाकों को विशेष अधिकार प्राप्त हैं। इन राज्यों में स्वायत्त जिला परिषद हैं। इन परिषदों को अपने इलाके में कोई कानून लागू करने या न करने का अधिकार प्राप्त है। ऐसे में नया नागरिकता कानून यहां भी लागू नहीं होता।

क्या है इनर लाइन परमिट से सुरक्षा?

क्या है इनर लाइन परमिट से सुरक्षा?

इनर लाइन परमिट (आईएलपी) के तहत आने वाले इलाकों में जाने के लिए देश के दूसरे हिस्से के बाशिंदों को संबंधित राज्य सरकार से अनुमति लेनी पड़ती है। आईएलपी से सुरक्षित इलाकों में नया नागरिकता कानून लागू नहीं होगा, यानी ऐसे शरणार्थियों के वहां जाकर बसने का खतरा नहीं है।

त्रिपुरा
असम के बाद हिंसा से प्रभावित दूसरे राज्य त्रिपुरा में एक स्वायत्त जिला परिषद है, लेकिन राज्य का 70 फीसदी क्षेत्र संशोधित नागरिकता विधेयक के दायरे में आएंगे। शेष 30 फीसदी भौगोलिक क्षेत्र में राज्य की दो तिहाई आबादी है, सिर्फ वहां ही नया कानून लागू होगा।

मिजोरम
मिजोरम में तीन स्वायत्त जिला परिषदें हैं। चूंकि पूरा राज्य इनर लाइन परमिट से सुरक्षित है इसलिए यहां भी नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 लागू नहीं होगा, क्योंकि मिजोरम को संविधान की छठी अनुसूची में भी रखा गया है, ऐसे में यहां नया कानून प्रभावी ही नहीं हो सकता है।


मेघालय
नागिरकता संशोधन विधेयक असम की तीन स्वायत्त जिला परिषदों की तरह मेघालय में तीन स्वायत्त जिला परिषदों में लागू नहीं होगा, लेकिन पूरा राज्य इसके दायरे में है जबकि राजधानी शिलांग के कुछ हिस्से में ही नया कानून लागू होगा।

Comments
English summary
It is believed that very few people protesting in the North-East will know that even after passing the Citizenship Amendment Bill, this Bill will not be applicable in those special areas of North-East, which is included in the Sixth Schedule of the Constitution. And areas which are in the Inner Line Permit. Protests against the bill continue and now a total of 3 people have lost their lives.
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