बड़े बेआबरू होकर कूंचे निकले, जानिए JDU में प्रशांत किशोर के एंट्री से एग्जिट तक का सफ़र!
बेंगलुरू। चुनावी रणनीतिक प्रशांत किशोर उर्फ पीके की छवि पिछले 6 वर्षों में एक ऐसे चुनावी चक्रव्यूह रचनाकार के रूप में उद्घाटित हुई है, जिन्होंने अपने सधे हुए चालों से अलग-अलग पार्टियों को सत्ता के शीर्ष पर बैठाया है, लेकिन चुनावी राजनीति की रण में उतरने के बाद से प्रशांत किशोर की आभा बिखरने लग गई।
वर्ष 2018 में जदयू से जुड़कर सक्रिय राजनीति में उतरे महत्वाकांक्षी प्रशांत किशोर जदयू प्रमुख नीतीश कुमार के उत्तराधिकारी बनने के फिराक में थे। उनकी गिट्टी सटीक बैठी भी थी, जब नीतीश कुमार दो वर्ष पहले पीके को पार्टी में शामिल करते ही सीधे पार्टी का उपाध्यक्ष बना दिया था, लेकिन दो वर्ष बाद धक्के देकर जदयू से निकाले गए पीके की राजनीतिक यात्रा शैशव अवस्था में खत्म हो गई लगती है।
कहा जाता है जब दो साल पहले वर्ष 2018 में जेडीयू से प्रशांत किशोर ने सियासी पारी का आगाज किया था तब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पीके को बिहार का भविष्य बताया था, लेकिन वर्तमान में रणनीतिकार पीके की राजनीतिक पारी इतिहास में बदल चुकी है, क्योंकि पीके को अपनी बगल की कुर्सी सौंपने वाले नीतीश कुमार ने अब उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया है।
यह सब एकाएक नहीं हुआ जब सत्ता में बिठाने और उतारने के महारथी प्रशांत किशोर को बेआबरू होना पड़ा है, क्योंकि यह वही प्रशांत किशोर है, जिनकी तारीफ के कसीदे पढ़ने ने नीतीश ने जदयू की उत्तराधिकारी की रेस में चल रहे आरसीपी सिंह और ललन सिंह को दरकिनार करते हुए पार्टी उपाध्यक्ष बना दिया था।
बड़े बेआबरू होके जदयू के कूंचे से निकले प्रशांत किशोर वर्ष 2014 लोकसभा चुनाव में सूरज की तरह चमके थे। माना जाता है कि यह उनकी ही व्यूह रचना का असर था कि प्रधानमंत्री कैंडीडेट नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने लंबे अरसे के बाद केंद्र में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में कामयाब हुई थी।
1984 में 8वीं लोकसभा के लिए हुए आम चुनाव में प्रधानमंत्री कैंडीडेट राजीव गांधी के नेतृत्व कांग्रेस ने रिकॉर्ड 404 सीट जीतकर पूर्व बहुमत की सरकार बनाई थी, लेकिन उसके बाद कुल 20 वर्ष बाद भारत में पीएम मोदी के नेतृत्व में केंद्र में पूर्ण बहुमत की सरकार काबिज हुई थी, जिसका श्रेय बीजेपी भी चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर को देने से नहीं चूंकी थी।
2014 लोकसभा चुनाव में अकेले बीजेपी ने 282 सीटों पर जीत दर्ज की थी और केंद्र में मोदी के नेतृत्व में सरकार बनाने में कामयाब हुई थी। मीडिया और चुनाव विश्लेषक एक तरफ जहां बीजेपी की जीत का श्रेय मोदी लहर और मोदी सुनामी को दे रहे थे, लेकिन बीजेपी ने ईमानदारी से बड़ी जीत के लिए इसका श्रेय चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर को देने से गुरेज नहीं किया।
यही वह समय था जब प्रशांत किशोर उर्फ पीके पहली बार लाइम लाइट में आए और उनकी कंपनी आईपैक चर्चा में आई। बीजेपी की जीत में एक टूल की तरह काम करने वाले महत्वाकांक्षी प्रशांत किशोर सक्रिय राजनीति में बीजेपी में जगह तलाश ही रहे थे कि उनकी बीजेपी के चाणक्य पुकारे जाने वाले तत्कालिक बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष और मौजूदा गृह मंत्री अमित शाह के बीच मतभेद की खबरें नमूंदार हो गई और बीजेपी का खेमा छोड़कर प्रशांत किशोर जेडीयू में एंट्री मार ली और क्या सॉलिड एंट्री थी?
जनता दल यू में एंट्री के बाद अति महत्वाकांक्षी प्रशांत किशोर को जदयू चीफ नीतीश कुमार ने पीके को पार्टी उपाध्यक्ष बना दिया, जिसके बाद प्रशांत किशोर जदयू के दूसरी पंक्ति के नेताओं को दरकिनार ही करना नहीं शुरू कर दिया बल्कि जदयू की नीति और नीयत तय करने लग गए।
सीएए पर एनआरसी पर प्रशांत किशोर और पूर्व राज्यसभा सांसद पवन वर्मा की पार्टी लाइन से इतर दिए गए बयान दोनों की ताबूत में आखिरी कील थी। अंततः नीतीश कुमार ने बिहार भविष्य के नेता प्रशांत किशोर को बाहर का रास्ता दिखा दिया। माना जाता है कि प्रशांत किशोर और पवन वर्मा की छुट्टी की मुख्य वजह नीतीश कुमार के उत्तराधिकार की लड़ाई है, जिसमें आरसीपी सिंह और ललन सिंह के सामने प्रशांत किशोर (पीके) गुट को हार का सामना करना पड़ा है।
दरअसल, 68 वर्षीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जदयू में दूसरी पंक्ति का नेतृत्व तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं और 2020 में होने वाले विधानसभा चुनाव के बाद अपनी भूमिका सीमित करना चाहते हैं, लेकिन अति महत्वाकांक्षी प्रशांत किशोर को समझने में नाकाम रहे नीतीश कुमार ने गलती का एहसास होते ही पीके की छुट्टी करने में देर नहीं लगाई।
गौरतलब है जदयू में नीतीश कुमार के बाद नेतृत्व की दौड़ में आरसीपी सिंह, संजय झा, ललन सिंह और प्रशांत किशोर सबसे आगे थे, लेकिन पार्टी उपाध्यक्ष बनने के बाद प्रशांत किशोर अचानक उत्तराधिकारी की रेस में आगे निकल गए। प्रशांत किशोर की पार्टी में एंट्री के बाद जदयू नेता और रेस में शामिल ललन सिंह विरोधी आरसीपी के साथ होना पड़ा ताकि पीके के बढ़ते कद को किया जा सके। पार्टी सूत्रों के अनुसार दोनों नेता केंद्र सरकार में जदयू कोटे से मंत्री नहीं बनने के लिए भी पीके को जिम्मेदार मानते थे।
आपको याद होगा कि मोदी सरकार 2 मंत्रिमंडल विस्तार के समय जदयू को एक कैबिनेट और एक राज्यमंत्री का प्रस्ताव मिला था। अमित शाह आरसीपी सिंह को कैबिनेट और ललन सिंह को राज्यमंत्री बनाना चाहते थे, लेकिन पीके ने नीतीश कुमार को बताया कि राज्यमंत्री के प्रस्ताव से ललन सिंह नाराज हैं और दोनों ही केंद्र में मंत्री बनते-बनते रह गए।
दोनों का खेल पीके ने ही बिगाड़ा था, जिससे दोनों पीके से नाराज हो गए। बदले की आग में जल रहे आरसीपी सिंह ने प्रशांत किशोर को सबक सिखाने के लिए बीजेपी से गहबहियां शुरू कर दी और अमित शाह से अच्छे रिश्ते बना लिए। नीतीश कुमार के बाद दूसरे नंबर के नेता में शुमार हो चुके प्रशांत किशोर अब पार्टी के फैसलों में दखल दे रहे थे, जो नीतीश को चुभने लग गया।
प्रशांत किशोर के जदयू से एक साल पहले ही निकाल दिए जाते जब उन्होंने नीतीश के फैसले के विरोध में जाते हुए यह बयान दिया था कि आरजेडी से गठबंधन तोड़ने के बाद नीतीश कुमार को नैतिक रूप से चुनाव में जाना चाहिए था न कि बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनानी चाहिए थी'। प्रशांत किशोर का यह बयान नीतीश कुमार को तीर की तरह चुभा था।
तब मौके की नजाकत को समझते हुए आरसीपी सिंह ने लल्लन सिंह के साथ मिलकर पीके के खिलाफ ऐसी सियासी गोटियां सेट की कि नीतीश के आंखो के तारे बने प्रशांत किशोर कांटे की तरह चुभने लग गए थे, लेकिन सीएए और एनआरसी पर पार्टी लाइन से इतर जाकर बोलने पर नीतीश कुमार ने प्रशांत किशोर को उनकी जगह दिखाने दूर नहीं लगाई।
उल्लेखनीय है नीतीश कुमार के लिए प्रशांत कुमार महज अब सफेद हाथी हो गए थे, क्योंकि उनके होने न होने से जदयू को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था, उल्टा उनके बयानों और हरकतो से पार्टी नेतृत्व को फजीहत का सामना अलग करना पड़ रहा था। इसकी तस्दीक 2015 बिहार विधानसभा चुनाव भी करती है।
उस चुनाव में महागठबंधन के चुनावी रणनीतिकार रहे प्रशांत किशोर ने आरजेडी, जदयू और कांग्रेस की संयुक्त दल को सत्ता तक पहुंचाने में जरूर कामयाब हुए थे, लेकिन नीतीश के चेहरे पर लड़े गए 2015 विधानसभा चुनाव में नीतीश की पार्टी जदयू को सबसे अधिक नुकसान हुआ था और आरजेडी नंबर वन पार्टी बनकर उभरी थी।
और जब लोकसभा चुनाव 2019 में प्रशांत किशोर की मदद लिए बगैर एनडीए सहयोगी जदयू और एलजेपी के साथ चुनाव लड़कर बिहार लोकसभा के 40 सीटों में से 39 सीटों पर कब्जा करने में कामयाब हो गई तो उस वक्त ही नीतीश कुमार को प्रशांत किशोर की उपयोगिता समझ में आ गई थी।
नीतीश कुमार अच्छी तरह समझ चुके थे कि प्रशांत कुमार जदयू में रहें या न रहें, उससे पार्टी की सेहत पर फर्क नहीं पड़ने वाला है। चूंकि अभी नीतीश की नज़र 2020 विधानसभा चुनाव पर है और नीतीश सीएए और एनआरसी का विरोध कर बीजेपी के साथ रिश्ता बिगाड़ने के बिल्कुल मूड में नहीं है।
लेकिन प्रशांत किशोर नीतीश कुमार की इच्छा के विपरीत जाकर लगातार सीएए के खिलाफ बयानबाजी करके बिहार में बीजेपी-जदयू गठबंधन को कमजोर करने में लगे थे। नीतीश के पास अब एक ही चारा था कि अनुपयोगी हो चुके प्रशांत कुमार और उनके ही सुर में सुर मिला रहे बिना जनाधार वाले नेता पूर्व राज्यसभा सांसद पवन वर्मा को किनारे लगा दिया जाए।
29 जनवरी, दिन बुधवार वह दिन था जब जदयू प्रमुख नीतीश कुमार ने पूर्व राज्यसभा सांसद पवन वर्मा और प्रशांत किशोर को पार्टी लाइन से इतर बागी तेवर अपनाने के लिए पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। दोनों को पार्टी से बर्खास्त किए जाने के बाद उन्हें पार्टी से मिली सभी जिम्मेदारियों से भी मुक्त कर दिया गया है।
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प्रशांत किशोर को ले डूबी उनकी बढ़ती महात्वाकांक्षा
2014 के संसदीय चुनाव में अपनी कंपनी आईपैक के जरिये भाजपा के चुनाव प्रचार की कमान संभालने वाले प्रशांत किशोर फिलहाल बंगाल में टीएमसी, दिल्ली में आम आदमी पार्टी, महाराष्ट्र में शिवसेना और तमिलनाडु में कमल हासन के साथ काम कर रहे हैं। उनकी टीम ने पंजाब में कांग्रेस के अमरिंदर सिंह के लिए काम किया और आंध्र प्रदेश में जगनमोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस के लिए। उनका मानना है कि राजनीति और व्यवसाय अलग-अलग है। संभावना है कि प्रशांत अपनी पार्टी बना कर बिहार विधानसभा चुनाव में उतर सकते हैं।
जब बिहार सीएम नीतीश ने पीके को बताया था बिहार का भविष्य
2018 में प्रशांत किशोर आधिकारिक तौर पर जेडीयू में शामिल हो गए। नीतीश कुमार ने उन्हें सीधे पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष घोषित कर दिया। पीके अघोषित रूप से पार्टी में नंबर 2 माने जाने लगे. प्रशांत किशोर की जेडीयू में एंट्री के दौरान नीतीश कुमार ने कहा था, 'मैं आपको कहता हूं, प्रशांत किशोर भविष्य हैं.' सूत्रों की मानें तो पीके के बढ़ते सियासी कद से जेडीयू के कई नेताओं को चिंता में डाल दिया था. इन्हीं में एक नाम आरसीपी सिंह का भी था, जिन्होंने कभी नीतीश कुमार के राइट हैंड माने जाने वाले लल्लन सिंह को रिप्लेस किया था.
उपाध्यक्ष बनाए जाने के बाद जेडीयू नेताओं की मीटिंग लेने लगे थे पीके
प्रशांत किशोर के जेडीयू में आने के बाद आरसीपी सिंह पूरी तरह से साइडलाइन हो चुके थे। नीतीश कुमार के सीएम हाउस के अतरिक्त दूसरे आवास 7 सर्कुलर रोड पर प्रशांत किशोर बैठने लगे, जहां पीके जेडीयू के नेताओं के साथ बैठकें करते और पार्टी का जनाधार बढ़ाने की दिशा में काम करते। जेडीयू में नीतीश कुमार के बाद प्रशांत किशोर के घर भी जेडीयू नेताओं की भीड़ जुटने लगी।
नीतीश को धमाकेदार जीत दिलाने के लिए पीके को मिला था इनाम
बिहार के 2015 चुनाव में पीके ने महागठबंधन (आरजेडी+जेडीयू+कांग्रेस) के प्रचार की जिम्मेदारी संभाली थी। इस चुनाव में बीजेपी को तगड़ी हार का सामना करना पड़ा। नीतीश कुमार बिहार के सीएम बने तो प्रशांत किशोर को कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिला। नीतीश के साथ प्रशांत किशोर की नजदीकियां बढ़ती गईं।
पीके का पार्टी में बढ़ा कद, साइडलाइन हो गए थे पुराने दिग्गज नेता
पीके का जेडीयू में कद बढ़ने लगा तो जेडीयू के कई दिग्गज नेता साइडलाइन हो गए। इसमें आरसीपी सिंह से लेकर लल्लन सिंह जैसे नेता शामिल थे। इसके बाद जेडीयू का आरजेडी से नाता टूटा और बीजेपी से नजदीकी बढ़ी, लेकिन प्रशांत किशोर और नीतीश कुमार की केमिस्ट्री पर कोई असर नहीं पड़ा।
पीके की नजदीकियों से पूर्व सांसद पवन वर्मा को चुकानी पड़ी कीमत
जेदयू के दूसरी पंक्ति के नेता में शुमार आरसीपी सिंह और ललन सिंह गुट और पीके गुट के बीच मतभेद का पहला संकेत तीन तलाक बिल पर पार्टी के बदलते रुख से मिला। प्रशांत किशोर की सलाह पर जदयू ने पहले इसका विरोध किया, लेकिन संसद से पारित होने के बाद रुख पलटने वाला बयान आरसीपी सिंह की ओर से आया। जदयू के पूर्व सांसद पवन वर्मा को पीके से नजदीकियों के चलते ही बागी तेवर अपनाने की कीमत चुकानी पड़ी।
झारखंड चुनाव अलग लड़ने के फैसले से जदयू को हुआ नुकसान
पीके ने झारखंड चुनाव भाजपा से अलग लड़ने का ऐलान करा दिया। पीके जदयू को भाजपा की छाया से निकालकर राष्ट्रीय स्तर पर ले जाना चाहते थे। इसमें उन्हें नीतीश कुमार का समर्थन था, लेकिन राज्य में झामुमो के पास वही चुनाव निशान पहले से होने की वजह से जदयू को नया चुनाव चिह्न मिला और पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा।
नीतीश पर पीके डाल रहे थे भाजपा से अलग होने का दबाव
पीके नीतीश कुमार पर लगातार भाजपा से अलग होकर चुनाव लड़ने का दबाव डाल रहे थे। उनका मानना था कि यदि जदयू अपने दम पर राज्य विधानसभा की 240 में से 80 से 90 सीटें जीत लेती है, तो राजद और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई जा सकती है। लेकिन अमित शाह ने जदयू को बिहार में बड़े भाई का दर्जा देने का ऐलान कर पीके के मंसूबों को ठंडा कर दिया। माना जा रहा है कि अब जदयू 110, भाजपा 100 और लोजपा 30 सीटों पर चुनाव लड़ सकते हैं।
प्रशांत किशोर का यह बयान नीतीश कुमार को तीर की तरह चुभा गया था
पीेके पार्टी से जुड़ने के बाद जेडीयू में साइडलाइन चल रहे आरसीपी सिंह और लल्लन सिंह के बीच नजदीकी बढ़ी। आरसीपी सिंह ने दिल्ली में अपनी लॉबिइंग बीजेपी में शुरू कर दी और अमित शाह से उनके बेहतर रिश्ते बन गए। इसी बीच पिछले साल प्रशांत किशोर ने एक बयान दिया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि आरजेडी से गठबंधन तोड़ने के बाद नीतीश कुमार को नैतिक रूप से चुनाव में जाना चाहिए था न कि बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनानी चाहिए थी। प्रशांत किशोर का यह बयान नीतीश कुमार को तीर की तरह चुभा। मौके की नजाकत को समझते हुए आरसीपी सिंह ने लल्लन सिंह के साथ मिलकर पीके के खिलाफ ऐसी सियासी गोटियां सेट की कि नीतीश के आंखो के तारे बने प्रशांत किशोर कांटे की तरह चुभने लगे।
लोकसभा चुनाव 2019 में पीके को नहीं, आरसीपी सिंह को मिली कमान
प्रशांत किशोर के विवादास्पद बयान के बाद भी नीतीश के साथ जेडीयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में साथ प्रशांत किशोर नजर आए और दोनों के बीच नजदीकियां पहले जैसी भले हो गईं थी, लेकिन नीतीश ने 2019 के लोकसभा चुनाव में जेडीयू के प्रचार की कमान प्रशांत किशोर के बजाय आरसीपी सिंह ने सौंपकर स्थिति स्पष्ट कर दी थी। जेडीयू के नारे से लेकर पोस्टर और एजेंडा तक आरसीपी सिंह ने तय किया था। इसी के बाद पीके ने अपने आपको पार्टी से किनारे कर लिया। नागरिकता संशोधन कानून पर जेडीयू मोदी सरकार के साथ खड़ी रही। इसका प्रशांत किशोर ने विरोध किया तो आरसीपी सिंह एक्ट के समर्थन में आ गए। इस तरह से पीके की छवि नीतीश कुमार की नजर और भी बिगड़ गई।
सीएए पर बढ़ती गई तल्खी के बाद नीतीश ने पीके के खिलाफ लिया फैसला
प्रशांत किशोर ने दिल्ली में आम आदमी पार्टी के प्रचार की कमान संभाला और बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. साथ ही नीतीश कुमार पर भी सवाल खड़े करने लगे। विवाद बढ़ता ही गया और आरोप-प्रत्यारोप दोनों ओर से लगाए जाने लगे। नीतीश कुमार ने आरसीपी सिंह के साथ मिलकर प्रेस कॉन्फ्रेंस की और कहा कि अमित शाह के कहने पर प्रशांत किशोर को पार्टी में लिया गया है और उन्हें पार्टी से बाहर जाना है तो जा सकते हैं। इस पर पीके ने जवाब दिया कि झूठ मत बोलिए। इसके बाद बुधवार को नीतीश कुमार ने प्रशांत किशोर से किनारा करना ही बेहतर समझा और उन्हें पार्टी बाहर का रास्ता दिखा दिया।
तृणमूल कांग्रेस में नई पारी खेल सकते हैं प्रशांत किशोर उर्फ पीके
जनता दल यूनाइटेड के निकाले गए प्रशांत किशोर जल्द ही केन्द्र की मोदी सरकार की धुर विरोध तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं। यही नहीं प्रशांत किशोर को पार्टी में अहम पद दिया जा सकता है। हालांकि अभी टीएमसी में उनकी तूती बोलती है क्योंकि वह विधानसभा चुनाव के लिए टीएमसी के रणनीतिकार हैं। लिहाजा माना जा रहा है कि पीके जल्द ही टीएमसी में में शामिल होकर नई सियासी पारी खेल सकते हैं।