Video: अटल सुरंग के खुलते ही चीन बॉर्डर पर तेजी से होगी T-90 टैंक्स की तैनाती
मनाली। हिमाचल प्रदेश के खूबसूरत शहर मनाली में तैयार हुई रोहतांग हाइवे टनल जिसे अटल सुरंग भी कहा जा रहा है। रोहतांग टनल या सुरंग को बनाकर पूरी दुनिया के सामने उस चुनौती को पूरा किया गया है जो सबसे ज्यादा ऊंचाई पर बनाई जाने वाली सुरंग से जुड़ी थीं। साथ ही इस टनल को इंजीनियरिंग का भी एक अद्भभुत नमूना करार दिया जा रहा है। इस टनल के शुरू होने के साथ ही भारतीय सेना रणनीतिक तौर पर और ताकतवर हो जाएगी। शुक्रवार को टनल के प्रोजेक्ट इंजीनियर्स ने इससे जुड़ी कई अहम बातों के बारे में बताया। इस सुरंग का उद्घाटन तीन अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे।
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सेना का सफर होगा आसान
अटल सुरंग के उद्घाटन के बाद इंडियन आर्मी के टी-90 टैंक्स और इनफेंट्री कॉम्बेट व्हीकल आसानी से लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) के करीब तैनात हो सकेंगे। 9.2 किलोमीटर लंबी यह सुरंग घोड़ी की नाल के आकार की सिंगल ट्यूब और दो लेन वाली है। समुद्र तल से 3,000 मीटर की ऊंचाई पर बनी यह टनल दुनिया का सबसे लंबी मोटरवे टनल है। टनल 3,978 मीटर लंबे रोहतांग पास के नीचे बनी है। हिमाचल प्रदेश में पीर पंजाल रेंज के 30 किलोमीटर के दायरे को रोहतांग पास कवर करता है। एक ऑफिसर की तरफ से बताया गया है, 'हर मौसम में खुली रह सकने वाली सुरंग मिलिट्री ट्रैफिक को आसानी से संभाल सकती है और यहां तक कि इससे बख्तरबंद वाहन भी आसानी से गुजर सकते हैं।'
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एक दिन में गुजर सकेंगी 3,000 कारें
इस सुरंग में 80 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से ड्राइव किया जा सकता है। साथ ही सुरंग एक दिन में 3,000 कारों और 1500 ट्रकों का बोझ झेल सकती है। इसे तैयार करने में 12,252 मीट्रिक टन स्टील, 1,69,426 मीट्रिक टन सीमेंट और 1,01,336 मीट्रिक टन कंक्रीट का प्रयोग किया गया है। जबकि 5,05,264 मीट्रिक टन मिट्टी और मिट्टी की खुदाई की गई है। सुरंग के निर्माण में ऑस्ट्रिया की टनलिंग विधि का प्रयोग हुआ है। सुरंग की नींव 28 जून 2010 को यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी ने मनाली के करीब सोलन वैली में रखी थी। अटल सुरंग रक्षा मंत्रालय के लिए अहम कड़ी है जिसके जरिए पूरे 475 किलोमीटर लंबे मनाली-केलॉन्ग-लेह हाइवे को सेनाओं के प्रयोग के लिए आसान बनाया जा सके। इस सुरंग के बाद लद्दाख में सेनाओं की तैनाती जल्द हो सकेगी।
लद्दाख जाने वाले रास्ते अब कभी बंद नहीं होंगे
यह टनल लद्दाख की तरफ जाती है और इस जगह को और ज्यादा ऑल वेदर सुरंग की जरूरत है। 475 किलीमीटर लंबी सड़क जो मनाली से लेह तक जाती है, उसके बीच ही यह टनल पड़ती है और यह पूरे साल खुली रहेगी। इस सुरंग को इंजीनियरिंग का वह बेहतरीन नमूना करार दिया जा रहा है जिसे 10 साल बाद सफलता मिल सकी है। यह सुरंग पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का सपना थी और इस वजह से इसका नाम उनके नाम पर पड़ा है। बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन (बीआरओ) ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि बॉर्डर के इलाके में प्रोजेक्ट को पूरा करने में उसका कोई सानी नहीं है। इस सुरंग को तैयार करने में करीब 4,000 करोड़ रुपए का खर्च आया है।
बहुत चुनौतीपूर्ण था प्रोजेक्ट
प्रोजेक्ट डायरेक्टर कर्नल परीक्षित मेहरा ने बताया है कि सुरंग का 587 मीटर का हिस्सा सेरी नाला से होकर गुजरता है और यह एक ऐसा हिस्सा था जिसे पूरा करना सबसे बड़ी चुनौती थी। उन्होंने कहा कि 8.4 किलोमीटर के रास्ते को संतुलित करने में चार वर्ष और यहां 587 मीटर की दूरी को पूरा करने में भी इतना ही समय लग गया। कर्नल मेहरा के पास टनलिंग में मास्टर डिग्री जिसमें से एक उन्होंने ऑस्ट्रिया से ली हुई है। उन्होंने बताया कि खुदाई के दौरान एक बार तो सुरंग के अंदर का तापमान 55 डिग्री तक पहुंच गया था। इसके बाद मुश्किल से 22 डिग्री पार कर पाया। उन्होंने कहा, 'आमतौर पर गहरी सुरंगें टेक्टोनिक प्रभावों की चपेट में नहीं आती हैं क्योंकि वे शॉक वेव्स के साथ ही कठोर होती हैं।
एक जैसी बनी हैं दो सुरंग
अटल सुरंग में दो सुरंग बनाई गई हैं। एक सुरंग में हादसे जैसी बाधाओं के होने पर दूसरी सुरंग का प्रयोग हो सकेगा। जबकि दूसरी सुरंग भी मुख्य सुरंग की तरह 8.8 किलोमीटर लंबी है। इस सुरंग को बनाने का फैसला वर्ष 2000 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार तरफ से लिया गया था। यह सुरंग इसलिए भी खास है क्योंकि लद्दाख तक पहुंचे के जो दो रास्ते अभी हैं, वो दोनों ही सर्दियों में बंद हो जाते हैं। एक रास्ता रोहतांग पास पर बना लेह-मनाली हाईवे है जबकि श्रीनगर-द्रास-कारगिल-लेह हाईवे पर जोजिला पास है। दोनों ही रास्ते सर्दियों में बर्फबारी के वजह से बंद हो जाते हैं।