अटल बिहारी वाजपेयी भी कर चुके थे पाकिस्तान पर बालाकोट जैसी एयर स्ट्राइक की तैयारी, लेकिन...
नई दिल्ली। दिसंबर 2001 में संसद पर जैश-ए-मोहम्मद के आतंकियों ने हमला किया। हमले ने सुरक्षा एजेंसियों को चौंका दिया था। हमले के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने बालाकोट एयर स्ट्राइक की ही तरह हमला करने का मन बना चुके थे। वाजपेयी चाहते थे कि हमले में पाकिस्तान आर्मी की ओर से चलाए जा रहे आतंकी कैंपों को निशाना बनाया जाए। उस समय इंडियन नेवी के चीफ रहे एडमिरल (रिटायर्ड) सुशील कुमार ने अपनी नई किताब में यह दावा किया है।
वाजपेयी ने की सेना प्रमुखों के साथ मीटिंग
एडमिरल सुशील कुमार ने अपनी किताब 'ए प्राइम मिनिस्टर टू रिमेंबर' 28 जून को लॉन्च की है। इस किताब में उन्होंने खुलासा किया है कि 13 दिसंबर 2001 को संसद पर हमले के बाद वाजपेयी ने बालाकोट जैसी एयर स्ट्राइक पर विचार किया। हालांकि इस एयरस्ट्राइक के बारे में कोई भी जानकारी किसी तरफ से कभी सार्वजनिक नहीं की गई। एडमिरल कुमार के मुताबिक आतंकी हमले के बाद तीनों सेनाओं के प्रमुखों ने तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीस और नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर (एनएसए) ब्रजेश मिश्रा से आर्मी ऑपरेशंस रूम में मुलाकात की थी। इस मुलाकात के दौरान चर्चा की गई कि पाकिस्तान को जवाब देना जरूरी है।
मिराज-2000 जेट थे पहली पसंद
एक प्लान तैयार किया गया जिसके तहत एलओसी के दूसरी तरफ पीओके में मौजूद उन आतंकी कैंप्स को नष्ट करना था जिन्हें पाकिस्तान आर्मी चला रही थी। एडमिरल कुमार ने अपनी किताब में यह नहीं लिखा है कि कैसे सेनाओं ने इस हमले को अंजाम देने की तैयारी की थी लेकिन ग्वालियर से मिराज-2000 फाइटर जेट्स उस समय भी एयरस्ट्राइक के लिए पहली पसंद थे। आखिरी मिनट में जो इंटेलीजेंस रिपोर्ट आई उसकी वजह से स्ट्राइक को टालना पड़ा। इस इंटेलीजेंस रिपोर्ट के मुताबिक हमले के बाद भारत की प्रतिक्रिया के बारे में पाकिस्तान सेना ने अंदाजा लगा लिया था। इस वजह से उसने आतंकी कैंप्स को स्कूल और एक बड़े हॉस्पिटल के बीच में रिलोकेट कर दिया था।
इस वजह से नहीं हो सका हमला
पाक आर्मी के इस कदम ने एयर स्ट्राइक को जटिल बना दिया था। इसके बाद सुरक्षा एजेंसियों के साथ तेजी से विचार-विमर्श किया गया। सभी इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि इस एयरस्ट्राइक को रोक देना चाहिए क्योंकि इससे जो आतंकियों के अलावा और लोगों की जानें भी जा सकती थीं। एयर स्ट्राइक की ऑपरेशन पराक्रम लॉन्च हुआ और 10 माह तक सेनाएं एलओसी पर तैनात रहीं। सेना प्रमुखों को मूवमेंट के ऑर्ड्स दे दिए गए थे और उन्हें पीएम के आधिकारिक निवास सात लोककल्याण मार्ग जिसे तब 7आरसीआर के नाम से जाना जाता था, वहां बुलाया गया। एडमिरल कुमार उस समय स्टाफ कमेटी के भी प्रमुख थे, नौ माह तक ऑपरेशन पराक्रम से दूर थे।
ऑपरेशन पराक्रम में शहीद 798 सैनिक
मीटिंग के दौरान वाजपेयी को इस बात को लेकर स्पष्ट थे कि सेनाओं का मूवमेंट सिर्फ एक रणनीति के तहत है और इससे ज्यादा कुछ नहीं होगा। यह फैसला जल्दबाजी में लिया गया था और पीएम को इस बात का अहसास हो गया कि इसने सेनाओं के मनोबल पर गंभीर प्रभाव डाला है। रक्षा मंत्री के पास भी इसका कोई जवाब नहीं था। सेनाओं ने जनवरी 2002 से अक्टूबर 2002 तक सरकार की ओर से एक्शन के लिए ग्रीन सिग्नल का इंतजार किया और वह कभी आया ही नहीं। ऑपरेशन पराक्रम के दौरान 798 सैनिक शहीद हो गए थे। ऑपरेशन पराक्रम को आज तक सबसे बड़ी विफलता माना जाता है।