अटल बिहारी वाजपेयी: बाप जी की ये कहानियां शायद ही आपने सुनी हों
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नई दिल्ली। देश के सबसे बड़े नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का दिल्ली के एम्स अस्पताल में निधन हो गया। वो 94 वर्ष के थे। अटल जी की पहचान हमेशा चेहरे पर मुस्कान रखने वाले, फौलादी हौंसले, बेमिसाल अंदाज और दिल को छू लेने वाली शख्सियत के तौर पर होती है। अटल को उनके करीबी लोग और रिश्तेदार प्यार से बापजी के नाम से भी जानते हैं। आइये जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी खास कहानियां जिन्हें शायद ही आपने सुनी हों...
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अटलजी का जन्म और शिक्षा
अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर, 1924 को ग्वालियर में एक मध्यम वर्गीय ब्राह्मण परिवार में हुआ। उनके पिता का नाम कृष्ण बिहारी वाजपेयी और माता का नाम कृष्णा देवी था। अटल जी के दादा पंडित श्याम लाल वाजपेयी उत्तर प्रदेश के बटेश्वर से मध्य प्रदेश के ग्वालियर में जाकर बस गए थे। अटल बिहारी वाजपेयी के पिता कवि और स्कूल मास्टर थे। वाजपेयी की पढ़ाई सरस्वती शिशु मंदिर और ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज में हुई। उन्होंने हिंदी, अंग्रेजी और संस्कृत में 75 फीसदी से ज्यादा अंक पाए थे।
पिता के साथ अटल जी ने की लॉ की पढ़ाई
आपको जानकर हैरानी होगी लेकिन अटल बिजारी वाजपेयी ने अपने पिता के साथ लॉ की पढ़ाई की थी। उन्होंने कानपुर के डीएवी कॉलेज से लॉ में डिग्री की इच्छा में अपने पिता से जताई थी, जिसके बाद उनके पिता ने भी अपने बेटे के साथ लॉ की डिग्री के लिए एडमिशन लिया। लॉ छात्र के रूप में पिता-पुत्र एक साथ एक सत्र के दौरान एक ही हॉस्टल के एक कमरे में रहे।
ऐसे आए राजनीति में
अटल बिहारी वाजपेयी जब युवा हुए तो उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ आवाज बुलंद की। अगस्त 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान अटलजी 23 दिनों के लिए जेल भी गए। यहीं से उनकी राजनीतिक पारी का भी आगाज हुआ। 1942 से 1945 तक अटलजी लगातार भारत छोड़ो आंदोलन से जुड़े रहे। 1950 में वाजपेयी लॉ स्कूल से निकलने के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की मैगजीन से जुड़ गए। उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सदस्यता ली।
1968 में चुने गए जनसंघ के अध्यक्ष
1951 में अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय जनसंघ से जुड़े। अपने खास अंदाज और नेतृत्व क्षमता की वजह से जल्द ही अटलजी भारतीय जनसंघ का चेहरा बन गए। पंडित दीनदयाल उपाध्याय की मृत्यु के बाद जनसंघ की जिम्मेदारी अटल बिहारी वाजपेयी के युवा कंधों पर आ गई। 1968 में वो इसके अध्यक्ष बने। अटल बिहारी वाजपेयी, श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय के बेहद करीबी रहे।
जब पंडित नेहरू ने वाजपेयी से कहा था- एक दिन पीएम बनोगे
ऐसा कहा जाता है कि पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भी एक बार अटल बिहारी वाजपेयी से कहा था कि वो एक दिन देश के प्रधानमंत्री जरूर बनेंगे। पंडित नेहरू की बात सच साबित हुई अटल बिहारी वाजपेयी ने देश की सत्ता संभाली। अटल बिहारी वाजपेयी की शख्सियत भी कुछ ऐसी थी कि विरोधी भी उनके मित्र बन जाते थे। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी राज्यसभा में एक भाषण के दौरान वाजपेयी को भारतीय राजनीति का भीष्म पितामाह करार दिया था।
1957 में जीता पहला लोकसभा चुनाव
अटल बिहारी वाजपेयी ने 1957 में पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा और जीते भी। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1957 से 2009 के बीच लगातार अटलजी संसद के सदस्य रहे। अटल जी पहले ऐसे प्रधानमंत्री थे जिन्होंने गैर कांग्रेसी सरकार का नेतृत्व करते हुए पांच साल कार्यकाल पूरा किया। उन्होंने 1998 से 2004 के बीच कार्यभार संभाला।
1996 में पहली बार बने प्रधानमंत्री
करीब चार दशक तक विपक्ष में रहने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी पहली बार 1996 में देश के प्रधानमंत्री बने। हालांकि महज 13 दिन में ही बहुमत साबित नहीं कर पाने की वजह से उनकी सरकार गिर गई। 1998 में वो एक बार फिर से प्रधानमंत्री बनें लेकिन इस बार भी उनकी सरकार बहुमत के अभाव में 13 महीने के भीतर ही गिर गई। 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी एक बार फिर प्रधानमंत्री चुने गए। इस बार बीजेपी के नेतृत्व में बने गठबंधन राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में कई क्षेत्रीय दल शामिल थे। ये पहली बार था जब अटल जी के नेतृत्व में एनडीए गठबंधन ने पूरे पांच साल का कार्यकाल पूरा किया।
वाजपेयी ने संयुक्त राष्ट्र के सत्र में हिंदी में दिया भाषण
अटल बिहारी वाजपेयी 1977 में जनता पार्टी की सरकार में विदेश मंत्री बनाए गए थे। उस समय उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ के एक सत्र में हिंदी में अपना भाषण दिया था। इतना ही नहीं वो पहले भारतीय प्रधानमंत्री भी थे, जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में भाषण देने का फैसला किया।
जब अटल ने पोखरण में परमाणु परीक्षण को दी थी हरी झंडी
अपनी खास भाषण शैली, कविताओं के साथ-साथ मनमोहक मुस्कान के लिए पहचाने जाने वाले अटल बिहारी वाजपेयी कड़े फैसले लेने के लिए भी विख्यात थे। इसका सबसे बड़ा उदाहरण 1998 में उस समय देखने को मिला जब उन्होंने केंद्र की सत्ता संभालते ही एक ऐसा फैसला लिया जिसने देश ही पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया। अटल बिहारी वाजपेयी ने पीएम रहने के दौरान न केवल परमाणु परीक्षण को हरी झंडी दी, बल्कि इसे सफल बनाकर भारत को परमाणु संपन्न राष्ट्र बनाने में अहम रोल भी निभाया।
कविताओं से रहा गहरा लगाव
बापजी यानी अटल बिहारी वाजपेयी को कविताओं से गहरा लगाव रहा। कई बार उन्होंने अपने विचारों को कविताओं के माध्यम से ही सबके सामने रखा। उनका कहना था कि कविता उनके लिए जंग में हार नहीं, बल्कि जीत की घोषणा की तरह है। वाजपेयी को कुदरत से भी काफी लगाव था। उन्हें पहाड़ पर छुट्टी बिताना काफी अच्छा लगता। हिमाचल का मनाली उनकी पसंदीदा जगहों में शामिल था। दिसंबर, 2005 में अटल जी ने सक्रिय राजनीति से रिटायरमेंट का ऐलान किया। उन्होंने साफ किया कि वह अगले लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे।
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