मध्य प्रदेश में भाजपा का ऐतिहासिक प्रयोग, इस वजह से अभी नही घोषित होंगे उम्मीदवारों के नाम
नई दिल्ली। आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर भारतीय जनता पार्टी के सेंट्रल इलेक्शन कमेटी की बैठक 20 अक्टूबर को होने जा रही है। लेकिन माना जा रहा है कि इस बैठक के दौरान भाजपा मध्य प्रदेश में होने वाले चुनाव के लिए उम्मीदवारों के नाम का अभी ऐलान नहीं करेगी। इसकी पीछे की वजह यह है कि पार्टी प्रदेश में आंतरिक सर्वे कराने की तैयारी कर रही है, जिससे इस बात की पुष्टि की जा सके कि कौन सा उम्मीदवार चुनाव में बेहतर प्रदर्शन कर सकता है। जिन उम्मीदवारों को टिकट मिलना तय है उनके नाम का ऐलान जल्दी हो सकता है, जबकि अन्य उम्मीदवारों में जिस अधिक वोट मिलेगा उसे पार्टी टिकट दे सकती है। आपको बता दें कि मध्य प्रदेश में नामांकन की आखिरी तारीख 9 नवंबर है।
आंतरिक सर्वे
सूत्रों की मानें तो पार्टी के वरिष्ठ नेता जोकि 5-6 बार सांसद रहे हो, मंत्री रहे हो उन्हें प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में दो गुट में भेजा जा रहा है और उन्हें इस आंतरिक सर्वे को कराने का जिम्मा सौंपा गया है। पार्टी के ब्लॉक स्तर के कार्यकर्ताओं ने उम्मीदवारों के चयन के लिए अपना वोट दिया है। पार्टी की ओर से इस सर्वे के लिए कुछ नेताओं के नाम आगे बढ़ाए जा रहे हैं और उनके लिए वोट करने को कहा जा रहा है। सूत्रों का कहना है कि मौजूदा सरकार में मंत्रियों तक की उम्मीदवारी अभी तय नहीं है।
गोपनीय प्रक्रिया
पार्टी की ओर से इस सर्वे को पूरी तरह से गोपनीय रखा जा रहा है क्योंकि इस बात का शक है कि जो नेता चुनाव नहीं जीत सकते हैं अगर उनके टिकट को नकारा जाए तो स्थिति बिगड़ सकती है। ग्वालियर में भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष विक्रम वर्मा और राज्य संगठन के सचिव कृष्णम मुरारी मोघे इस सर्वे को कराने के लिए भेजा गया है। ऐसे में जो उम्मीदवार बेहतर वोट हासिल करता है और उसके चुनाव जीतने की संभावना अधिक है पार्टी उसे टिकट दे सकती है।
राजनीतिक के इतिहास में पहली बार
ऐसा भारतीय राजनीति के इतिहास में पहली बार हो रहा है जब चुनाव की तारीखों के ऐलान होने के बाद पार्टी के भीतर उम्मीदवारों के चयन के लिए आंतरिक वोटिंग कराई जा रही है। साधारण तौर पर इससे पहले जो व्यवस्था थी उसके अनुसार एक टीम को इसकी जिम्मेदारी दी जाती थी कि वह चार से पांच जिले जैसे कि ग्वालियर और चंबल की जिम्मेदारी दी जाी थी और वह यहां 24 सीटों पर यह सर्वेक्षण कराते थे कि किस उम्मीदवार को टिकट दिया जाएगा। ये नेता खुद के नाम को भी आगे बढ़ा सकते थे।
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अहम कदम
सूत्रों की मानें तो जिन उम्मीदवारों को अधिकतम वोट मिलेंगे उनकी दावेदारी को मजबूत माना जाएगा और उनके नाम को केंद्रीय समिति के पास भेजा जाएगा। यह सर्वे इसलिए कराया जा रहा है ताकि पार्टी के भीतर कार्यकर्ताओं की नाराजगी का अंदाजा लगाया जा सके। पार्टी चुनाव से पहले इस रणनीति को इसलिए भी अपना रही है क्योंकि मध्य प्रदेश में भाजपा की 15 साल से सरकार है ऐसे में इतने लंबे प्रशासन के बाद लोगों में नाराजगी हो सकती है। यही नहीं केंद्र सरकार के प्रति भी लोगों कुछ खास खुश नहीं हैं। ऐसे में पार्टी का यह आंतरिक सर्वे भाजपा के लिए आगामी चुनाव में काफी कारगर साबित हो सकता है।
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