चुनाव आयोग के संकेत से समझिए क्या है मोदी का मास्टर स्ट्रोक
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नई दिल्ली। देश के राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में एक बार फिर से इस बात की चर्चा शुरू हो गई है कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जा सकते हैं। यह चर्चा चुनाव आयुक्त ओपी रावत के उस बयान के बाद शुरू हुई जिसमें उन्होंने कहा है कि भारत चुनाव आयोग अगले साल सितंबर तक विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ करा सकता है। बता दें कि रावत ने यह बयान बुधवार (4 अक्टूबर) को मध्य प्रदेश में एक कार्यक्रम के दौरान दिया। उन्होंने कहा कि विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ कराने के लिए आयोग को 40 लाख मशीनों की आवश्यकता होगी। आयुक्त ने कहा कि केंद्र सरकार ने इस विषय पर जानकारी मांगी थी, जिसके बाद मशीनों और अन्य इंतजामों के लिए धनराशि आवंटित कर दी गई है। केंद्र सरकार ने वीवीपैट मशीनों के लिए 3400 करोड़ और इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों के लिए 12 हजार करोड़ रुपए आयोग को आवंटित किए हैं।
दो सरकारी कंपनियों को दिए गए ऑर्डर
आयोग ने इन सभी मशीनों के लिए दो सरकारी कंपनियों को ऑर्डर दिए हैं। कंपनियां, अगले साल सितंबर में ऑर्डर की डिलीवरी कर देंगे, जिसके बाद चुनाव कराया जा सकते हैं। गौरतलब है कि संविधान में भी इस बात की इजाजत दी गई है कि अगर चुनाव आयोग चाहे तो अपनी सुविधानुसार समय से पहले चुनाव करा सकता है।
प्रधानमंत्री और पूर्व राष्ट्रपति ने भी जाहिर की थी राय
यह बात दीगर है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी चाहते हैं कि देश में एक साथ विधानसभा और लोकसभा के चुनाव हों। इससे पहेल पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी इस साल 26 जनवरी की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम दिए संदेश में कहा था कि चुनाव सुधार होने चाहिए। प्रणब ने चुनाव आयोग से कहा था कि वह राजनीतिक दलों के साथ बात चीत कर के विधानसभा और लोकसभा के चुनाव एक साथ करने के विचार को आगे बढ़ाएं।
भाजपा हाईकमान को डर!
वहीं राजनीतिक जानकारों की माने तो भारतीय जनता पार्टी समय से पहले चुनाव कराने के पक्ष में इसलिए है कि 'मोदी की आंधी' का असर अब धीरे-धीरे कम होता दिख रहा है। देश में बढ़ती बेरोजगारी, महंगाई और किसानों की मूलभूत समस्याएं सरकार के लिए खतरा बन रही हैं। साल 2019 तक हालात और भी ज्यादा बुरे हों, इसका डर भाजपा हाईकमान को सता रहा है। ऐसे में अगर अगले साल समय से पहले ही विधानसभा और लोकसभा के चुनाव हुए तो यह पीएम मोदी की मजबूरी मानी जाएगी या फिर 'मास्टर स्ट्रोक' यह वक्त तय करेगा।
इन राज्यों में है चुनाव
बता दें कि साल 2018 में मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मिजोरम के कार्यकाल खत्म होंगे। इन राज्यों के कार्यकाल नवंबर-दिसंबर में खत्म हो जाएंगे। इसके साथ ही ओडिशा और तेलंगाना में साल 2014 के दौरान मोदी लहर का लाभ मिल था, ऐसे में समय से पहले चुनाव कराए जाने की संभावनाएं प्रबल हैं।