असम: भाजपा के 'चाणक्य' हिमंत बिस्वा सरमा क्यों कहलाते हैं- 'दोस्तों का दोस्त और दुश्मनों का दुश्मन'
गुवाहाटी, 9 मई: असम विधानसभा चुनाव की शुरुआत से भाजपा के मुख्यमंत्री पद के दावेदार को लेकर चल रही अटकलें रविवार को खत्म हो गईं। अब यह तय हो गया कि निवर्तमान मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल दिल्ली का रुख कर सकते हैं और उनकी जगह असम में ही नहीं पूरे पूर्वोत्तर में पार्टी के सबसे दिग्गज चेहरे हिमंत बिस्वा सरमा सोमवार को प्रदेश के मुख्यमंत्री का पद संभालेंगे। सरमा ने लगातार तीसरी बार (दो बार विधानसभा और एकबार लोकसभा) प्रदेश में कमल खिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, क्योंकि वह इलाके में पार्टी के सबसे बड़े रणनीतिकार माने जाते हैं। ब्राह्मण परिवार में जन्मे सरमा पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह का पूरा भरोसा है, क्योंकि उनका कांग्रेस से आने के बाद से ही पूर्वोत्तर में कमल खिलने के सिलसिले ने रफ्तार पकड़ी है।
हिमंत बिस्वा सरमा कैसे बने पूर्वोत्तर में भाजपा के चाणक्य ?
बीजेपी की लीडरशिप हिमंत बिस्वा सरमा को असम का नया मुख्यमंत्री बनाने के लिए राजी हुई है तो इसके पीछे प्रदेश की राजनीति में उनका 20 साल से ज्यादा का सक्रिय योगदान बहुत बड़ा फैक्टर रहा है। उन्होंने छात्र जीवन से ही राजनीति की शुरुआत कांग्रेस विरोध से ही की थी और फिर लंबे वक्त तक पार्टी में गुजारने के बाद पिछले 7 वर्षों से वापस राज्य के सबसे प्रखर कांग्रेस विरोधी चेहरा बने हुए हैं। सरमा को जितना 2021 के विधानसभा चुनाव में पार्टी की जीत का सेहरा बांधा जाता है, उससे ज्यादा 2016 के विधानसभा में भाजपा को सत्ता दिलाने और 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी के प्रदर्शन में योगदान माना जाता है। 2016 के चुनाव में उन्होंने भाजपा की सत्ता में आने की जो भविष्यवाणी की थी, जीतनी सीटें बताई थीं, पार्टी उनकी उम्मीदों पर पूरी तरह खरी उतरी थी। इसके बाद उनका पार्टी और नेतृत्व पर ऐसा रंग जमा कि उनका दायरा असम से बढ़कर पूरे उत्तर-पूर्व में पसर गया।
मौजूदा चुनाव के भी रहे मुख्य रणनीतिकार
मौजूदा चुनाव में भी उन्होंने भाजपा की अगुवाई वाले गठबंधन के लिए 100 से ज्यादा सीटें जीतने का अनुमान जताया था। लेकिन विपक्षी दलों के मजबूत गठबंधन की वजह से यह आंकड़ा तो पार नहीं हो सका, बावजूद इसके सत्ताधारी गठबंधन करीब 75 सीटें हासिल करने में सफल रहा। हालांकि, इससे उत्तर पूर्व में पार्टी के प्रमुख चेहरे के तौर पर सरमा की छवि पर कोई असर नहीं पड़ा। क्योंकि, भाजपा ने जितने भी उम्मीदवार इसबार उतारे थे, उनपर कहीं ना कहीं सरमा का ही प्रभाव था। यही नहीं असम गण परिषद और यूनाटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल को सीटें देने में भी इनकी ही सबसे ज्यादा चली थी। सोनोवाल की सरकार में भी भले ही सरमा मुख्यमंत्री नहीं थे, तब भी पार्टी और संगठन पर उनका ही सबसे ज्यादा प्रभाव था और गृह विभाग छोड़कर सारे अहम विभाग उन्हीं के पास होते थे।
सीएए-विरोधी आंदोलन और कोरोना महामारी से निपटने में योगदान
असम में चाहे सीएए-विरोधी आंदोलन की चुनौती हो या फिर कोरोना महामारी से निपटने का संकट, सरमा के बारे में कहा जा रहा है कि उन्होंने इसे बहुत ही बेहतर तरीके से मैनेज करके चुनाव में कांग्रेस और एआईयूडीएफ के बदरुद्दीन अजमल की चुनौती को धाराशायी कर दिया। बीजेपी के हक में सरमा ने ना सिर्फ असम में योगदान दिया, बल्कि सभी पूर्वोत्तर राज्यों में पार्टी के विस्तार में उनकी रणनीति बहुत ही कारगर साबित होती रही है। उत्तर पूर्व के लिए नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस की तर्ज पर बने एनईडीए का उन्हे संयोजक बनाना इसी बात को दिखाता है कि पार्टी उनपर कितना भरोसा करती है और यह खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीति में पूरी तरह से फिट बैठते हैं, जिनका शुरू से उस इलाके के विकास और वहां पर पार्टी की विस्तार पर पूरा जोर रहा है।
राहुल के कुत्ता प्रेम की वजह से छोड़ी कांग्रेस !
सार्वजनिक तौर पर यही कहा जाता रहा है कि सरमा का कांग्रेस से इसलिए मोहभंग हो गया था कि दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई से उनके मतभेद काफी बढ़ गए थे। लेकिन, बाद में उन्होंने जिस तरह से दावा किया था, उससे लगता है कि वह पार्टी में राहुल गांधी के काम करने के तरीके से भी बेहद नाखुश हो गए थे। यही वजह है कि कांग्रेस छोड़ने के बाद उन्होंने राहुल पर निशाना साधने का कोई मौका नहीं छोड़ा। 2016 में तो उन्होंने यहां तक दावा कर दिया था कि उन्होंने राहुल के कुत्तों से तंग आकर कांग्रेस छोड़ दी थी। उनका दावा था कि वह तत्कालीन कांग्रेस उपाध्यक्ष से असम को लेकर गंभीर बातचीत करना चाहते थे, लेकिन उन्होंने अपने पालतू कुत्ते को बिस्किट खिलाने में मशगूल रहना पसंद किया।
'दोस्तों का दोस्त और दुश्मनों का दुश्मन'
असम के नए मुख्यमंत्री बनने जा रहे, हिंमत बिस्वा सरमा से कद्दावर चेहरा तरुण गोगोई के बाद राज्य की राजनीति में कोई नहीं है। यही वजह है कि कोई भी पार्टी नहीं है, जहां उनके खास लोग नहीं हैं। जब उन्होंने कांग्रेस छोड़ी तो उनके साथ बीजेपी में शामिल होने वाले कांग्रेसियों की लाइन लग गई। यही वजह है कि उनके सियासी विरोधी भी उनकी शख्सियत की तारीफ करने में पीछे नहीं हटते। कुछ समय पहले लल्लनटॉप से एक इंटरव्यू में बदरुद्दीन अजमल ने भी उनकी शान में कसीदे पढ़े थे। उन्होंने कहा था कि हिमंत के पास से कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता। 'वह (हिमंत बिस्वा सरमा) दोस्तों का दोस्त और दुश्मनों का दुश्मन है.....'