असमः नागरिकता संशोधन बिल के ख़िलाफ़ क्यों है उबाल
भारत के पूर्वोत्तर राज्यों ख़ासकर असम में नागरिकता संशोधन बिल के ख़िलाफ़ विरोध-प्रदर्शन कर रहे लोगों का गुस्सा अब कई तरह से सामने आ रहा है. विरोध-प्रदर्शन कर रहे लोग "आरएसएस गो-बैक" के नारे लगा रहें है, साथ ही अपने नारों में सत्ताधारी बीजेपी को सतर्क कर रहें है. सड़कों पर उतरे ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन के कार्यक्रताओं ने
भारत के पूर्वोत्तर राज्यों ख़ासकर असम में नागरिकता संशोधन बिल के ख़िलाफ़ विरोध-प्रदर्शन कर रहे लोगों का गुस्सा अब कई तरह से सामने आ रहा है.
विरोध-प्रदर्शन कर रहे लोग "आरएसएस गो-बैक" के नारे लगा रहें है, साथ ही अपने नारों में सत्ताधारी बीजेपी को सतर्क कर रहें है.
सड़कों पर उतरे ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन के कार्यक्रताओं ने इससे पहले नगरिकता बिल के ख़िलाफ़ मशाल जुलूस निकाल कर अपना विरोध जताया. वहीं, स्थानीय कलाकार, लेखक- बुद्धिजीवी समाज और विपक्षी दलों के लोग अलग-अलग तरीकों से अपना विरोध जता रहे हैं.
नागरिकता संशोधन विधेयक (Citizenship Amendment Bill) को संक्षेप में CAB भी कहा जाता है और यह बिल शुरू से ही विवादों में रहा है.
असम के डिब्रूगढ़, तिनसुकिया, धेमाजी, शिवसागर और जोरहाट ज़िले के कई जगहों पर सोमवार को विरोध प्रदर्शन कर रहें लोगों ने राष्ट्रीय राजमार्ग को अवरुद्ध कर यातायात व्यवस्था ठप कर दी. वहीं रेल की आवाजाही ठप करने और पुलिस के साथ प्रदर्शनकारियों के टकराव की ख़बरें भी सामने आ रही हैं.
इस बीच, ऑल असम सूटीया स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइजेशन और ऑल असम मोरान स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइजेशन ने सोमवार सुबह से असम में 48 घंटे का बंद बुलाया है जिसका ऊपरी असम के करीब आठ ज़िलों में व्यापक असर देखने को मिल रहा है.
इन ज़िलों में बाज़ार पूरी तरह बंद है और सड़कों पर वाहनों की आवाजाही पूरी तरह ठप हो गई है. नागरिकता संशोधन बिल का विरोध कर रहे ये छात्र संगठन बीते कुछ महीनों से यहां की छह जनजातियों को अनुसूचित जनजाति यानी एसटी का दर्जा देने की मांग करते आ रहें है.
विरोध प्रदर्शन
इसके अलावा पूर्वोत्तर भारत के सात राज्यों के छात्र निकाय नार्थ ईस्ट स्टूडेंटस ऑर्गनाइजेशन ने मंगलवार को सुबह 5 बजे से लेकर शाम 4 बजे तक पूर्वोत्तर राज्यों में बंद का आह्वान किया है. राज्य के करीब 30 नागरिक संगठनों ने स्टूडेंटस ऑर्गेनाइजेशन के इस बंद को अपना समर्थन दिया है. हालांकि व्यापक स्तर पर हो रहे विरोध के बीच केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सोमवार को नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2019 लोकसभा में पेश कर दिया है.
नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2019 सदन में पेश करने के बाद ही ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन के सदस्यों ने गुवाहाटी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल समेत भाजपा सरकार के कई नेता-मंत्रियों के पुतले फूंक कर अपना विरोध दर्ज किया.
इस नागरिकता बिल को लेकर सोशल मीडिया पर सैकड़ो की तादाद में लोग मुख्यमंत्री सोनोवाल के ख़िलाफ़ अपना गुस्सा दिखा रहें हैं.
मुख्यमंत्री सोनोवाल ने अपनी फेसबुक पेज पर एक वीडियो पोस्ट करते हुए लिखा था कि असम को अगर औद्योगीकरण के क्षेत्र में आगे बढ़ाना है तो इसके लिए राज्य में शांति का माहौल होना आवश्यक है.
इस विवादित बिल के ख़िलाफ़ गुवाहाटी विश्वविद्यालय के एक छात्र ने अपने ख़ून से एक संदेश लिखकर विरोध जताया है. सोशल मीडिया पर इस छात्र का एक वीडियो फुटेज वायरल हो रहा है, जहां वो अपनी कटी हुई कलाई के ख़ून से लिखकर इस बिल का विरोध कर रहा है.
किस बात का डर
दरअसल पूर्वोत्तर राज्यों के स्वदेशी लोगों का एक बड़ा वर्ग इस बात से डरा हुआ है कि इन शर्णाथियों के प्रवेश से उनकी पहचान, भाषा और संस्कृति ख़तरे में पड़ जाएगी.
ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन के मुख्य सलाहकार समुज्जवल भट्टाचार्य भाजपा पर नागरिता संशोधन बिल की आड़ में हिंदू वोट बैंक की राजनीति करने का आरोप लगाते है.
वो कहते है, "यह बात अब स्थापित हो गई है कि कांग्रेस ने बांग्लादेशी नागरिकों को सुरक्षा देने के लिए हमपर आईएमडीटी कानून थोपा था और अब बीजेपी अवैध बांग्लादेशी लोगों को सुरक्षा देने के लिए हम लोगों पर नागरिकता संशोधन बिल थोप रही है. इन सबको बांग्लादेशियों का वोट चाहिए. लेकिन असम के लोग किसी भी कीमत पर इस बिल को स्वीकार नहीं करेंगे."
ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन से छात्र राजनीति की शुरूआत करते हुए असम के मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे सर्वानंद सोनेवाल ने प्नदेश में हो रहे व्यापक आंदोलन को देखते हुए कहा,"हमारी सरकार ने कभी भी जाति को नुकसान नहीं पहुंचाया है और कभी नहीं पहुंचाएगी."
"हम असमिया जाति की सुरक्षा के लिए शुरू से काम कर रहें है और आप लोग हमारे काम को देख रहें हैं. मैं आंदलोन कर लोगों को आह्वान करता हूं कि आप लोग आंदोलन के जरिए असम का भविष्य नहीं बदल सकते."
नागरिकता संशोधन बिल के पारित हो जाने से क्या असमिया जाति, भाषा और उनकी संस्कृति पूरी तरह खत्म हो जाएगी. इस सवाल का जवाब देते हुए वरिष्ठ पत्रकार बैकुंठ नाथ गोस्वामी कहते है, "अगर कैब लागू हो जाता है तो अपने ही प्रदेश में असमिया लोग भाषाई अल्पसंख्यक हो जाएंगे. असम में सालों पहले आकर बसे बंगाली बोलने वाले मुसलमान पहले अपनी भाषा बंगाली ही लिखते थे लेकिन असम में बसने के बाद उन लोगों ने असमिया भाषा को अपनी भाषा के तौर पर स्वीकार कर लिया."
"राज्य में असमिया भाषा बोलने वाले 48 फीसदी लोग हैं और अगर बंगाली बोलने वाले मुसलमान असमिया भाष छोड़ देते है तो यह 35 फीसदी ही बचेंगे. जबकि असम में बंगाली भाषा 28 फीसदी है और कैब लागू होने से ये 40 फीसदी तक पहुंच जाएगी. फिलहाल असमिया यहां एकमात्र बहुसंख्यक भाषा है."
"वो दर्जा कैब के लागू होने से बंगाली लोगों के पास चला जाएगा. इसके अलावा कैब के लागू होने से यहां धार्मिक आधार पर राजनीतिक ध्रुवीकरण ज्यादा होगा. स्थानीय और क्षेत्रिय मूद्दो की अहमियत घटेगी. भाजपा और आरएसएस के लोग हिंदू के नाम पर सभी लोगों को एक टोकरी में लाने के लिए शुरू से काम कर रहे हैं और काफी हद तक यहां सफल भी हुए हैं."
असम तथा पूर्वोत्तर में जो कई संगठनों ने आगे लगातार आंदोलन करने की जो घोषणा की है उसके क्या नतीजे निकलेंगे?
इस सवाल का जवाब देते हुए बैकुंठ नाथ गोस्वामी कहते है, "ट्राइबल इलाकों में नागरिकता बिल का कोई असर नहीं होगा. मेघालय, नागालैंड, मिजोरम और मणिपुर जैसे राज्यों में यह कानून लागू ही नहीं होगा. ऐसे में यह आंदोलन आगे जाकर कमजोर पड़ जाएगा."
"जबकि असम में बोड़ो, कार्बी और डिमासा इलाके संविधान की छठी अनुसूची के अंतर्गत आते हैं, लिहाजा वहां वो कानून लागू ही नहीं होगा. बात जहां तक आम असमिया लोगों की है तो भाजपा इनके लिए नई योजनाओं की घोषणा कर इन्हें देर-सबेर अपने पाले में लाने का प्रयास तो करेगी. इससे पहले कांग्रेस भी ऐसी ही लोकलुभावन योजनाएं का प्रलोभन देकर 15 साल तक यहां अपनी राजनीति चलाती रही है."
नागरिकता संशोधन बिल में धार्मिक उत्पीड़न के कारण पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश से आए हुए हिंदू, सिख, पारसी, जैन और ईसाई लोगों को कुछ शर्तें पूरी करने पर भारत की नागरिकता देने की बात कही जा रही है.
लेकिन असम में नागरिकता रजिस्टर यानी एनआरसी की फाइनल लिस्ट से जिन 19 लाख लोगों को बाहर किया गया है उनमें करीब 12 लाख हिंदू बंगाली बताए जा रहें है.
पहले बीजेपी नेताओं का एनआरसी को पूरी तरह खारिज करना और अब नागरिकता संशोधन बिल को सदन से पारित करवाने के प्रयास को पार्टी के हिंदू वोट बैंक की राजनीति से ही जोड़ कर देखा जा रहा है.