असम के बाढ़ पीड़ित नाव पर रहने को मजबूर, प्रशासन बेख़बरः ग्राउंड रिपोर्ट
ब्रह्मपुत्र नदी में आई बाढ़ ने असम में बहुत क़हर बरपाया है. नाव से जब हम 20 मिनट की यात्रा करके कामरूप ज़िले के कलइटॉप गांव पहुंचे, चारों तरफ़ पानी ही पानी नज़र आ रहा था. ऐसा लग रहा था मानो हम किसी बड़े समंदर को पार कर रहे हों. पूरा गांव नदी के पानी में डूबा हुआ था. डूबे हुए घरों के आसपास नावें देखी जा सकती थीं. मगर नावों की भूमिका यातायात के साधन से कहीं बढ़कर थी.
ब्रह्मपुत्र नदी में आई बाढ़ ने असम में बहुत क़हर बरपाया है. नाव से जब हम 20 मिनट की यात्रा करके कामरूप ज़िले के कलइटॉप गांव पहुंचे, चारों तरफ़ पानी ही पानी नज़र आ रहा था. ऐसा लग रहा था मानो हम किसी बड़े समंदर को पार कर रहे हों.
पूरा गांव नदी के पानी में डूबा हुआ था. डूबे हुए घरों के आसपास नावें देखी जा सकती थीं. मगर नावों की भूमिका यातायात के साधन से कहीं बढ़कर थी. कई परिवार नाव पर खाना पका रहे थे. कुछ नावों पर बकरियां भी बांधी गई थीं.
ब्रह्मपुत्र नदी ने इस गांव को तबाह कर दिया है. किसानों के धान के खेत पानी में डूबे हैं. भारत की शहरी आबादी के एक बड़े हिस्से के लिए यहां के जीवन की आलोचना 'मानवीय गरिमा से नीचे' कहकर की जा सकती है.
बीबीसी ने पाया कि बहुत से लोग अभी भी सरकारी सहायता से वंचित हैं और अपने दम पर जीवित हैं.
सरकारी राहत सामग्री में लगभग डेढ़ किलो चावल, 200 ग्राम दाल और बिस्किट दिए जा रहे हैं. कई लोग अपने डूबते घर से बचाए गए राशन पर जीवित हैं.
आबिदा (40) अब भी अपने आधे डूबे घर में ही रह रही हैं. वह अपना सब कुछ खो चुकी हैं और उन्हें किसी से कोई उम्मीद भी नहीं है. सरकार से भी नहीं.
बीबीसी से बातचीत के दौरान वो लगातार अपने डूबते घर के सामान की ओर इशारा करती रहीं. वो बताती हैं कि किस तरह उनके परिवार ने घर के अंदर एक मचान बनाने की कोशिश की ताकि पानी में मौजूद सांपों और अन्य जानवरों से बचा जा सके.
नाव पर जीवन
आबिदा अपने पति और बेटे के साथ अधिकांश समय नाव पर बिताती हैं. कलइटॉप गांव में कई परिवार धान की खेती से अपनी आजीविका चलाते हैं. ब्रह्मपुत्र नदी के पास रहने के कारण हर घर में रोज़ के कामकाज के लिए एक नाव रहती है.
परिवार ने अपने घर के बाहर एक पहाड़ी जैसी संरचना का निर्माण किया है ताकि वो अपने घर के बाहर एक सुरक्षित जगह पा सकें और खाना पका सकें.
कलइटॉप अकेला ऐसा गांव नहीं है. कामरूप ज़िले का एक बड़ा हिस्सा जो ब्रह्मपुत्र नदी के तट पर बसा है, उसका हाल कमोबेश कलइटॉप गांव जैसा ही है. सरकार इन गांवों तक राहत सामग्री पहुंचाने की कोशिश में लगी है.
बीबीसी गुजराती से असम आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की मुख्य कार्यकारी अधिकारी अरुणा राजोरिया ने कहा कि सरकार ज़िले के डिप्टी कमिश्नर के जरिये बाढ़ से प्रभावित गांव की आबादी तक पहुंचने के हर संभव प्रयास में जुटी है. हालांकि, कलइटॉप गांव के बारे में वो कहती हैं कि वहां के हालात की जानकारी नहीं है और वो इस पर गौर करेंगी.
सरकार ने गांवों को बाढ़ से बचाने के लिए एहतियात के तौर पर कुछ तटबंधों का निर्माण किया था, लेकिन स्थानीय लोगों ने बीबीसी को बताया कि बाढ़ के पानी की तेज़ धारा में एक बड़ा तटबंध बह गया.
आबिदा के घर से एक छोटी नाव पर सवार होकर हम कलइटॉप गांव के एक छोटे तटबंध तक गए. यहां के लोग गाय और बकरियों के साथ गोशाला में रह रहे हैं.
रहमान अली ने बताया, "हमारे पास कोई और उपाय नहीं है. हम गायों को किसी और जगह पर नहीं ले जा सकते. हमारे घर पानी में डूबे हैं, इसलिए हम यहां रहने के लिए मजबूर हैं."
50 मवेशी और इतने ही लोग
जैसे ही बीबीसी की टीम इस तटबंध पर पहुंची, एक महिला मरी हुई बकरी के साथ हमारे पास पहुंची और रोने लगी. चूंकि वो हिंदी में नहीं बोल रही थीं, इसलिए उन्होंने इशारे से बताया कि उनकी बकरी भूख से मर गई.
इस तटबंध पर 50 से अधिक जानवर और लगभग उतने ही इंसान रह रहे हैं. अली कहते हैं जानवरों के लिए चारा पाना मुश्किल हो रहा है. वो कहते हैं, "भले ही हम ऊंचाई पर हैं मगर पानी के बीच में हैं. उन्हें यहां से कहीं और नहीं ले जा सकते."
रहमान अली असम बाढ़ के कई बेघर लोगों में से एक हैं. वह एक किसान है और उनके धान के खेत पानी में डूबे हुए हैं. वह कहते हैं कि हर साल उनके गांव में बाढ़ आती है.
अली कहते हैं, "हर साल हम बाढ़ में सबकुछ खो देते हैं और फिर सबकुछ शुरू से करना पड़ता है."
भले ही यहाँ के गाँवों में अधिकांश घर मिट्टी और बांस के बने हों, लेकिन बाढ़ के बाद प्रत्येक परिवार को अपना घर रहने लायक बनाने में लगभग 50 हज़ार रुपये खर्च करने पड़ते हैं.
कलईटॉप गांव से लगभग 300 किलोमीटर दूर, बारपेटा ज़िले में दत्ताकुची भी सबसे अधिक प्रभावित गाँवों में से एक है. इस गाँव के सभी लोग या तो बाढ़ शिविरों में हैं या हाइवे पर बने छोटे शिविरों में रह रहे हैं.
दत्ताकुची गांव के पास हाईवे पर पहुंची बीबीसी को लोगों के चेहरे पर उदासी पसरी दिखी. इस गाँव के लोग मछली पालन पर निर्भर हैं.
काज़ी जहरुल इस्लाम एक किसान है. वो न केवल बेघर है बल्कि अपने मछली के तालाब को भी खो चुके हैं.
वे कहते हैं, "बाढ़ ने हमारी मछलियों को बहा दिया. अब हमारी चिंता ये है कि कर्ज़ कैसे चुकाएंगे."
इस्लाम कहते हैं कि उनके जैसे कई और लोग हैं जो अपने कर्ज़ की वापसी नहीं कर सकेंगे.
33 में से 31 ज़िले बाढ़ से प्रभावित
असम की बाढ़ से 54 लाख लोग प्रभावित हुए है. यहां 33 में से 31 ज़िले बाढ़ की वजह से प्रभावित हैं. लगभग सभी नदियाँ ख़तरे के निशान से ऊपर बह रही हैं.
कलइटॉप के उत्तर में लगभग 500 किलोमीटर दूर, कोकराझार ज़िला भी बाढ़ से प्रभावित है. बुधवार तक लगभग 2.86 लाख लोग इस ज़िले में बाढ़ से प्रभावित थे और लगभग 86,000 लोग यहां राहत शिविरों में रह रहे हैं.
असम के आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के ज़िला परियोजना अधिकारी ने बीबीसी गुजराती से कहा कि लोगों को आवश्यक सभी बुनियादी सामान दिया जाता है. उन्होंने यह भी कहा कि सरकार परिवारों के पुनर्वास के लिए प्रत्येक घर को 3,800 रुपये और प्रभावित परिवारों को घर के पुनर्निर्माण और मरम्मत के लिए 95,000 रुपये एकमुश्त देगी.
असम बाढ़ की स्थिति
असम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की बुधवार की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में 33 में से 20 ज़िले बाढ़ से प्रभावित हैं. जो 933 राहत शिविर अभी भी चल रहे हैं, उनमें 2 लाख से अधिक लोग रह रहे हैं.
जुलाई 2013 से अब तक 205 जंगली जानवरों की मौत हुई है, जिसमें अकेले काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में ही 162 जानवरों की जान गई है.
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, एक सींग वाले 18 गैंडों की मौत हुई है और उनमें से ज़्यादातर बच्चे थे. इसके अलावा 16 हिरण और एक सांभर सड़क दुर्घटनाओं में मारे गए.