असम के कलाकार ने 30 हजार इंजेक्शन और कैप्सूल से बनाई मां दुर्गा की मूर्ति, देखिए तस्वीरें
डुबरी। देशभर में इस समय नवरात्रि का त्योहार धूमधाम से मनाया जा रहा है। पश्चिम बंगाल और असम जैसे राज्यों में इसकी एक अलग ही रौनक देखने को मिलती है। थीम के आधार पर पंडाल बनाया जाना भी अब दुर्गा पूजा का अहम हिस्सा बन चुका है। जहां इस साल कई दुर्गा पंडालों में कोरोना वायरस की थीम का इस्तेमाल हुआ है, तो वहीं असम के डुबरी में एक कलाकार ने मेडिकल वेस्ट से मां की मूर्ति बनाई है। इस मूर्ति को बनाने के लिए एक्सपायर हो चुके इंजेक्शन और कैप्सूल्स का इस्तेमाल किया गया है।
मूर्ति बनाने में दो महीने का वक्त लगा
संजीब बसक नामक इस कलाकार का कहना है कि उन्हें मां दुर्गा की मूर्ति बनाने में दो महीने का वक्त लगा है। इसके लिए 30,000 एक्सपायर हुए इंजेक्शन और कैप्सूल का इस्तेमाल किया गया है। बसक इससे पहले भी वेस्ट मटीरियल से कई तरह की मूर्ति बना चुके हैं। वह अतीत में माचिस की तीली और तारों की मदद से भी अद्भुत मूर्तियां बना चुके हैं। जिन्हें काफी पसंद भी किया जाता रहा है। बसक डुबरी में आपदा प्रबंधन विभाग में काम करते हैं। जब उन्होंने देखा कि मेडिकल स्टोर एक्सपायर दवाओं के अपने स्टॉक को फेंक देते हैं। तो उनके दिमाग में इससे मूर्ति बनाने का आइडिया आया।
सोशल मीडिया पर वायरल हो रही तस्वीरें
संजीब बसक ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा है, 'आमतौर पर दुकानदार एक्सपायर दवाएं कंपनियों को लौटा देते हैं। लेकिन इस समय क्योंकि लॉकडाउन लगा, वो ऐसा नहीं कर पा रहे थे। तो फिर बड़ी मात्रा में वेस्ट स्टॉक बचा हुआ था।' इसके बाद उन्होंने इस साल की पूजा के लिए इन्हीं एक्सपायर दवाओं और इंजेक्शन की मदद से मां दुर्गा की मूर्ति बनाने का फैसला लिया। अब इस मूर्ति की तस्वीरें सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही हैं। बसक कहते हैं कि उनके विभाग में इस समय चर्चा हो रही है कि वेस्ट सामान को कैसे कम किया जाए और इसलिए उनके दिमाग में मेडिकल वेस्ट के इस्तेमाल का आइडिया आया।
पहले बिजली के तार से बनाई थी मूर्ति
इससे पहले उन्होंने 166 किलोग्राम वेस्ट बिजली के तार से दुर्गा मां की मूर्ति बनाई थी। तब उन्होंने असम बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में जगह प्राप्त की। आपको बता दें कोलकाता के बेहाला इलाके में भी, बारिशा क्लब ने एक प्रवासी श्रमिक की मूर्ति स्थापित की है जो एक महिला की है। जिसने अपनी गोद में एक छोटे बच्चे को लिया हुआ है। साथ में दो बेटी भी हैं। संचालकों का कहना है कि उन्होंने कोरोना वायरस के दौरान अप्रवासी मजदूर महिलाओं के दुख को प्रदर्शित करने के लिए यह मूर्ति लगाने का फैसला किया है, ये मूर्ति न केवल उनके दुख को प्रदर्शित करती है बल्कि साहस को भी सलाम करती है।
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