Assam assembly election:क्या भाजपा जीती तो हिमंत बिस्व सरमा बनेंगे मुख्यमंत्री ?
गुवाहाटी: असम में भाजपा के सबसे कद्दावर चेहरा माने जाने वाले नेता हिमंत बिस्व सरमा लगातार पांचवी बार गुवाहाटी के जलुकबारी विधानसभा सीट से अपनी चुनावी किस्मत आजमाने जा रहे हैं। इस सीट से वो लगातार चार बार से विधायक हैं। तीन बार कांग्रेस के टिकट पर और एकबार बीजेपी से चुनाव जीत चुके हैं। वह कुछ समय से कह रहे थे कि 2021 में वह चुनाव नहीं लड़ेंगे। लेकिन, पार्टी ने उन्हें फिर भी ना सिर्फ टिकट दिया है, बल्कि उम्मीदवारों की लिस्ट में उनके करीबियों के ही नामों का जलवा दिखाई दे रहा है। इसलिए, इसबार उनकी उम्मीदवारी बहुत ही खास मानी जा रही है, क्योंकि मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनेवाल के होते हुए भी पार्टी किसी को मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर पेश नहीं कर रही है।
असम में भाजपा में है हिमंत बिस्व सरमा का जलवा
कांग्रेस से भाजपा में आने के बाद हिमंत बिस्व सरमा का कद कितना ऊंचा हुआ है, इसका अंदाजा इसी से लगता है कि उनके पास राज्य में कम से कम 5 महत्वपूर्ण विभाग हैं। वह सिर्फ इसी राज्य में नहीं, बल्कि उत्तर-पूर्व के 8 राज्यों में पार्टी को मैनेज करते हैं। पिछले कुछ समय में ऐसे कई मौके आए हैं, जब उन्होंने कहा है कि वह इसबार चुनाव नहीं लड़ना चाहते और अपना पूरा वक्त संगठन को देना चाहते हैं। लेकिन, उन्होंने आखिरी फैसला पार्टी पर ही छोड़ रखा था। लेकिन, बीजेपी नेतृत्व ने ना केवल उन्हें फिर से उनकी जलुकबारी सीट से टिकट दिया है, बल्कि भाजपा सूत्रों की मानें उम्मीदवारों की लिस्ट में उनके उम्मीदवारों को खूब तरजीह दी गई है। पार्टी से जुड़े व्यक्ति का दावा है कि 'यहां तक कि सहयोगी दलों और उनके उम्मीदवारों के मामले में भी और सीटों के मसले पर भी सरमा की ही चली है।'
भाजपा हो या सहयोगी सरमा सब पर छाए
हाल ही में कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुईं एमएलए अजंता नियोग को गोलाघाट से बीजेपी का टिकट दिया गया है। पूर्व मंत्री गौतम रॉय 2019 में पार्टी में आए थे और इसबार उन्हें काटीगोढ़ से टिकट दिया गया है। 2015 में जब कांग्रेस में रहते हुए सरमा तत्कालीन मुख्यमंत्री तरुण गोगोई को सत्ता से हटाने की मुहिम छेड़े हुए थे, तब इन दोनों नेताओं ने हिमंत का साथ दिया था। फेहरिस्त लंबी है। हिमंत के साथ कांग्रेस छोड़ने वाले जयंत मल्ला बरुआ नलबारी से चुनाव लड़ेंगे। उनके एक और करीबी तरंग गोगोई को नहरकटिया से टिकट दिया गया है। कमालपुर से जिन दिगंता कलिता को टिकट दिया गया है, वो भी उन्हीं के खास हैं। वो भी 2015 में उनके साथ ही कांग्रेस छोड़ आए थे। सरमा की वजह से अपनी सीट छिनने से नाराज कमालपुर के मौजूदा असम गण परिषद विधायक सत्यब्रता कलिता ने कहा है, 'एजीपी ने क्षेत्रवाद के सामने सरेंडर कर दिया है। सीटों का बंटवारा बीजेपी के सिर्फ एक नेता ने किए हैं। बीजेपी के ये नेता एजीपी को खत्म करने की साजिश रच रहे हैं।' यहां तक कि पूर्व सीएम प्रफुल्ल कुमार महंत की बरहमपुर सीट भी बीजेपी ने ले ली है, जिसपर वो 1985 से जीतते रहे थे।
भाजपा जीती तो हिमंत बिस्व सरमा बनेंगे मुख्यमंत्री ?
मतलब, असम भाजपा में अगर किसी एक नेता का सबसे ज्यादा दबदबा लग रहा है तो वह हिमंत बिस्व सरमा का ही महसूस हो रहा है। जाहिर है कि अगर ऐसी स्थिति में पार्टी ने मुख्यमंत्री उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है तो चुनाव के बाद जीत की स्थिति में सरमा को सीएम बनाने के कयास भी लगने तेज हो गए हैं। इन कयासबाजियों को राज्य के स्वास्थ्य राज्यमंत्री पिजुष हजारिका और हवा दे रहे हैं। उनका कहना है कि सरमा में मुख्यमंत्री बनने की सारी क्षमताएं हैं। उन्होंने कहा है, 'लगभग दो दशकों से हिमंत सफल मंत्री रहे हैं।' हजारिका भी उनके बेहद करीबियों में से माने जाते हैं। एक समय खुद सरमा भी कहते थे कि ,'भगवान के आशीर्वाद और कुछ भाग्य से कोई भी मुख्यमंत्री बन सकता है।'
सीएम के चेहरा पर खुलकर बहस से बच रही है पार्टी
पिछले साल सितंबर में भाजपा के तात्कालिन महासचिव राम माधव ने कहा था कि 2021 के असम विधानसभा चुनाव में सर्वानंद सोनोवाल और उनकी टीम भारी जीत के साथ सत्ता में वापस लौटेगी। लेकिन, बाद में पार्टी के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष ने पार्टी नेताओं से कहा कि वो मुख्यमंत्री को लेकर बहस में ना पड़ें। वैसे पिछले साल खुद हिमंत ने भी कहा कहा था, 'चुनाव के बाद मैं 100 विधायकों की लिस्ट लेकर गवर्नर के पास जाऊंगा। (गौरतलब है कि परंपरागत तौर पर लिस्ट ले जाने की जिम्मेदारी विधायक दल का नेता करता है, जिसे राज्यपाल सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करते है।)'
युवाओं के बीच खूब लोकप्रिय हो रहे हैं 'मामा'
दरअसल, हिमंत के रूप में असम में भाजपा को ऐसे नेता मिले हैं, जो उत्तर-पूर्व के 8 राज्यों का पार्टी मैनेजमेंट तो संभालते ही हैं, असम में कोरोना महामारी से लेकर सीएए और सरकार की तमाम योजनाओं में सरकार का भी आगे से नेतृत्व करते रहे हैं। उन्होंने विधानसभा क्षेत्रों के दौरे भी किए हैं और साइकल पर चढ़कर भी यात्राएं की हैं। इस दौरान युवाओं में उनकी लोकप्रियता खूब बढ़ी है और उन्हें लोग 'मामा' कहकर बुलाने लगे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि चुनाव के बाद अगर भाजपा सरकार बनाने की स्थिति में लौटती है तो क्या सरमा को पार्टी के लिए उनके योगदान का पुरस्कार मिल सकता है? हालांकि, वो तो खुद हाल तक यही कहते रहे हैं कि वो सीएम पद की रेस में नहीं हैं और वह सिर्फ पार्टी और विचारधारा के लिए ही काम करते रहना चाहते हैं, पद उनके लिए कोई खास मायने नहीं रखता है।