Assam assembly election 2021: चुनाव से पहले ही कांग्रेस को इस मोर्चे पर झटका लगना तय
Assam assembly election 2021:अप्रैल-मई में पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी के साथ ही असम विधानसभा के भी चुनाव होने हैं। पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के निधन की वजह से कांग्रेस इसबार वहां एक बड़े नेतृत्व संकट से भी जूझ रही है। इसलिए, वह 6 दलों के एक महागठबंधन (grand alliance) में शामिल हुई है, जिसे महाजोत कहा जा रहा है। इस गठबंधन में प्रदेश में मुसलमानों की राजनीति करने के लिए चर्चित बदरुद्दीन अजमल (Badruddin Ajmal) की पार्टी ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रैटिक फ्रंट (AIUDF) भी शामिल है। महाजोत (Mahajot)में शामिल सभी दलों का मुख्य एजेंडा भारतीय जनता पार्टी को राज्य की सत्ता से बेदखल करना है यानि बीजेपी इन सभी दलों एक समान दुश्मन नंबर एक है।
महाजोत की अगुआई में ही कांग्रेस को आस
अभी तक लग रहा है कि असम विधानसभा चुनाव में त्रिकोणीय मुकाबला होने वाला है। अगर ऐसा होता है तो यह सत्ताधारी बीजेपी (BJP) के मनमाफिक माना जा सकता है। लेकिन, कांग्रेस (Congress) और उसकी अगुवाई वाले महाजोत (Mahajot) की कोशिश है कि बाकी दो क्षेत्रीय दलों के गठबंधन को भी अपने साथ ले आएं, ताकि मुकाबला आमने-सामने का हो जाए। अगर ऐसा होता है तो बीजेपी को इसबार तगड़ी चुनौती मिल सकती है। यह दोनों ही पार्टियां असम जातीय परिषद (Assam Jatiya Parishad) और राइजोर दल (Raijor Dal) नागरिकता संशोधन कानून (CAA) विरोधी आंदोलन से निकली हैं। फिलहाल महाजोत मध्य और निचले असम (middle and lower Assam ) में बड़ी ताकत बनकर उभरता हुआ दिख रहा है, जहां मुस्लिम मतदाता (Muslim Voters) 126 सीटों वाली विधानसभा में 40 से 45 सीटों पर प्रभावी रोल अदा कर सकते हैं।
भाजपा ने बदल दी है अपनी रणनीति
इनके उलट बीजेपी पूरे असम में अपनी मौजूदगी और अच्छी स्ट्राइक रेट के भरोसे बदली रणनीति के तहत चुनाव मैदान में उतरने को तैयार है। 2016 में पार्टी सिर्फ 89 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और 60 सीटें जीतने में कामयाब हो गई थी। पार्टी जिन सीटों पर लड़ी वहां उसे 42.12 फीसदी वोट मिले। नतीजा यह हुआ कि उसके उम्मीदवारों की जीत का अंतर बहुत ज्यादा रहा। इसलिए पार्टी को यकीन है कि वोटों में थोड़े-बहुत स्विंग भी हुआ तो उसकी सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। इसी रणनीति के तहत पार्टी ने अपने दो क्षेत्रीय सहयोगियों में असम गण परिषद (AGP)को साथ रखा है और बोडो पीपुल्स फ्रंट (BPF) को छोड़ दिया है।
भाजपा ने नई क्षेत्रीय पार्टी को बनाया साथी
भाजपा की रणनीति ये है कि बोडो पीपुल्स फ्रंट को हटाने के बाद अब वह बोडो-बहुल इलाकों में (Bodo-dominated areas) अपने उम्मीदवार उतार सकती है। उसने एक क्षेत्रीय दल यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल (UPPL) से गठबंधन भी किया है, जो हाल ही में बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद (BTC) चुनाव में दूसरे नंबर पर रही है। इसके अलावा दूसरे जनजातीय इलाके में भी पार्टी पूरा जोर लगाने की तैयारी में है, जहां सीएए-विरोधी आंदोलन (anti-CAA agitation) ज्यादा उग्र नहीं था। असम के भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री रामेश्वर तेली (Rameshwar Teli) के मुताबिक, 'असम में जिन्होंने सीएए-विरोधी आंदोलन में हिस्सा लिया था, वे अब बीजेपी में शामिल हो रहे हैं।' उनका कहना है, 'ऊपरी असम (Upper Assam) में हम 2016 से भी बढ़िया करेंगे। हमें उम्मीद है कि हम कुछ और सीटें जीतने में कामयाब होंगे, जो अभी कांग्रेस के पास हैं।' बता दें कि ऊपरी असम में सीएए-विरोधी आंदोलन का प्रभाव ज्यादा था।
कांग्रेस को चुनाव से पहले ही लगेगा ये झटका
बीजेपी की इन्हीं रणनीतियों ने कांग्रेस को 6 दलों के गठबंधन में शामिल होने को मजबूर कर दिया है। इसमें कांग्रेस (Congress) और एआईयूडीएफ (AIUDF)के अलावा सीपीआई (CPI), सीपीआई-एम (CPI-M),सीपीआई-एमएल (CPI-ML) और राज्यसभा सांसद अजित कुमार भुइयां (Ajit Kumar Bhuyan) की पार्टी शामिल है। सीपीएम नेता नयन भुइयां ने इस गठबंधन के बारे में कहा है, 'कांग्रेस और एआईयूडीएफ के साथ हाथ मिलाने का हमारा सिर्फ एक एजेंडा है- बीजेपी को हराना।' लेकिन, महागठबंधन में दलों के जमावड़े के बावजूद धरातल पर इसकी कुछ बड़ी चुनौतियां हैं। मसलन, असम में वामपंथी दलों का कोई जमीनी जनाधार नहीं है। दूसरा, असम में मुस्लिम प्रवासियों के सबसे बड़े रहनुमा माने जाने वाले बदरुद्दीन अजमल की पार्टी का होना ऊपरी असम में बैकफायर कर सकता है, जहां बाहर से आए लोगों के खिलाफ भावनाएं हावी हैं। लेकिन, कांग्रेस के लिए निजी तौर पर सबसे बड़ा झटका ये है कि 2016 में वह 122 सीटों पर लड़कर 26 सीटें जीती थी, लेकिन इस बार उसे कई सीटें सहयोगी दलों के लिए छोड़ देनी पड़ेंगी और उसके बाद बीजेपी की मुख्य प्रतिद्वंद्वी बनना उसके लिए कठिन चुनौती बन जाएगी।
तीसरा गठबंधन किसका खेल बिगाड़ेगा?
जहां तक तीसरे गठबंधन की बात है तो यह दोनों पार्टियां नई हैं और सीएए-विरोधी आंदोलन की उपज हैं। इनका कुछ क्षेत्रों में ही प्रभाव है और सीएए के खिलाफ गुस्सा ही इनका ट्रंप कार्ड साबित हो सकता है। राइजोर दल जेल में बंद ऐक्टिविस्ट और किसान नेता अखिल गोगोई (Akhil Gogoi) की पार्टी है। वहीं असम जातीय परिषद (AJP)को ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन जैसे शक्तिशाली संगठन का समर्थन हासिल है। इन दोनों दलों ने अबतक महाजोत में शामिल होने के कांग्रेस के प्रयासों को ठुकरा दिया है। महाजोत को लेकर दिक्कत के बारे में एजेपी के अध्यक्ष लुरिनज्योति गोगोई (Lurinjyoti Gogoi) ने कहा है, 'बीजेपी और एआईयूडीएफ दोनों सांप्रदायिक हैं। बीजेपी वोट लेने के लिए एआईयूडीएफ चीफ अजमल का (हिंदू वोटरों को) ही चेहरा दिखाएगी।' यही स्थिति भाजपा के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकता है।
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