'आर्य बाहरी थे' झूठा निकला JNU 'प्रोफेसर एमेरिट्स' रोमिला थापर का यह दावा!
बेंगलुरू। लगातार बाहरी आक्रांताओं से जूझते रहे हिंदुस्तान के खुद के वजूद पर सवाल उठाने वाले कुछ नामचीन इतिहासकारों की हरियाणा के राखीगढ़ी में खुदाई से मिले अह्म सबूतों के खुलासे के बाद नींद गायब हो सकती है, क्योंकि शोधकर्ताओं द्वारा किए गए ताजा खुलासे में उन पुराने दावों और थ्योरीज को पूरी तरह से खारिज कर दिया गया है, जिसमें दावा किया जा रहा था कि भारत में आर्य बाहर से आए थे।
शायद आप जानते हैं ऐसे झूठे नरेशन गढ़ने वाले इतिहासकारों में एक नाम रोमिला थापर का भी है, जो डंके की चोट पर भारत के प्राचीन इतिहास पर लिखी अपनी किताब में आर्यों को आक्रमणकारी, आक्रांता और बाहरी बताती हैं। ताजा खुलासे ने अब शायद रोमिला थापर जैसे उन तमाम इतिहासकारों की पोल खोल दी है, जो खुद को अब तक महान इतिहासकार सूची में शामिल करवा चुके हैं। ताजा खुलासे के बाद लगता नहीं है कि रोमिला थापर को जेएनयू प्रशासन को अपनी सीवी भेजने की जरूरत भी पड़ेगी।
पिछले 28 वर्षों से जेएनयू में प्रोफेसर एमेरिट्स रहीं रोमिला थापर को ताजा खुलासे के निश्चित रूप से बगले झांकने के लिए मजबूर कर देगा, क्योंकि रोमिला थापर का 30-40 वर्षों का झूठा नरेसन अब एक्सपोज हो चुका है। अब सवाल उनके ऐतिहासिक तथ्यों पर खड़े हो गए हैं, जिसके दंभ पर रोमिला थापर जेएनयू जैसे शीर्ष विश्वविद्यालय में भविष्य को तैयार किया हैं। ताजा खुलासे के बाद नैतिक रूप से रोमिला थापर की प्रोफेसर एमेरिट्स पदवी भी खतरे में आ गई है, क्योंकि रोमिला थापर के ऐतिहासिक तथ्य 'आर्यन बाहरी थे' लगभग झूठा साबित हो चुका है।
दरअसल, हरियाणा के राखीगढ़ी में खुदाई में मिले नरकंकालों के अवशेषों के अध्ययन में हुए खुलासे में उन दावों को पूरी तरह से खारिज कर दिया गया है, जिसमें कहा गया था कि आर्यन बाहर से भारत में आए थे। इसके अलावा रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि शिकार करना, खेती और पशुपालन भारत के मूल निवासियों ने सीखा था। रिपोर्ट को तैयार करने वाली टीम के प्रमुख प्रोफेसर वसंत शिंदे ने रिपोर्ट में इशारा करते हैं कि आर्यन हमले और आर्यन्स के बाहर आने के दोनों दावें निराधार हैं। इसके अलावा यह भी साफ किया है कि शिकार-संग्रह से आधुनिक समय के सभी विकास यहां के लोगों ने खुद किए थे।
उल्लेखनीय है ताजा रिपोर्ट को पूरा करने में प्रोफेसर वसंत शिंदे और उनकी टीम को कुल 3 साल का समय लगा है। रिपोर्ट तैयार करने वाली टीम में भारत के पुरातत्वविद और हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के डीएनए एक्सपर्ट शामिल हैं। इस टीम ने गत 5 सितंबर को साइंटिफिक जनरल 'सेल अंडर द टाइटल' नाम से रिपोर्ट पब्लिश की है। यह रिपोर्ट हरियाणा के राखीगढ़ी से मिले एक नरकंकाल के अध्यन्न के आधार पर की गई है। इस नए रिसर्च का नाम 'एन एनसेंट हड़प्पन जीनोम लैक्स एनसेस्ट्री फ्रॉम स्टेपे पेस्टोरेलिस्ट और ईरानी फार्मर्स' है, जिसे साइंटिफिक जनरल ने प्रकाशित किया हैं।
रिपोर्ट में तीन बिंदुओं को मुख्य रूप से दर्शाया गया है। पहला, प्राप्त कंकाल उन लोगों से ताल्लुक रखता था, जो दक्षिण एशियाई लोगों का हिस्सा थे। दूसरा, 12 हजार साल से एशिया का एक ही जीन रहा है। भारत में विदेशियों के आने की वजह से जीन में मिक्सिंग होती रही। तीसरा, भारत में खेती करने और पशुपालन करने वाले लोग बाहर से नहीं आए थे। हड़प्पा सभ्यता के बाद आर्यन बाहर से आए होते तो अपनी संस्कृति साथ लाते।
हालिया वैज्ञानिक खुलासे ने पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और महान इतिहासकार रोमिला थापर और राम चंद्र गुहा समेत उन लोगों आईना दिखा दिया है, जो आर्यन को बाहरी बता चुके हैं। आज भी देश में स्कूलों में इतिहास की किताबों में यह पढ़ाया जा रहा है कि आर्य बाहर से आए थे और भारत में आकर बस गए थे। कहते हैं इसी झूठी थ्योरी के कारण ही उत्तर-दक्षिण जैसे विवादों का जन्म हुआ।
कहा जाता है कि अंग्रेजों ने यह झूठी थ्योरी भारतीयों को आपस में बांटकर उन पर राज करने की नीयत से लॉन्च की थी, लेकिन यह रहस्य है कि आजादी के बाद नेहरू सरकार ने इसे बढ़ावा क्यों दिया। खुद नेहरू ने अपनी किताब भारत एक खोज' में इसी सिद्धांत को सही ठहराया है। जबकि उस दौर के दूसरे इतिहासकार और विद्वान इसके कट्टर विरोधी थे।
नेहरू के बाद स्वघोषित महान इतिहासकार बताने वाली इतिहासकार रोमिला थापर और रामचंद्र गुहा जैसों ने भी इस थ्योरी को हवा दी। वामवंथी इतिहास कार रोमिला थापर और रामचंद्र गुहा इसी थ्योरी के आधार पर भारत पर जबरन झूठा इतिहास थोपा जबकि आर्यों के आक्रमण या उनके बाहरी होने का कोई वैज्ञानिक आधार कभी मिला ही नहीं। हालांकि बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर और कई दूसरे विद्वान इस थ्योरी के कट्टर विरोधी थे। बावजूद इसके पिछले 72 वर्षों से स्कूलों, कॉलेजो और रिसर्च में झूठे थ्योरी को मान्यता दी गई और अब तक झूठी थ्योरी को पढ़ाया भी जा रहा है।
दरअसल, वर्ष 1890-1976 के बीच एक अंग्रेज पुरातत्वविद मॉर्टिमर व्हीलर ने आर्यो के बाहर से भारत में आने की झूठी थ्योरी दी थी। मॉर्टिमर व्हीवलर के मुताबिक उत्तर भारत में मिलने वाले गोरे लोग आर्य हैं, जो मध्य एशिया से भारत में आए थे। जबकि द्रविड़ और कुछ दूसरी जातियां भारत की मूल निवासी हैं। देश में दरार डालने वाले झूठे सिद्धांत का पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने पुरजोर समर्थन किया और अपने अधूरे ज्ञान को उन्होंने 'भारत एक खोज' नामक स्वलिखित किताब में भी उड़ेल दी।
कहते हैं कि मैक्स मूलर, विलियम हंटर और लॉर्ड टॉमस बैबिंग्टन मैकॉले इन तीन लोगों के कारण भारत के इतिहास का विकृतिकरण हुआ। अंग्रेंजों द्वारा लिखित इतिहास में चार बातें प्रचारित की जाती है। पहली यह की भारतीय इतिहास की शुरुआत सिंधु घाटी की सभ्यता से होती है। दूसरी यह की सिंधु घाटी के लोग द्रविड़ थे अर्थात वे आर्य नहीं थे। तीसरी यह कि आर्यो ने बाहर से आकर सिंधु सभ्यता को नष्ट करके अपना राज्य स्थापित किया था। चौथी यह कि आर्यों और दस्तुओं के निरंतर झगड़े चलते रहते थे।
ताजा हुए अह्म खुलासे ने निः संदेह आज अंग्रेजों और पूर्व प्रधानमंत्री नेहरू और वामपंथी इतिहासकारों के झूठ की कलई उतार दी है, जिन्होंने आर्यों को बाहरी बताने में पूरी उम्र गुजार दी है, लेकिन इसका सटीक जवाब नहीं है कि आर्य अगर बाहरी थे तो वो भारत कहां से आए हैं। कोई इतिहासाकर सेंट्रल एशिया कहता है, तो कोई साइबेरिया, तो कोई मंगोलिया, तो कोई ट्रांस कोकेशिया, तो कुछ ने आर्यों को स्कैंडेनेविया बताता है।
मतलब यह कि आज से पहले किसी भी इतिहासकार के पास आर्यों का सबूत नहीं है। अधिकतर इतिहासकार आर्यों को मध्य एशिया का मानते हैं, लेकिन हरियाणा के राखीगढ़ी में की गई खुदाई में मिले नरकंकालों के डीएनए टेस्ट ने अब इसका जवाब दे दिया है कि आर्य बाहर से नहीं आए थे, बल्कि आर्यों का मूल स्थान भारत था और भारतीयों ने ही सबसे पहले कृषि और पशुपालन की शुरुआत की थी, जिसके बाद यह ईरान व इराक होते हुए पूरी दुनिया में पहुंची।
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