केजरीवाल की हुई दिल्ली, हर्षवर्धन कभी नहीं बन पायेंगे मुख्यमंत्री
चलिये अपनी बात को जस्टीफाई करने के लिये सबसे पहले बात करता हूं कि आखिर भाजपा ने कौन सी सबसे बड़ी गलती की। दिल्ली चुनाव में जब केजरीवाल की पार्टी को 28 सीटें मिलीं तब अगर भारतीय जनता पार्टी अपनी 32 सीटों के साथ आप को समर्थन दे देती, तो दोनों मिलकर दिल्ली को ऊंचाईयों तक पहुंचा सकते थे, क्योंकि जो मनसूबे केजरीवाल के लिये दिल्ली के लिये हैं, वही मनसूबे नरेंद्र मोदी के पूरे भारत के लिये हैं। भाजपा इस गफलत में बैठी रही कि केजरीवाल कांग्रेस का सपोर्ट कभी स्वीकार नहीं करेंगे और दिल्ली में फिर से चुनाव होंगे। भाजपा को भी इस बात का ओवर कॉन्फीडेंस था कि अगर दोबारा चुनाव हुए तो उसे 32 की जगह 40 सीटें मिलेंगी। ये सारे समीकरण आज तब फेल हो गये, जब केजरीवाल ने सरकार बनाने का ऐलान किया।
कांग्रेस की मंशा पूरी हुई
कांग्रेस भी शुरू से यही चाहती थी कि किसी भी तरह भारतीय जनता पार्टी दिल्ली में सरकार नहीं बनाये। उसकी यह मंशा पूरी हो गई। अब कांग्रेस के साथ-साथ जनता को भी विश्वास है कि केजरीवाल की सरकार लोकसभा चुनाव के पहले तक दिल्ली में कोई न कोई बड़ा काम करके दिखाई देगी। और अगर ऐसा हो गया तो दिल्ली की लोकसभा सीटों पर भाजपा का मीटर डाउन हो सकता है। यानी आम आदमी पार्टी दिल्ली की सीटों पर सेंध मार सकती है। और अगर ऐसा हुआ तो कांग्रेस से ज्यादा खुश कोई नहीं होगा।
दूसरी सबसे अहम बात यह कि दिल्ली कांग्रेस हमेशा से चाहती थी कि डा. हर्षवर्धन मुख्यमंत्री नहीं बनें। केजरीवाल के सीएम बनने के बाद अब यह मंशा भी पूरी हो गई। जी हां 59 वर्षीय हर्षवर्धन का अब अगली बार सीएम बनने का चांस पांच साल बाद आयेगा और जिस तरह से केजरीवाल की सकारात्मक सोच लोगों के दिलों में घर कर चुकी है, उससे यह बात पक्की है कि केजरीवाल दिल्ली में बड़ा परिवर्तन लायेंगे। और ऐसा होने पर आम आदमी पार्टी को अगले चुनाव में कांग्रेस की भी जरूरत नहीं पड़ेगी। यानी अगले 10 सालों तक दिल्ली आप की होगी। तब तक हर्षवर्धन की उम्र 69 वर्ष हो चुकी होगी। चूंकि भारत की राजनीति अब युवाओं को ज्यादा तरजीह दे रही है, लिहाजा 10 साल बाद भाजपा का सीएम कैंडिडेट डा. हर्षवर्धन नहीं बल्कि कोई युवा होगा।
राज्यसभा जाएंगे डा. हर्ष वर्धन
एक बात और साफ है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जैसे ही भारतीय जनता पार्टी 272+ सीटों के साथ लोकसभा पर काबिज होगी, वैसे ही डा. हर्षवर्धन को राज्यसभा का सांसद मनोनीत किया जायेगा। उस स्थिति में डा. हर्षवर्धन का वही कद होगा, जो आज अरुण जेटली का है और तब पार्टी के नीति निर्धारण में डा. हर्ष की अहम भूमिका होगी।