Arun Jaitley: हारकर जीतने वाले को बाजीगर नहीं, अरुण जेटली कहते हैं
बंगलुरू। भारतीय जनता पार्टी में हमेशा धुरी पर रौशन रहने वाले नेताओं में किसी एक का नाम अगर लिया जा सकता है, तो वो होंगे अरुण जेटली। आज भले ही अरूण जेटली हमारे बीच नहीं रहे, लेकिन जब तक वो राजनीति में रहे हर जगह छाए रहे थे। हालांकि सत्ता पक्ष और विपक्ष में हमेशा एक जैसी रूमानियत में रहने वाले अरुण जेटली कभी मास लीडर नहीं रहे, लेकिन बीजेपी जब जब सत्ता के करीब पहुंची अरुण जेटली हमेशा बीजेपी कैबिनेट के शीर्ष पद आसीन नज़र आए। वित्त मंत्री, कानून मंत्री, सूचना और प्रसारण मंत्री और रक्षा मंत्री रह चुके जेटली मोदी सरकार-1 में एक साथ तीन-तीन मंत्रालय संभाल रहे थे।
वर्ष 2014 लोकसभा चुनाव में जब मोदी लहर उफान पर थी अरुण जेटली को अमृतसर से टिकट दिया गया, लेकिन जेटली कैप्टन अमरिंदर से चुनाव हार गए, बावजूद इसके जेटली मोदी कैबिनेट में वित्तमंत्री बनाए गए। पटना साहिब से बीजेपी की टिकट पर जीतकर संसद पहुंचे शत्रुघ्न सिन्हा ने हारे हुए जेटली को मंत्री बनाए जाने के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है, लेकिन जेटली ने मोदी सरकार-1 की कैबिनेट मंत्री ही नहीं बने बल्कि उन्हें एक साथ मंत्रालय संभालने की जिम्मेदारी दी गई और शत्रुघ्न सिन्हा के विरोध को दरकिनार कर दिया गया।
जानकार बताते है कि वर्ष 2014 में पहली बार सत्ता पर काबिज होने के बाद नरेंद्र मोदी को दिल्ली की लुटियंस राजनीति से परिचित कराने में जेटली का बड़ा योगदान है। उन्हें इसलिए मोदी का चाणक्य भी कहा गया। दोनों के रिश्तों ने एक लंबा सफ़र तय किया है। गुजरात की राजनीति से वनवास पर मोदी को दिल्ली भेजे जाने के बाद उनकी और जेटली की नजदीकियां बढ़ीं थी और तब से लेकर वर्ष 2019 के चुनाव तक जेटली और मोदी की अटूट जोड़ी तब टूटी जब स्वास्थ्य का हवाला देकर जेटली ने वित्तमंत्री बनने से इनकार कर दिया।
वर्ष 1991 से भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य रहे जेटली का पार्टी संगठन में काफी दबदबा रहता था। वर्ष 1999 के आम चुनाव से पहले की अवधि के दौरान भाजपा के धाकड़ प्रवक्ता के रुप में उनकी पहचान थी. बेहद शालीन और हाजिरजवाब जेटली जब प्रेस कांफ्रेंस के लिए पत्रकारों को बुलावा भेजते तो उनके आमंत्रण पर पत्रकार बरबस ही पहुंचे जाते थे। जेटली पत्रकारो के आड़े-तिरछे सवालों के जवाब में माहिर तो हैं ही, लेकिन अपनी ह्यूमर के चलते वो पत्रकार बिरादरी में बेहद चर्चित भी रहते थे.
जेटली राज्यसभा में विपक्ष नेता के रूप में खूब चर्चित हुए। राज्यसभा में विपक्ष के नेता के रूप में जेटली ने महिला आरक्षण बिल की बातचीत के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और जन लोकपाल विधेयक के लिए अन्ना हजारे का समर्थन किया। एक वकील पिता के घर में जन्में अरुण जेटली दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान छात्र संघ अध्यक्ष चुने गए थे और यहीं से उनके राजनीतिक जीवन की शुरूआत हुईं।
भारत के वित्त मंत्री के कार्यकाल के दौरान ही मोदी सरकार ने 8 नवंबर, 2016 को नोटबंदी की घोषणा की थी। देश में भ्रष्टाचार, काले धन, नकली मुद्रा और आतंकवाद पर अंकुश लगाने के इरादे से मोदी सरकार ने महात्मा गांधी श्रृंखला के 500 और 1000 के नोटों को प्रचलन से बाहर किया था।
स्वास्थ्य कारणों से मोदी सरकार-2 के मंत्रिमंडल से बाहर रहे अरुण जेटली को गंभीर समस्या के चलते पिछले 9 अगस्त से एम्स में भर्ती कराया गया था, जहां उनका सघन इलाज चल रहा है। जेटली बीजेपी के कितने बड़े नेता थे, इसका अंदाजा एम्स में उनको देखने पहुंचने वाले पक्ष-विपक्ष के नेताओं की फेहरिस्त से लगाई जा सकती है।
सॉफ्ट टिशू सरकोमा यानी एक प्रकार के कैंसर से पीड़ित जेटली पहले से डायबिटीज के मरीज हैं। उनका किडनी ट्रांसप्लांट हो चुका है। सॉफ्ट टिशू कैंसर की बीमारी का पता चलने के बाद इलाज के लिए अमेरिका भी गए थे। यही नहीं, उन्होंने मोटापे से छुटकारा पाने के लिए बैरिएट्रिक सर्जरी भी करा रखी है।
पिछले 9 दिनों से एम्स में भर्ती जेटली के स्वास्थ्य को बेहद नाजुक बताया जा रहा है। गत 10 अगस्त के बाद से उनके स्वास्थ्य को लेकर कोई मेडिकल बुलेटिन जारी नहीं किया गया है। जेटली के फेफड़ों में पानी जमा होने के चलते डाक्टरों ने उन्हें लगातार वेंटिलेटर पर रखा हुआ है। बीते रविवार को जेटली को एक्स्ट्रा कारपोरल मेंब्रेन ऑक्सीजेनेशन (ECMO) और इंट्रा-अरॉटिक बलून पंप (IABP) सपोर्ट पर रखा गया है। मालूम हो, मरीजों को आईएबीपी सपोर्ट पर तब रखा जाता है, उसका फेफड़ा और दिल काम करने की हालत में नहीं होता है।
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