तरकीब-ए-मोदी और गुजरात विधानसभा चुनाव!
देश के सियासी हलकों में आजकल चुनाव आयोग चर्चा का विषय बना हुआ है। दो राज्यों गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, लेकिन चुनाव आयोग द्वारा मतदान की तिथि की घोषणा केवल हिमाचल प्रदेश के लिए की गई है। इससे आयोग कठघरे में है।
दिल्ली। देश के सियासी हलकों में आजकल चुनाव आयोग चर्चा का विषय बना हुआ है। दो राज्यों गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, लेकिन चुनाव आयोग द्वारा मतदान की तिथि की घोषणा केवल हिमाचल प्रदेश के लिए की गई है। इससे आयोग कठघरे में है। विपक्षी दलों का स्पष्ट आरोप है चुनाव आयोग ने गुजरात के लिए मतदान की तिथि की घोषणा इसलिए नहीं की, क्योंकि वह चाहता है कि गुजरात में पहले केन्द्र की नरेन्द्र मोदी और राज्य की विजय रुपाणी सरकार जनता से लम्बे-चौड़े वादे कर सके। चुनाव आयोग के इस क्रियाकलाप को तरकीब-ए-मोदी से भी जोड़कर देखा जा रहा है। यद्यपि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सियासी शैली से अमूमन पूरा देश वाकिफ हो गया है। लगभग पौने चार साल के उनके कार्यकाल में देश को लम्बे-चौड़े भाषण के अलावा कुछ खास नहीं मिला। हां, देशहित में बताकर दो अहम फैसले मोदी सरकार ने जरूर लिए, जो फ्लाप रहे। खुद भाजपा के आला नेता यशवंत सिन्हा और अरूण शौरी ने यह स्वीकारा है कि नोटबंदी और जीएसटी ने देश की अर्थव्यवस्था को ध्वस्त कर दिया है। विदेश नीति मजबूत करने के नाम पर दुनिया की शैर करने वाले पीएम मोदी कमोबेश इस मोर्चे पर भी विफल ही रहे हैं।
प्रचंड बहुमत के साथ केन्द्र तथा विभिन्न राज्यों में सत्तासीन भाजपा द्वारा जनहित में कुछ खास नहीं किए जाने के बावजूद देश के कुछ प्रमुख मीडिया संस्थानों द्वारा विविध सर्वे के आधार पर नरेन्द्र मोदी को करिश्माई नेता करारा जा रहा है। हाल ही में गुरदासपुर (पंजाब) में हुए लोकसभा उप चुनाव में भाजपा को जबरदस्त शिकस्त मिली है। इसी रिजल्ट को मिनी विधानसभा चुनाव के रूप में देखा जा रहा है। दरअसल, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पूर्व की भांति ही कांग्रेस को कोसकर गुजरात विधानसभा चुनाव को जीतना चाहते हैं। जबकि पब्लिक चाहती है कि केन्द्र में महज 44 (अब 45) सीटें जीतने वाली कांग्रेस को कोसने के बावजूद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपनी उपलब्धियां गिनाते तो शायद ज्यादा बेहतर होता है। आजकल एक और स्टाइल देखी जा रही है कि जब भी कोई अहम चुनाव होने वाला होता है तब नेहरू-गांधी परिवार और उनसे संबद्ध लोगों के खिलाफ फर्जी मुद्दे उझाले जाने लगते हैं।
ताजा मामला कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा के खिलाफ सियासी सतह पर लाकर शोर मचाने की कोशिश चल रही है। इस मुद्दे पर कांग्रेस ने भाजपा को करारा व सटीक जवाब दिया है। राबर्ट वाड्रा के हथियार डीलर संजय भंडारी से रिश्तों को लेकर लगे आरोपों के बीच कांग्रेस ने यह कहकर सरकार की हवा निकाल दी है कि आखिर सरकार कोई जांच क्यों नहीं करवाती? एक राष्ट्रीय समाचार चैनल ने दावा किया है कि फरार हथियार डीलर संजय भंडारी ने 2012 में वाड्रा के लिए बिजनेस क्लास टिकट बुक कराए थे। भाजपा इस खुलासे से कांग्रेस पर हमलावर है। भाजपा के हमले के बाद कांग्रेस ने कहा कि रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ लगे आरोपों को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कोई भी जांच करा लेनी चाहिए जिससे कि यह पता लग सके कि क्या कोई चीज गलत हुई है। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा कि वाड्रा को पिछले 41 महीने से निशाना बनाया जा रहा है। भाजपा शासित केंद्र एवं राज्य की सरकारों से कांग्रेस ने पूछा कि वे राबर्ट वाड्रा के खिलाफ विभिन्न आरोपों की जांच को पिछले 41 माह से क्यों लटकाए हुए हैं, जबकि अबतक कोई आरोप सिद्ध नहीं हुआ है।
खैर, चुनाव आयोग ने अभी गुजरात में चुनाव की तारीखों का एलान नहीं किया है, फिर भी गुजरात इलेक्शन मोड में आ चुका है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी बार-बार गुजरात का दौरा कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी एक महीने में तीन बार गुजरात का दौरा कर चुके हैं। माना जा रहा है कि साल 2014 के लोकसभा चुनाव में गुजरात समेत पूरे देश में जो लहर थी, वैसी लहर नहीं है। 2014 के आम चुनावों में गुजरात की सभी 26 लोकसभा सीटों पर भाजपा की जीत हुई थी। लेकिन मौजूदा दौर में भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में कमी आई है। शायद यही वजह है कि मोदी को अपने गृह राज्य का दौरा बार-बार करना पड़ रहा है। दरअसल, नरेंद्र मोदी के गुजरात से दिल्ली जाने के बाद न केवल गुजरात भाजपा में एक रिक्तता आई है बल्कि राज्यस्तरीय शासन-तंत्र में भी मोदी की कमी महसूस हुई है। उनके पीएम बनने के बाद तीन साल में ही राज्य में दो बार सीएम बदलने पड़े हैं। पहले आनंदीबेन पटेल और अब विजय रुपाणी। राज्य में हाल के दिनों में पाटीदार समाज के आरक्षण आंदोलनों ने भी पाटीदारों को भाजपा से दूर करने में बड़ी भूमिका निभाई है। नौकरियों में आरक्षण की मांग को लेकर 2015 से ही पाटीदार समाज सरकार के खिलाफ आंदोलनरत है।
नोटबंदी और जीएसटी से देश के आर्थिक विकास दर में आई गिरावट आई है। इससे भी भाजपा और मोदी की लोकप्रियता घटी है। वर्ल्ड बैंक समेत कई अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों ने आगामी समय में भी अर्थव्यवस्था की रफ्तार कम रहने की आशंका जताई है। चूंकि गुजरात एक व्यापार प्रधान राज्य है, इसलिए अर्थव्यवस्था की रफ्तार का सीधा-सीधा असर यहां के जनमानस पर पड़ता है। जानकार बताते हैं कि मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों की वजह से गुजरात के व्यापारियों को घाटा उठाना पड़ा है। लिहाजा, उनका रुझान भी भाजपा से हटकर कांग्रेस की तरफ हो सकता है। राजनीतिक विश्लेषक तहसीन पूनावाला कहते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में गुजरात के अलग-अलग हिस्सों में दलितों पर हुई हिंसा की वजह से भी दलित समाज का भाजपा से मोहभंग हुआ है। ऊना और बड़ोदरा में बड़े पैमाने पर दलित इसकी दस्तक पहले ही दे चुके हैं। आदिवासी समाज भी भाजपा सरकार की नीतियों और कार्यों से खिन्न है क्योंकि अभी तक उन्हें विकास के 'गुजरात मॉडल' का कोई लाभ नहीं मिला है।
राज्य में आबादी के हिसाब से पांचवा स्थान रखने वाले आदिवासी समाज भाजपा को ही समर्थन देता रहा है। लिहाजा, विधानसभा की कुल 182 सीटों में से अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 27 में से 14 सीटों पर भाजपा के उम्मीदवार जीतते रहे हैं लेकिन इस बार नर्मदा पर बने सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाए जाने से डूब क्षेत्र में सबसे ज्यादा आदिवासी बहुल गांव ही आए हैं। उनका सही ढंग से विस्थापन नहीं हो सका है, इससे जनजातीय समुदाय में भाजपा के खिलाफ आक्रोश है। इस वजह से माना जा रहा है कि उनका रुझान कांग्रेस की तरफ हो सकता है। इस हालात को अपने पक्ष में करने के लिए राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत तथा कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव विधायक जीतू पटवारी तरह-तरह के कार्यक्रम बना रहे हैं, जिसका असर भी दिख रहा है। दिल्ली कांग्रेस आईटी सेल के प्रमुख विशाल कुन्द्रा की माने तो न सिर्फ गुजरात बल्कि पूरे देश में भाजपा विरोधी माहौल तैयार हो रहा है। इसका असर आसन्न गुजरात चुनाव तथा 2019 के लोकसभा चुनाव में दिख जाएगा।
राज्यसभा चुनाव में अहमद पटेल की जीत, गिरती अर्थव्यवस्था पर चौतरफा घिरी मोदी सरकार, दलित-आदिवासियों का भाजपा से होता मोहभंग देख कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी लगातार गुजरात दौरे कर रहे हैं और भाजपा की तरह ही सोशल मीडिया को हथियार बना और गुजरात धार्मिक, जातीय और अन्य लामबंदी कर वापसी की उम्मीद लगाए बैठे हैं। ऐसा कहा जा रहा कि पिछले दो वर्षों में उभरकर सामने आए पाटीदार, ओबीसी और दलित समुदायों को प्रभावित करने वाले तीन युवा बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं। पाटीदार नेता हार्दिक पटेल, दलित नेता जिग्नेश मेवाणी और ओबीसी नेता अल्पेश ठाकुर गुजरात की राजनीति का अहम हिस्सा बन गए हैं। राजनीतिक विश्लेषक तहसीन पूनावाला कहते हैं कि युवाओं में मौजूद ग़ुस्से से जन्मे ये नेता बीजेपी के लिए चुनौती बन सकते हैं और इसका असर बीजेपी पर दिख भी रहा है। बहरहाल, देखना है कि क्या होता है?
(लेख में व्यक्त विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं)
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