सीमा पर संघर्ष, राज्यों में रार, जश्न में सरकार!
यूं कहें लगातार बिगड़ते जा रहे हालात के बीच यदि कोई ‘अरबी बसंत’ की आस लगाए बैठा है तो उसे मुर्खता के अलावा कुछ भी नहीं कहेंगे।
दिल्ली। 26 मई को केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के तीन साल पूरे हो गए। इस दरम्यान सरकार ने क्या खोया और क्या पाया, यह अलग चर्चा का विषय है। फिलहाल, अहम यह है कि सीमा पर हमारे सैनिक पाकिस्तानी सेना और आतंकियों से जंग लड़ रहे हैं। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में इस वक्त आपराधिक वारदातें अपने उच्चत्तम स्तर पर है और केंद्र की मोदी सरकार जश्न में डूबी हुई है। यह कितना विरोधाभासी सवाल है कि जनहित के मुद्दे पर घड़ियाली आंसू बहाने वाले नेताओं की संवेदना आखिर कहां चली गई है। जनता के सामने जाकर वोट के लिए गिड़गिड़ाने वाले नेताओं को शर्म नहीं आती कि वह जनविरोधी मामलों में किस तरह लिप्त हो जाते हैं। वही बात है कि 'समरथ को नहीं दोष गोसाईं...।' यानी जो हो रहा है, वह ठीक हो रहा है। यही मानकर चलने की जरूरत है। दूसरे शब्दों में इशारों-इशारों में सरकार से जुड़े लोग संकेत दे रहे हैं कि अब इसी तरह चलता रहेगा। इसलिए भविष्य के कथित 'अच्छे दिन' के इंतजार में अपना वर्तमान बर्बाद न करें। देश के जाने-माने संत स्वामी अवधेशानंद गिरी जी महाराज अक्सर अपने आध्यात्मिक संदेश में यह कहते रहते हैं कि 'वर्तमान ही जीवन है।' यूं कहें लगातार बिगड़ते जा रहे हालात के बीच यदि कोई 'अरबी बसंत' की आस लगाए बैठा है तो उसे मुर्खता के अलावा कुछ भी नहीं कहेंगे।
बीजेपी
के
नेतृत्व
वाली
एनडीए
सरकार
के
तीन
साल
पूरे
होने
पर
क्रमवद्ध
तरीके
से
जश्न
मनाने
की
तैयारियां
की
गई
हैं,
जो
शुरू
हो
गया
है।
सरकार
तीन
साल
की
उपलब्धियां
गिना
रही
है।
पार्टी
इस
मौके
को
राष्ट्रव्यापी
जश्न
के
तौर
पर
मना
रही
है
और
इस
जश्न
में
उसकी
कोशिश
प्रधानमंत्री
मोदी
को
बतौर
ब्रांड
देश
के
सामने
रखने
का
है।
इस
जश्न
का
नाम
भी
'मोदी'
यानी
एमओडीआई
(मेकिंग
ऑफ
डेवलपमेंट
इंडिया)
है।
गौरतलब
है
कि
पार्टी
ने
केन्द्रीय
मंत्री
और
वरिष्ठ
नेताओं
को
जिम्मा
दिया
है
कि
वह
25
मई
से
15
जून
तक
पूरे
देश
का
दौरा
कर
प्रधानमंत्री
मोदी
की
'मेकिंग
ऑफ
डेवलपमेंट
इंडिया'
छवि
का
उल्लेख
करें।
इस
काम
के
लिए
पार्टी
ने
अपने
450
से
अधिक
नेताओं
को
लगाया
है
जिसमें
केन्द्र
सरकार
के
सभी
मंत्री
शामिल
हैं।
25
मई
से
शुरू
हुए
इस
जश्न
में
मोदी
के
मंत्री
और
पार्टी
के
बड़े-छोटे
नेता
अगले
20
दिनों
तक
देश
में
900
जगहों
का
दौरा
करेंगे।
केन्द्रीय
मंत्रियों
के
अलावा
राज्यों
के
मुख्यमंत्री,
अन्य
मंत्री
और
पूरी
पार्टी
को
इस
जश्न
के
लिए
लगाया
गया
है।
सभी
नेताओं
और
मंत्रियों
को
जगह-जगह
रैलियां
करके
मोदी
सरकार
की
तीन
साल
की
उपलब्धियों
के
बारे
में
जनता
को
बताने
के
लिए
कहा
गया
है।
इस
जश्न
के
बीच
हालांकि
पीएम
को
विदेश
यात्रा
भी
करनी
है
लेकिन
जश्न
की
शुरुआत
मोदी
ने
असम
से
कर
दी
है।
गुवाहाटी
में
उन्होंने
26
मई
को
अपनी
सरकार
के
कामकाज
का
खूब
बखान
किया।
भाजपा
के
अध्यक्ष
अमित
शाह
ने
त्रिवेंद्रम
और
गंगटोक
में
जनसभा
किया।
इतना
ही
नहीं
बीजेपी
के
सभी
मुख्यमंत्री
व
उप
मुख्यकमंत्री
भी
प्रेस
कान्फ्रेंस
कर
सरकार
की
उपलब्धियों
को
गिनाते
हुए
देखे
गए।
अपने
कड़क
तेवर
को
लेकर
देश-दुनिया
में
मशहूर
जाने-माने
भारतीय
पत्रकार
रवीश
कुमार
ने
एनडीटीवी
इंडिया
के
कार्यक्रम
प्राइम
टाइम
के
लिए
लिखे
अपने
स्क्रिप्ट
में
यूपी
की
आपराधिक
वारदातों
को
संकलित
करने
की
कोशिश
की
है,
जो
दिल
दहलाने
वाली
है।
यह
स्क्रिप्ट
उन्होंने
25
मई
को
लिखी
थी।
स्क्रिप्ट
के
अनुसार,
24-25
मई
की
रात
यूपी
में
दिल्ली
से
सटे
साबौता
गांव
के
पास
यमुना
एक्सप्रेस
वे
पर
हथियारबंद
छह
गुंडों
ने
एक
कार
रोक
ली।
इस
कार
में
आठ
लोग
थे
जो
जेवर
से
बुलंदशहर
जा
रहे
थे।
लूटपाट
का
परिवार
के
मुखिया
शकील
कुरैशी
ने
विरोध
किया
तो
उन्हें
गोली
मार
दी।
पहले
गुंडे
शकील
के
बच्चों
को
गोली
मार
रहे
थे
लेकिन
जब
शकील
ने
मिन्नत
की
तो
बच्चों
को
छोड़
दिया
और
शकील
को
गोली
मार
दी।
महिलाओं
के
टुपट्टों
से
पुरुषों
को
बांध
कर
उन्हें
उल्टा
लटका
दिया।
फिर
चारों
महिलाओं
को
खेत
में
ले
गए
और
गैंग
रेप
किया।
शकील
और
उनका
परिवार
इतनी
रात
को
यात्रा
इसलिए
कर
रहा
था
कि
उनके
किसी
रिश्तेदार
की
डिलिवरी
होनी
थी।
जच्चा
और
बच्चा
दोनों
ख़तरे
में
थे।
इसलिए
पूरा
परिवार
भाग
कर
उनकी
मदद
के
लिए
जा
रहा
था।
पुलिस
घटना
के
एक
घंटे
बाद
पहुंची।
इस
बीच
अपराधियों
ने
एक
परिवार
की
ज़िंदगी
तबाह
कर
दी।
31
जुलाई
2016
को
भी
बुलंदशहर
ज़िले
में
दिल्ली-कानपुर
हाईवे
पर
ऐसी
ही
घटना
हुई
थी।
एक
परिवार
नोएडा
से
शाहजहांपुर
के
लिए
निकला,
क्योंकि
उसे
एक
अंत्येष्टि
में
शामिल
होना
था।
कार
में
पति
पत्नी,
दो
बेटियां
और
दो
पुरुष
रिश्तेदार
थे।
पांच
छह
डाकुओं
ने
कार
रोक
ली।
45
साल
की
महिला
और
15
साल
की
युवती
को
कार
से
उतार
ले
गए
और
उनके
साथ
रेप
किया।
तब
नेताओं
ने
कहा
था
कि
यूपी
में
गुंडा
राज
है।
सवाल
है
कि
अब
'क्या'
है?
पत्रकार रवीश कुमार कहते हैं कि यूपी में राज तो बदल गया मगर गुंडे नहीं बदले। अपराधी 24 घंटे के अंदर पकड़े गए मगर अपराध की प्रवृत्ति नहीं थमी है। जब एक्सप्रेस वे और हाईवे सुरक्षित नहीं होंगे तो देर रात आपातस्थिति में आने-जाने वाले लोगों के साथ क्या होगा, इसकी गारंटी कौन लेगा। हाइवे पुलिस देर से पहुंचती है। बताते हैं कि जिस राज्य में सरकार बनते ही पुलिस अधिकारियों के पीटने की खबर आने लगे उस राज्य में अपराधियों का मनोबल टूटने में थोड़ा तो वक्त लग सकता है। हालांकि अब अधिकारियों के पीटने की घटनाएं बंद हैं लेकिन यूपी का का राजनीतिक और सामाजिक चरित्र रातोंरात नहीं बदल सकता। सहारनपुर की हिंसा पर गृह मंत्रालय ने रिपोर्ट मांगी है। केंद्र से रैपिड एक्शन फोर्स की चार कंपनियां वहां भेजी गई हैं। 5 मई से वहां तरह-तरह के झगड़े हो रहे हैं। पहले अंबेडकर जयंती की शोभायात्रा को लेकर तनाव हुआ, फिर महाराणा प्रताप जयंती की शोभा यात्रा को लेकर तनाव हुआ। कई लोगों ने कहा कि यूपी में महाराणा प्रताप जयंती की शोभा यात्रा पहले नहीं सुनी। कई मुद्दों को लेकर यहां तनाव हुआ। हिंसा हुई, जिसमें एक से अधिक लोगों की जान जा चुकी है, कई लोग घायल हैं और कई लोग जेल में हैं। क्या इस हिंसा के बाद राजनीतिक हिसाब होना है, किसका वोट किसे मिलेगा, क्या इतनी सी बात सहारनपुर की जनता नहीं समझती है कि वे शांत रहें, क्या उनके बीच कोई नहीं है जो इस लड़ाई को बंद करवाये। कहीं जाटव बनाम ठाकुर है तो कहीं बाल्मीकि बनाम मुस्लिम है। एसे तमाम मसले हैं, जो यूपी समेत अलग-अलग राज्यों में फैले हैं।
यदि मुख्य रूप से कश्मीर की बात करें तो वहां भारत और पाकिस्तान के बीच अघोषित रूप से युद्ध छिड़ा हुआ है। कमोबेश रोज ही दोनों तरफ के सेना के जवान मारे जा रहे हैं। सीमा पर भारतीय जवानों के कत्लेआम के साथ शवों को क्षत-विक्षत किए जाने से देश में रोष है। शहीद सैनिकों के परिजनों द्वारा सरकारी मुआवजे ठुकराए जा रहे हैं। केन्द्र सरकार की पाकिस्तान नीति का देश में विरोध है। लगातार रोजगार घट रहे हैं। चारों तरफ हाहाकार सी स्थिति बनी हुई है। यह मोदी सरकार की बड़ी असफलता है। 'सबका साथ सबका विकास' का नारा मोदी का एक बहुत बड़ा नारा था, लेकिन इस नारे पर खरा उतरने में यह सरकार फेल रही और यह विफलता इस सरकार की सबसे बड़ा नकारात्मक पक्ष रहा। मसलन, अगर लोग आकर किसी भी निर्दोष को मार डालें और कानून अपने हाथ में लेनेवालों के खिलाफ कोई कार्रवाई न हो या सिर्फ नाम मात्र कार्रवाई हो, तो यह स्थिति 'सबका साथ सबका विकास' के बड़े नारे को धूमिल कर देती है। यही वजह है कि आज अल्पसंख्यकों में एक प्रकार की असुरक्षा और भय का माहौल है। आगे इसका क्या राजनीतिक प्रभाव होगा, यह कहना मुश्किल है, इतना जरूर है कि देश के लिए यह ठीक नहीं है। सबके बीच मोदी सरकार के तीन वर्ष पूरे होने पर बीस दिवसीय जश्न का कार्यक्रम गले से नहीं उतर रहा है। सरकार को चाहिए कि वह शहीद जवानों के नाम पर और देश के भीतर मचे मारकाट की वजह से अपने जश्न को रश्मी तौर पर ही करती। इसके लिए इतना वृहद प्रोग्राम नहीं बनाना चाहिए था। बहरहाल, देखना है कि सरकार के कामकाज को देश की जनता किस नजर से देखती है।