जम्मू-कश्मीर: तो क्या अब रिहा कर दिए जाएंगे उमर अब्दुल्ला ?
Article 370: Will Modi government release Umar Abdullah now?जम्मू कश्मीर से धारा 370 रद्द किए जाने के पांच महीने बाद पूर्व सीएम उमर अबदुल्ला की एक लंबी दाढ़ी वाली फोटो वायरल हो रही। जिसके बाद उनकी मोदी सरकार से ये सवाल हो रहे कि कब होगी घाटी में नजरबंद नेताओं की रिहाई। जानें कब रिहा करेंगी केन्द
बेंगलुरु। सोशल मीडिया पर जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की एक तस्वीर काफी वायरल हुई। इसमें वो लम्बी दाढ़ी में दिखाई दे रहे हैं जिससे उन्हें पहचानना काफी मुश्किल है। मोदी सरकार ने 5 अगस्त को जम्मू एवं कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा (अनुच्छेद 370) खत्म कर दिया था। इसके बाद राज्य को 2 केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया था। उमर अब्दुल्ला कश्मीर में धारा 370 हटने के बाद से पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत नज़रबंद कर दिया गया था। उनके साथ राज्य के बड़े नेता फारुख अब्दुल्ला, पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती भी नजरबंद हैं।
बता दें तीन दिनों पहले ही 2 जी इंटरनेट सेवा शुरू की गई है। जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट शुरू होने के बाद एक फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। गणतंत्र दिवस के पहले मोदी सरकार ने कश्मीर राज्य में मोबाइल सेवाओं की बहाली करके कश्मीर घाटी के लोगों के प्रति संवेदना दिखाना चाह रही थी,लेकिन उमर अब्दुल्ला की वायरल हुई इस तस्वीर ने विपक्ष को मोदी सरकार को घेरने का मौका दे दिया। करीब 5 महीने बाद उमर अब्दुल्ला की तस्वीर सामने आई है। फोटो में नीली जैकेट और ऊनी टोपी पहने उमर कश्मीर की बर्फ से नहाए हुए हैं। लेकिन उनके चेहरे मुस्कुराहट तो है लेकिन बढ़ी हुई सफेद दाढ़ी बहुत कुछ बयां कर रही हैं। पहले हमेशा क्लीन शेव दिखने वाले उमर की इस फोटो की दाढ़ी मोदी सरकार को चुभन पैदा कर रही हैं।
विपक्ष वायरल फोटो के बाद लगा रहा ये आरोप
मालूम हो कि इस फोटो के वायरल होते ही सियासत भी शुरु हो गयी हैं। इस फोटो पर कई लोगों ने ट्वीट किया। जिसमे सबसे ज्यादा चर्चा बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के ट्वीट की रही। जिसमें ममता ने लिखा कि मैं इस फोटो में उमर को पहचान नहीं सकती। मुझे बुरा लग रहा है। दुर्भाग्यवश हमारे लोकतांत्रिक देश में ये सब हो रहा है। ये कब खत्म होगा? उमर अब्दुल्ला की इस तस्वीर पर तरह-तरह के कमेंट्स भी कर रहे हैं। वहीं, एक ने लिखा कि सरकार ने अच्छी खातिरदारी की है। कुछ लोगों ने लिखा पांच महीने में क्या से क्या हो गए। कांग्रेस नेता सलमान अनीस सोज उन लोगों को आड़े हाथ ले रहे थे, जो उमर से जल्द ट्विटर पर लौटने की गुजारिश कर रहे थे। सलमान ने कहा कि ‘उमर कोई हॉलिडे पर नहीं गए हैं। हमारी सरकार ने उन्हें बिना आरोप बंदी बनाया हुआ है। न्यायपालिका भी साथ है, और ज्यादातर मीडिया भी सवाल नहीं कर रहा है। यह सब जिम्मेदार हैं। मेहबूबा मुफ्ती की ओर से भी इसी तरह की राय व्यक्त की गई।
मोदी सरकार को चुभने लगी है उमर की बढ़ी हुई दाढ़ी
देशभर से विपक्षी नेताओं ने उमर की तस्वीर पर अपनी भावनाएं व्यक्त की गईं। सिर्फ नेता ही नहीं, पत्रकार बिरादरी की ओर से भी उमर के प्रति सहानुभूति जताते हुए मोदी सरकार को निशाना बनाया गया। कई लोग सवाल भी उठा रहे कि आखिर कब तक उन्हें ऐसे कैद में रखा जाएगा। साफ तौर पर मोदी सरकार इस मुद्दे पर घिरती नजर आ रही है। लेकिन क्या इस सबसे मोदी सरकार को फर्क पड़ेगा, क्या मोदी सरकार जल्द रिहा कर देगी?
इस फोटो से मोदी सरकार को कोई फर्क पड़ेगा कि नहीं?
उमर अब्दुल्ला की जो वायरल फोटो से विपक्ष को मोदी सरकार पर आक्रामक होने का एक और मौका मिल गया। बात करें कि इस फोटो से मोदी सरकार को कोई फर्क पड़ेगा कि नहीं? इसका जवाब हैं कि हां। क्योंकि इससे मोदी सरकार पर ये सवाल उठ रहा है कि जब घाटी की सामान्य होती स्थिति के मद्देनजर सारी मोबाइल सेवाएं बहाल कर दी गयी है तो छह महीनों से नजरबंद किए गए नेताओं को सरकार क्यों नहीं रिहा कर रही हैं उन्हें कब आजाद किया जाएगा?
अगर ये गारंटी दें तो छूट सकते हैं उमर
महत्वपूर्ण बात ये है कि मोदी सरकार कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने के बाद जिस तेजी से हर मामले में वहां के मसलों पर कामयाबी कर रही तो ऐसे में ये भी सवाल उठना लाज़मी है कि आखिर किस सूरत पर उन्हें रिहा करेगी। वह ऐसा करके कोई रिस्क लेना नहीं चाहेगी। जानकारों का मानना है कि जब तक देश भर में सीएए और एनसीआर को लेकर विरोध प्रदर्शन शांत नहीं हो जाता तब तक केन्द्र सरकार ये रिस्क नहीं लेना चाहेगी। इसके बाद भी जब इन्हें रिहा किया जाएगा तो इस शर्त पर ही दी जाएगी कि जब वो घाटी में राजनीतिक आंदोलन या गड़बड़ी न होने देने की गारंटी देंगे । लेकिन ऐसा करने के लिए वो आसानी से तैयार नहीं होंगे क्योंकि शायद ये गारंटी देना उनके लिए किसी खुदकुशी से कम नहीं होगा।
ये सभी नजरबंद नेता और केंद्र सरकार इस मामले में इस सूझ बूझ से हल निकाल सकती है कि जैसे, केंद्रशासित बना दिए गए जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग। उम्मीद है कि केंद्र सरकार भी मान लेगी। घाटी के नेताओं को पूर्ण राज्य वाली विधानसभा मिल जाए और केंद्र को बिना धारा 370 वाला ‘शांतिपूर्ण जम्मू-कश्मीर। लेकिन फिलहाल ये सब जल्द होने की संभावना नहीं लगती। जब ये नजरबंद नेता पूरी तरह से हार मान जाएंगे तो शायद इन मुद्दों पर आगे बढ़ कर अपना राजनीतिक करियर चमका सकते हैं।
मोदी सरकार के इस फैसले ने इनको कहीं का नहीं छोड़ा
गौरतलब है कि मोदी सरकार ने 5 अगस्त को जम्मू कश्मीर से धारा 370 रद्द किए जाने के बाद 31 अकटूबर को जम्मू-कश्मीर को केंद्रशासित राज्य का दर्जा दिया। जिससे कश्मीर के नेताओं की राजनीतिक को कहीं का नहीं छोड़ा। इतना ही नहीं विपक्ष ही नहीं पूरी दुनिया द्वारा कश्मीर से धारा 370 रद्द किए जाने के बाद जो कयास लगाए जा रहे थे कि उनके इस फैसले से घाटी में कत्लेआम हो जाएगा उन कयासों को भी मोदी झूठ साबित करती चली आ रही है। जो खूनखराबे की आशंका जताई जा रही थी, वो बिलकुल नहीं हुआ इसके बजाय घाटी के हालात धीरे-धीरे ही सही लेकिन पांच महीने में हालात पटरी पर आ भी रहे हैं। वहां के लोग भी अब मोदी सरकार से घाटी के विकास और रोजगार पाने की उमीद करने लगे हैं। यह फैसला मोदी सरकार ने घाटी के लोगों के हित के मद्देनजर लिया था जो वहां रहने वाले कश्मीरी लोगों को भी समझ में आने लगा हैं।
उमर को राजनीतिक करियर के लिए करना होगा ये समझौता
इससे केवल अगर नुकसान हुआ है तो केवल कश्मीर में सियासत करने वाले इन राजनीतिज्ञों का। चाहे वो अलगावादी हों या मेनस्ट्रीम पॉलिटिक्स करने वाले। उन्होंने हमेशा सत्ता के आदी रहे। इनका सदा से केंद्र के साथ लव-हेट का एक रणनीतिक रिश्ता रहा। मोदी सरकार ने केन्द्र में कमाल संभालते ही इन घाटी के इन अलगाववादियों की दुकान तो लगभग बंद कर दी गई थी।
इतना ही नहीं रही सही कसर धारा 370 के समाप्त होने के साथ होगी। उनके इस एक कदम से कश्मीर में मेनस्ट्रीम पॉलिटिक्स करने वाले नेताओं को ही अलगाववादी बना दिया गया। अब यदि इन नेताओं को दोबारा मेनस्ट्रीम में आना है तो इसी समझौते के साथ कि श्रीनगर को दिल्ली में भाजपा सरकार के साथ जोड़ कर आगे बढ़ना हैं। हालांकि नजरबंद उमर अब्दुल्ला और फारुख अब्दुल्ला ये करना मुश्किल नहीं होगा क्योंकि उन्होंने पहले भी किया है। तो उनके लिए बेहतर है कि वह इस बात को जल्द ही समझे।
रिहा होने के बाद क्या उमर कर पाएंगे ये कमाल
हालांकि राजनीति के जानकारों का मानना है कि केन्द्र सरकार द्वारा नेता उमर अबदुल्ला को रिहा भी कर दिया तो अगर वो धारा 370 के फैसले के खिलाफ अगर आंदोलन करना चाहे भी तो उनका साथ कौन देगा? क्योंकि उमर ही नहीं पूरे अब्दुल्ला परिवार पर भी यहां की जनता ने विश्वास करके देख लिया हैं।
बता दें 1953 में जवाहरलाल नेहरू की मदद से जम्मू-कश्मीर राज्य के उमर के बाबा आसीन शेख अब्दुल्ला ने यहां के वजीर-ए-आजम बने। जिन्हें देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर 11 साल जेल में रखा गया था और वो इंदिरा गांधी की सरकार में रिहा हुए थे। उन्हें रिहा तो किया गया था लेकिन जम्मू-कश्मीर से वजीर-ए-आजम का पद और अलग झंडा छीन लिया गया। लेकिन कांग्रेस के द्वारा ऐसा व्यवहार किए जाने के बावजूद सब कुछ भुलाकर अब्दुल्ला परिवार 2008 में कांग्रेस के साथ गठबंधन करके राज्य की सत्ता तक पहुंचा और 2009 का लोकसभा चुनाव भी कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ा, और यूपीए का हिस्सा बना था।
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