धारा-370 की वजह से पटेल और नेहरू की दोस्ती में आ गई थी दरार
नई दिल्ली। संविधान की धारा 370 यानी किसी भी राज्य को मिलने वाला एक स्पेशल दर्जा। एक ऐसा दर्जा जहां पर न तो विधानसभा पांच साल की होती है, न केंद्र सरकार के नियम लागू होते हैं, न कैग की इंक्वायरी होगी, न आरटीआई लागू होगी और न ही इस राज्य में राष्ट्रध्वज के अपमान जैसा कोई नियम लागू होता है। सोमवार को मोदी सरकार ने इस धारा को राज्य से हटा लिया। साल 2014 से ही इस कानून पर बहस जारी थी। उस वर्ष जब लोकसभा चुनाव होने वाले थे तो तत्कालीन चीफ मिनिस्टर उमर अब्दुल्ला ने तो यहां तक कह डाला था कि अगर धारा 370 को हटाया जाता है तो फिर इसका मतलब साफ है कि कश्मीर भारत का हिस्सा ही नहीं है।
दोस्ती में डाली दरार
अक्टूबर 1954 को यह कानून लागू हुआ और यह एक ऐसा कानून था जिसकी वजह से पंडित जवाहर लाल नेहरु और लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की दोस्ती में दरार आ गई थी। सिर्फ इतना ही नहीं 60 के दशक में खुद पंडित नेहरु ने कहा था इसे हटाने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और जल्द ही प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी। देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु ने आर्टिकल 370 को एक 'अस्थायी प्रबंध' के तौर पर करार दिया था।
घिसते घिसते जाएगी
27 नवंबर 1963 को उन्होंने लोकसभा में बयान दिया था कि धारा 370 को खत्म करने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं। जल्द ही इसे पूरी तरह से खत्म कर दिया जाएगा।संसदीय कार्यमंत्री जीतेंद्र सिंह ने अपने एक बयान में जानकारी दी थी कि नेहरु ने कहा था, 'यह घिसते-घिसते जाएगी,' यानी एक दिन यह कानून खत्म हो जाएगा। पंडित जवाहर लाल नेहरु की मौत के बाद कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने गुलजारी लाल नंदा ने चार दिसंबर 1964 को लोकसभा में भाषण दिया था जिसमें उन्होंने कहा था कि आप आर्टिकल 370 को रखें या इसे हटा दें, लेकिन यह अपना असर दिखा चुका है।
हमेशा से थे इसके खिलाफ
सरदार वल्लभ भाई पटेल और जवाहर लाल नेहरु के रिश्तों के बीच इस नियम की वजह से खटास आ गई थी। दरअसल पटेल इस धारा को लागू किए जाने के सख्त खिलाफ थे लेकिन यह भी सच है कि जिस समय जवाहर लाल नेहरु टूर पर विदेश गए थे उन्होंने एन गोपालस्वामी अयंगर के कहने पर इसे पास करा डाला था।
कभी नहीं दूंगा मंजूरी
उमर अब्दुल्ला के दादा और कश्मीर के शासक रहे डॉक्टर शेख अब्दुल्लाह आर्टिकल 370 के बाबत जब भारतीय संविधान के निर्माता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के पास पहुंचे तो उन्होंने इसकी मंजूरी देने से साफ इंकार कर दिया। उन्होंने कहा था कि यह नियम भारत की स्थिरता के लिए खतरनाक होगा। इसलिए मैं कभी भी इसकी मंजूरी नहीं दूंगा।
यह भेदभाव क्यों
17 अक्टूबर 1949 को कश्मीर के एक महान चिंतक और कवि मौलाना हसरत मोहीनी ने संविधान की सभा से सवाल किया था कि इस धारा को लागू कर आखिर कश्मीर के साथ भेदभाव क्यों किया जा रहा है।