अनुच्छेद 370: केन्द्रशासित प्रदेश बने जम्मू कश्मीर में वर्षो बाद होगा परिसीमन,जानें क्या होगा लाभ
बेंगलुरु। जम्मू-कश्मीर को आज 31 अक्टूबर को केन्द्र शासित प्रदेश का दर्जा मिल गया है इससे वहां रह रहे बाहरी नागरिकों को भी विधान सभा चुनाव में वोट डालने का अधिकार मिल गया। वहीं केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवस्था में बदलाव हो गया। जिससे जम्मू संभाग के साथ बीते 70 साल से चला आ रहा राजनीतिक भेदभाव भी समाप्त हो जाएगा।
बता दें केन्द्र सरकार द्वारा पिछली पांच अगस्त को जम्मू कश्मीर और लेह लद्दाख से अनुच्छेद 370 को हटाये जाने के ऐतिहासिक फैसले के बाद 31 अक्टूबर को जम्मू कश्मीर को केन्द्र शासित प्रदेश का दर्जा मिल गया। इस फैसले से जहां वहां की जनता को भारत के अन्य नागरिकों की भांति सभी सरकारी योजनाओं समेत अन्य लाभ मिलेगा वहीं अब जल्द ही भारतीय चुनाव आयोग राज्य में परिसीमन की प्रक्रिया शुरू कर देगा। जिसके बाद यहां पर वर्षों से हो रहा राजनीतिक भेदभाव समाप्त हो जाएगा। बता दें प्रस्तावित परिसीमन में जम्मू-कश्मीर में विधानसभा की सात सीटें बढ़ने की उम्मीद है। यह सीटें संभवत: जम्मू संभाग में ही बढ़ेंगी। प्रस्तावित परिसीमन 2011 की जनगणना के मुताबिक होगा। स्थानीय भौगोलिक, सामाजिक, आर्थिक और अन्य बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए प्रस्तावित परिसीमन 2011 की जनगणना के मुताबिक होगा। इसके आधार पर जम्मू संभाग की आबादी 69,07,623 है, जबकि कश्मीर की आबादी 53,50,811 है।
संघ शासित प्रदेश बनने के बाद जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 के तहत चुनाव आयोग केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर में परिसीमन करने के लिए प्राधिकृत है। वर्तमान में जम्मू-कश्मीर राज्य में जिसका लद्दाख भी एक हिस्सा है, की विधानसभा में गुलाम कश्मीर के लिए आरक्षित 24 सीटों समेत कुल 111 सीटें हैं। इनमें दो सीटें नामांकन कोटे की हैं। शेष 87 सीटों में चार लद्दाख, 46 कश्मीर और 37 जम्मू संभाग में हैं। इन्हीं 87 सीटों के लिए चुनाव होता है।आबादी और क्षेत्रफल में कम होने के बावजूद शासन की बागडोर कश्मीरी मुस्लिमों के हाथ में रही लेकिन अब ऐसा नही होगा।
बता दें पहले लद्दाख को भी कश्मीर का हिस्सा माना जाता था। इस तरह से कश्मीर में 50 सीटें होती थी। इसका फायदा हमेशा कश्मीर केंद्रित सियासत करने वाली नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी, कांग्रेस समेत अन्य दलों ने लिया। हमेशा मुख्यमंत्री कश्मीर का बना और शासन की बागडोर कश्मीरी मुस्लिमों के हाथ में रही। ऐसा तब जब कश्मीर में आबादी और क्षेत्रफल कम है। इससे जम्मू और लद्दाख राजनीतिक, विकास और आर्थिक मद्दों पर उपेक्षित होते रहे। इसके चलते जम्मू में कई बार परिसीमन की मांग उठी, लेकिन कश्मीरी नेतृत्व ने इसे हमेशा नकारा। आसान भाषा में आप ये समझ लीजिए कि अगर जम्मू-कश्मीर में परिसीमन में राज्य के तीन क्षेत्रों... जम्मू, कश्मीर और लद्दाख में विधानसभा सीटों की संख्या में बदलाव होगा। परिसीमन के बाद जम्मू और कश्मीर के विधानसभा क्षेत्रों का नक्शा पूरी तरह बदल जाएगा। जम्मू और कश्मीर की राजनीति में आज तक कश्मीर का ही पलड़ा भारी रहा है, क्योंकि विधानसभा में कश्मीर की विधानसभा सीटें, जम्मू के मुकाबले ज्यादा हैं। परिसीमन के बाद जम्मू की विधानसभा सीटें बढ़ती है, तो अलगाववादी मानसिकता के नेताओँ की स्थिति कमज़ोर होगी और राष्ट्रवादी शक्तियां मजबूत होंगी।
विधानसभा का स्वरुप
जम्मू-कश्मीर
मामलों
के
जानकार
के
अनुसार
अब
जम्मू-कश्मीर
की
प्रशासनिक,
राजनैतिक
और
भौगोलिक
व्यवस्था
पूरी
तरह
बदलने
जा
रही
है।
अगर
पारदर्शी
तरीके
से
बिना
किसी
दुराग्रह
के
परिसीमन
होता
है
तो
जम्मू
में
सीटें
बढ़ेंगी।
ऐसे
में
जम्मू
संभाग
में
44
सीटें
हो
जाएंगी।
इससे
राजनीतिक
असंतुलन
कम
हो
जाएगा।
इसके
अलावा
भाजपा
ने
हमेशा
जम्मू
के
साथ
राजनीतिक
पक्षपात
दूर
करने
का
भी
यकीन
दिलाया
है
और
वह
चाहेगी
कि
उसका
यह
वादा
पूरा
हो।
केंद्र
के
लिए
अब
कोई
मुश्किल
नहीं।
जम्मू-कश्मीर
राज्य
संविधान
अब
समाप्त
हो
चुका
है।
केंद्र
शासित
जम्मू
कश्मीर
अब
पूरी
तरह
से
केंद्र
सरकार
और
भारतीय
संविधान
के
दायरे
में
है।
इसलिए
जम्मू-कश्मीर
संविधान
के
नियमों
और
प्रावधानों
की
अब
कोई
अहमियत
नहीं
है।
इसलिए
परिसीमन
कराने
में
कोई
मुश्किल
नहीं
है।
आखिरी बार 1995-96 में हुआ था परिसीमन
किसी राज्य के निर्वाचन क्षेत्र की सीमा का निर्धारण करने की प्रक्रिया। संविधान में हर 10 वर्ष में परिसीमन करने का प्रावधान है। लेकिन सरकारें ज़रूरत के हिसाब से परिसीमन करती हैं।परिसीमन में सीटों में बदलाव में आबादी और वोटरों की संख्या का भी ध्यान रखा जाता है। जम्मू-कश्मीर में अंतिम बार परिसीमन की प्रक्रिया वर्ष 1995-96 में जम्मू-कश्मीर संविधान के अनुच्छेद 141 और 47 के तहत हुई थी। वर्ष 2002 में जम्मू-कश्मीर में डॉ. फारूक अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली तत्कालीन नेशनल कांफ्रेंस सरकार ने जम्मू-कश्मीर जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1957 और जम्मू-कश्मीर संविधान के अनुच्छेद 47 की धारा तीन में संशोधन कर राज्य में परिसीमन पर 2026 तक रोक लगा दी थी।
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